कोरोनावायरस कर्फ्यू के चलते टीवी शोज़ की शूटिंग भी लॉकडाउन है. किसी भी तरह की शूटिंग या प्रोडक्शन से जुड़े काम नहीं हो पा रहे हैं. इसी कारण एकता कपूर को अपने दो पॉप्युलर शो ‘कुमकुम भाग्य’ और ‘कुंडली भाग्य’ का प्रसारण रोकना पड़ रहा है. हालांकि एकता कपूर को मजबूरन ये फ़ैसला लेना पड़ा, लेकिन एकता कपूर ने दर्शकों के मनोरंजन में कोई कमी नहीं आने दी है. भले ही एकता कपूर के दो पॉप्युलर शो ‘कुमकुम भाग्य’ और ‘कुंडली भाग्य’ का प्रसारण अब नहीं हो सकेगा, लेकिन दर्शक अब इन शोज़ की जगह राम कपूर और साक्षी तंवर की वेब सीरिज़ ‘कर ले तू भी मोहब्बत’ देख सकेंगे. राम कपूर और साक्षी तंवर की जोड़ी ने दर्शकों को कई हिट सीरियल दिए हैं.
आप इस समय देख सकते हैं ‘कर ले तू भी मोहब्बत’ आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ‘कर ले तू भी मोहब्बत’ वेब सीरीज़ का प्रसारण ज़ीटीवी पर रात 9 से 10 बजे तक किया जाएगा. ‘कर ले तू भी मोहब्बत’ का प्रसारण कल यानी बुधवार 25 मार्च से शुरू हो गया है. दर्शकों के मनोरंजन के लिए वेब सीरीज़ ‘कर ले तू भी मोहब्बत’ का प्रसारण उसी समय किया जा रहा है, जिस समय एकता कपूर के दोनों पॉप्युलर शो ‘कुमकुम भाग्य’ और ‘कुंडली भाग्य’ का प्रसारण किया जाता था. बता दें कि राम कपूर और साक्षी तंवर की रोमांटिक वेब सीरीज़ ‘कर ले तू भी मोहब्बत’ का पहला सीज़न एकता कपूर के डिजिटल प्लेटफॉर्म अल्ट बालाजी पर 2017 में प्रसारित हुआ था और इसके बाद इसके दो सीज़न और दिखाए गए थे. इस तरह कुल मिलाकर ‘कर ले तू भी मोहब्बत’ वेब सीरीज़ के कुल 42 एपिसोड का प्रसारण किया गया था. अब एकता कपूर ने ‘कर ले तू भी मोहब्बत’ वेब सीरीज़ को टीवी पर दिखाने का निर्णय लिया है.
अपने इस फैसले पर एकता कपूर ने ये कहा एकता कपूर ने कहा कि वो अपने दो पॉप्युलर शोज़ ‘कुमकुम भाग्य’ और ‘कुंडली भाग्य’ की शूटिंग नहीं कर पा रही हैं, इसका उन्हें बहुत दुःख है, एकता कपूर ने इंस्टाग्राम पर ‘कर ले तू भी मोहब्बत’ वेब सीरीज़ के टीवी पर प्रसारण की घोषणा की और ‘कर ले तू भी मोहब्बत’ का प्रोमो भी शेयर किया.
‘कहने को हमसफ़र हैं’ वेब सीरीज़ भी टीवी पर दिखा रही हैं एकता कपूर कोरोनावायरस कर्फ्यू के दौरान दर्शकों के मनोरंजन में कोई कमी न आए इसके लिए एकता कपूर एक और वेब सीरीज़ ‘कहने को हमसफ़र हैं’ का प्रसारण भी टीवी पर कर रही हैं. ‘कहने को हमसफ़र हैं’ वेब सीरीज़ का टीवी पर प्रसारण कल यानी बुधवार 25 मार्च से रात 10.30 बजे शुरू हो गया है. बता दें कि रोनित रॉय, मोना सिंह और गुरदीप अभिनीत ‘कहने को हमसफ़र हैं’ वेब सीरीज़ को एकता कपूर अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म अल्ट बालाजी पर 2018 में दिखा चुकी हैं और इसके सीज़न पूरे हो चुके हैं. टीवी के दर्शकों को जहां अपने दो पसंदीदा शो ‘कुमकुम भाग्य’ और ‘कुंडली भाग्य’ को न देख पाने का दुःख होगा, वहीँ दो नई वेब सीरीज़ ‘कर ले तू भी मोहब्बत’ और ‘कहने को हमसफ़र हैं’ को देखने की ख़ुशी भी ज़रूर होगी.
हिंदी फिल्मों से जुड़ा एक बड़ा ही दिलचस्प सिलसिला टि्वटर ने शुरू किया है. उन्होंने सेलेब्रिटीज को उनकी 90 दशक यानी नाइंटीस के दौर की पसंद की फिल्मों के बारे में बताने के लिए कहा. साथ ही अपने साथी यानी को-स्टार को टैग करने के लिए भी कहा. कम-से-कम 5 लोगों को. बैक टू द 90s के तहत उन्होंने मशहूर अदाकारा काजोल से इसकी शुरुआत की. काजोल को भी यह आइडिया बढ़िया लगा. इसकी ख़ुशी प्रकट करते हुए उन्होंने अपनी पसंदीदा फिल्मों में कुछ कुछ होता है व प्यार तो होना ही था को कहा. साथ ही उन्होंने अजय देवगन, आमिर ख़ान, करण जौहर, शाहरुख ख़ान और अपनी बहन तनीषा मुखर्जी को टैग किया. काजोल के ट्वीट के जवाब में उनके पति महोदय अजय देवगन ने अपनी अब तक की फेवरेट फिल्म ज़ख़्म बताई. उन्होंने अक्षय कुमार और जूनियर बच्चन यानी अभिषेक बच्चन को टैग किया. अक्षय कुमार ने अजय देवगन को धन्यवाद देते हुए अपने नाइंटीस की बेस्ट फिल्में संघर्ष और अंदाज़ अपना अपना को बताया. उन्होंने रणवीर सिंह और करण जौहर को टैग करते हुए उनकी पसंद की फिल्म बताने के लिए न्योता दिया. अभिषेक बच्चन ने अपने पिता अमिताभ बच्चन की अग्निपथ को अपना पसंदीदा फिल्म बताया. उन्होंने रितेश देशमुख, रितिक रोशन और जॉन अब्राहम को आमंत्रित किया. रितेश ने दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, कुछ कुछ होता है व हम आपके हैं कौन को नब्बे का अपना फेवरेट मूवी बताया. उन्होंने माधुरी दीक्षित, शाहरुख ख़ान और करण जौहर को टैग किया. ट्विटर की यह पहल काफ़ी मज़ेदार तो है ही साथ ही सेलिब्रिटी भी इसे ख़ूब एंजॉय कर रहे हैं. वे न केवल अपने 90 के दशक की बेस्ट फिल्में बता रहे हैं, साथ ही चुन-चुनकर अपने साथी कलाकारों को भी टैग कर रहे हैं. इसके जवाब में सभी स्टार भी बहुत ही चटपटे जवाब दे रहे हैं, जैसा कि करण जौहर ने काजोल को लेकर कहा. उन्होंने बड़े प्यार से काजोल को कैड बुलाते हुए कहते हैं कि तुम ही मेरी 90 की सब हो. एक तरह से उन्होंने बहुत बड़ा कॉम्प्लिमेंट काजोल को दिया. करण ने वरुण धवन और सिद्धार्थ मल्होत्रा को टैग किया. रणवीर सिंह ने भी अक्षय के संदेश को स्वीकारते हुए थैंक्स बोलते हुए कहा कि नब्बे का दशक मेरे लिए बहुत लाजवाब रहा है. मुझे उस दौर की सब चीज़ें पसंद थीं. फिल्म हो, पॉप म्यूजिक, फैशन, डांस हर एक ने मुझे प्रेरित और उत्साहित किया. 90 के समय की तो मुझे जुड़वा और राजा बाबू ख़ासतौर पर पसंद थी. मैं अली अब्बास जफर और अर्जुन कपूर को टैग करता हूं. अर्जुन कपूर के लिए भी 90s बहुत ही ख़ास रहा है. उस दशक की सभी फिल्में बेहतरीन रहे. उनकी पसंद की फिल्में मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी व दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे थीं. यह दोनों ही फिल्में उन्हें बहुत पसंद है. उन्होंने वरुण धवन और कृति सेनन को उनकी फेवरेट फिल्म बताने के लिए टैग किया. बड़ा ही दिलचस्प सिलसिला चल पड़ा है ट्विटर पर. सभी कलाकार इसमें बड़े जोर-शोर से हिस्सा ले रहे हैं. आप भी ज़रूर बताइएगा कि नब्बे के दशक की आपकी पसंद की फिल्में कौन-सी थीं और आपको बहुत अच्छी भी लगी थी.
First up, what’s your favourite ‘90s movie? Respond with #90sLove#BackToThe90s or #90sNostalgia and tag five friends to continue the conversation. And look who's kicking it off – '90s sweetheart herself @itsKajolD!
90’s is the decade that defines me ! I love everything 90’s ! From films to fashion to music to pop culture ! Two of my absolute favourite movies from the 90’s are JUDWAA & RAJA BABU ! 🙂 I nominate @aliabbaszafar and Baba @arjunk26 to share their favourites 🙂 #90slovehttps://t.co/hWKFvyEqav
90s, what a filmy decade 😍🎭, 2 of my favorite films from 90s are Main Khiladi Tu Anari & DDLJ. I would like to nominate @Varun_dvn & @kritisanon to know their favorite films from 90s. #90sLovehttps://t.co/IH8AL2wYEk
द कपिल शर्मा शो की मंजू सुमोना चक्रवर्ती इंडियन टेलीविज़न के कॉमेडी की दुनिया में काफ़ी मशहूर हैं. शो में वो कभी कपिल की पत्नी के रूप में नज़र आती हैं, तो कभी डॉ. गुलाटी की बेटी के तौर पर. आजकल वो बच्चा यादव की साली भूरी का किरदार निभा रही हैं. आपको बता दें कि कपिल शर्मा शो में सीधी-साधी हाउस वाइफ का किरदार निभानेवाली सुमोना रियल लाइफ में काफ़ी हॉट, सेक्सी और काफ़ी ग्लैमरस हैं.
कोरोना महामारी के चलते हर कोई अपने घरों में रहने को मजबूर है, ऐसे में टीवी एक्ट्रेस सुमोना भी वेकेशन के दिनों को याद कर रही हैं. सोशल मीडिया पर एक फोटो शेयर करते हुए उन्होंने लिखा कि- इन लहरों, सूरज और रेत की याद आ रही है… इस थ्रोबैक फोटो में सुमोना ने टू पीस बिकिनी पहन रखी है, जिसमें वो बेहद ख़ूबसूरत लग रही हैं.
कुछ दिन पहले भी सुमोना ने अपनी एक बिकिनी पिक सोशल मीडिया पर पोस्ट की थी, जिसे उनके फैन्स ने काफ़ी सराहा. आपको बता दें कि सुमोना सोशल मीडिया पर काफ़ी एक्टिव हैं और रोज़ाना कुछ न कुछ अपने फैन्स से शेयर करती रहती हैं.
वैसे तो सुमोना कई टीवी शोज़ और फिल्मों में नज़र आ चुकी हैं, पर उन्हें असली पहचान कपिल शर्मा शो से मिली. इस शो में कपिल की कपिल की पत्नी का उनका किरदार लोगों को काफ़ी पसंद आया था और आज भी सुमोना के वन लाइनर्स पब्लिक को काफ़ी पसंद आते हैं.
– अनीता सिंह
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दिव्यांका त्रिपाठी स्मॉल स्क्रीन की फेमस और खूबसूरत एक्ट्रेस में से एक हैं. ज़बरदस्त फैन फॉलोइंग भी है उनकी. सोशल मीडिया पर भी पॉपुलैरिटी के मामले में दिव्यांका किसी बॉलीवुड स्टार से कम नहीं हैं. लॉकडाउन के बीच भी वो सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हैं और आए दिन पति विवेक दहिया के साथ अपने वीडियोज और फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती हैं, जिसे लोगों का जबरदस्त रिस्पांस भी मिलता है. लॉक डाउन में सभी की पुरानी यादें लौट रही हैं. पुरानी अलबम देखकर लोग पहले की यादें ताज़ा कर रहे हैं. ऐसे में दिव्यांका त्रिपाठी का एक पुराना वीडियो भी आजकल जमकर वायरल हो रहा है, जिसमें वह राजीव खंडेलवाल के साथ किसी टॉक शो में अपने एक्स बॉयफ्रेंड शरद मल्होत्रा को लेकर भावुक होते दिख रही हैं.
दरअसल, यह वीडियो राजीव खंडेलवाल के टॉक शो ‘जज़्बात’ का है, जिसमें राजीव खंडेलवाल, दिव्यांका त्रिपाठी से शरद मल्होत्रा से उनके ब्रेकअप को लेकर सवाल करते हैं तो दिव्यांका काफी इमोशनल हो जाती हैं. ‘मैंने सब ट्राई किया, पता है मैं किस हद तक गई थी? मैं अंधविश्वास के लेवल पर चली गई थी. मैं अजीबो-गरीब लोगों से मिलने लगी थी. मैं उन लोगों से मिलकर पूछती कि क्या सच में उस पर किसी ने कुछ किया है. आठ साल के बाद ऐसा कैसे हो सकता है. एक समय ऐसा आया, जब मुझे लगा कि अगर किसी के प्यार को पाने के लिए ये सब करना पड़े तो क्या सच में ये प्यार है.’
बता दें, दिव्यांका त्रिपाठी और शरद मल्होत्रा की मुलाकात जी सिनेस्टार के सेट पर हुई थी. इसके बाद दोनों को एक ही सीरियल ‘बनूं मैं तेरी दुल्हन’ में बड़ा ब्रेक मिला था. रील लाइफ में शुरू हुई ये लव स्टोरी धीरे-धीरे रियल लाइफ में बदल गई और करीब 8 साल तक दोनों डेट करते रहे. दोनों ने अपनी शादी की प्लानिंग्स भी शुरू कर दी थी, लेकिन फिर दोनों में दूरियां बढ़ती गईं और उनका ब्रेकअप हो गया.
दिव्यांका के लिए तब भी ये इतना आसान नहीं था ये पहली बार नहीं था जब इस रिश्ते को लेकर दिव्यांका ने अपना दर्द बयां किया था. ब्रेकअप के बाद एक इंटरव्यू में उन्होंने खुलकर अपने मन की बात कही थी, “मैंने हर वक़्त उसकी ख़ुशी का ख्याल रखा था, जितना मैंने उसके लिए करती थी, जितना समर्पण मैंने उसके प्रति दिखाया, उसने कभी मेरे लिए वो समर्पण भाव नहीं दिखाया. दरअसलहम महिलाएं बेवकूफ होती हैं जिससे प्यार करती हैं, उसके लिए सबकुछ करती हैं. यहां तक कि खुद को ही भुला बैठती हैं. इस रिश्ते से मुझे एक सबक भी मिला कि किसी को खुश रखने के लिए अपनी पहचान मत गंवाओ.”
शरद को काफी बाद हुआ था अपनी गलती का एहसास ऐसा नहीं है कि इस रिश्ते के टूटने की तकलीफ सिर्फ दिव्यांका को हुई थी, शरद भी इस ब्रेकअप से दुखी थे, ये और बात है कि अपनी गलती का एहसास उन्हें काफी लेट हुआ. एक इंटरव्यू के दौरान जब दिव्यांका से उनके ब्रेकअप की वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा, ‘मेरे पास कहने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन मैं इतना कह सकता हूं कि वह बेहद खूबसूरत रिश्ता था. लेकिन जैसे ही शादी की बात आई, पता नहीं क्यों मैं बैचेन हो गया. यह काफी पुरानी बात है, तब मैं इम्योचर था. हम समय और अनुभव के साथ मैच्योर होते हैं. मैं मानता हूँ कि मैंने गलतियां की हैं.”
2015 में शरद से ब्रेकअप के बाद दिव्यांका ने ‘ये है मोहब्बतें’ के को-एक्टर विवेक दहिया संग 2016 में शादी कर ली और आज दोनों हैप्पीली मैरिड लाइफ गुजार रहे हैं, दोनों में जबरदस्त बॉन्डिंग और गजब की केमिस्ट्री है जो सोशल मीडिया पर उनकी पोस्ट में अक्सर नज़र आता है.
अपनी अदाकारी से दर्शकों का दिल जीतने वाली दक्षिण भारत से आईं बेहतरीन अदाकाराओं में वैजयंती माला ‘राष्ट्रीय अभिनेत्री’ का दर्जा पाने वाली पहली महिला हैं. वैजयंती माला भरतनाट्यम डांसर, कर्नाटक गायिका, डांस टीचर और सांसद भी रह चुकी हैं. वैजयंती माला ने अपने करियर की शुरुआत 1949 में तमिल फिल्म “वड़कई” से की थी. हिंदी सिनेमा में वैजयंती माला का बहुत योगदान है. वैजयंती माला को 1959 में फिल्म ‘मधुमती’, 1962 में ‘गंगा जमुना’ और 1965 में ‘संगम’ के लिए फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिल चुका है. वैजयंती माला ने हिंदी फिल्मों में लगभग दो दशकों तक राज किया है. दक्षिण भारत से आकर राष्ट्रीय अभिनेत्री का दर्जा पाने वाली वो पहली महिला हैं. उन्होंने अपने एक्टिंग करियर में बहुत ऊंचाइयां हासिल की, लेकिन वैजयंती माला की पर्सनल लाइफ हमेशा विवादों में रही. वैजयंती माला को राज कपूर से था प्यार, फिर उन्होंने एक शादीशुदा डॉक्टर से क्यों की शादी? आइए, जानते हैं वैजयंती माला की ज़िंदगी का ये सच.
जब वैजयंती माला को हुआ राज कपूर से प्यार वैजयंती माला जितनी सुलझी हुई अदाकारा थी, उनकी पर्सनल लाइफ उतनी ही विवादों से भरी थी. फिल्म की शूटिंग के दौरान वैजयंती माला की नजदीकियां दिलीप कुमार और राज कपूर से रहीं. 1961 में आई फिल्म ‘गंगा जमुना’ के सेट पर दिलीप कुमार और वैजयंती माला का अफेयर शुरू हुआ.
वैजयंती माला को राज कपूर से भी प्यार हुआ था, इन दोनों के अफेयर की खबरें भी उस समय खूब सुर्ख़ियों में रही. बता दें कि वैजयंती माला और राज कपूर ने एक साथ ‘नज़राना’ और ‘संगम’ फिल्म में काम किया था. उसी दौरान दोनों के अफेयर की ख़बरें मशहूर होने लगी थीं. फिर जब ये बात राज कपूर की पत्नी कृष्णा कपूर को पता चली तो, वो घर छोड़कर चली गईं और करीब साढ़े चार महीने मुंबई के नटराज होटल में रहीं. राज कपूर के काफी मनाने के बाद कृष्णा कपूर इस शर्त पर मानीं कि वो फिर कभी वैजयंती माला के साथ काम नहीं करेंगे. पत्नी की शर्त के आगे राज कपूर को झुकना पड़ा और इस तरह वैजयंती माला और राज कपूर को एक-दूसरे से अलग होना पड़ा.
वैजयंती माला ने शादीशुदा डॉक्टर से क्यों की शादी? वैजयंती माला और डॉ. बाली की प्रेम कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. एक बार फिल्म की शूटिंग के दौरान जब वैजयंती माला को निमोनिया हो गया था, तो उनका इलाज डॉ. बाली कर रहे थे. डॉ. बाली इलाज के दौरान वैजयंती माला के दीवाने हो गए थे. वैजयंती माला को भी डॉ. बाली का साथ अच्छा लगने लगा था. इस तरह इलाज करते-करते दोनों में प्यार हो गया और दोनों ने शादी का फैसला कर लिया और वैजयंती माला ने डॉ. बाली के साथ अपना घर बसा लिया.
वैजयंती माला ने इसलिए अवॉर्ड लेने से मना कर दिया था एक वक्त था, जब वैजयंती माला इतनी फेमस हो गई थीं कि वो अपनी शर्तों पर काम करती थी. इसी के चलते एक बार उन्होंने अवॉर्ड लेने से भी मना कर दिया था. ये उस समय की बात है जब फिल्म ‘देवदास’ में उन्होंने चंद्रमुखी की भूमिका निभाई थी, जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया, लेकिन वैजयंती माला ने ये अवॉर्ड लेने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि देवदास की ज़िंदगी में पारो से ज्यादा चंद्रमुखी महत्वपूर्ण थी, इसलिए अगर देना है तो उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड दिया जाना चाहिए.
आज धक-धक गर्ल माधुरी दीक्षित का जन्मदिन है. उनका जन्म 15 मई, 1967 को हुआ था. आज वह अपना 53 बर्थडे मना रही हैं. माधुरी एक बेहतरीन अभिनेत्री, अच्छी डांसर और सदाबहार अदाकारा हैं. उनका फिल्मी करियर काफ़ी शानदार रहा है. आज माधुरी ने जन्मदिन पर अपने चाहनेवालों ख़ासकर फैन्स के लिए एक सरप्राइज भी दिया. उन्होंने सभी को बर्थडे विश के लिए धन्यवाद कहा. साथ ही ‘कैंडल’ के अपने गाने के बारे में भी बताया, जो जल्द ही आनेवाला है. उनके अनुसार, यह गीत एक उम्मीद पर है, जिसकी आज की तारीख़ में हम सब को ज़रूरत भी है. क्या आप जानते हैं कि माधुरी ने 3 साल की उम्र से कत्थक सीखना शुरू किया था और 8 साल की उम्र में अपना पहला परफार्मेंस दिया था. वैसे माधुरी बचपन में बनना तो डॉक्टर चाहती थीं, पर क़िस्मत में अभिनेत्री बनना लिखा था. आज हम माधुरी दीक्षित के फिल्मी करियर और उनकी प्रेम कहानियों के बारे में जानेंगे. कैसे फिल्मी सफ़र में अभिनय करते समय उन्हें प्यार हुआ, उनके रिश्ते कई लोगों से जुड़े. अभिनेता के अलावा क्रिकेटर के साथ भी उनका नाम जोड़ा गया. लेकिन उन्होंने शादी की एक फिल्मी बैकग्राउंड से बिल्कुल अलग एक समझदार संजीदा क़िस्म के इंसान से यानी डॉ. श्रीराम नेने से. सालों पहले माधुरी अमेरिका से वापस आकर यहां पर भारत में ही पति-बच्चों के साथ सैटल हो गईं. माधुरी दीक्षित ने की पहली फिल्म अबोध थी, जो राजश्री प्रोडक्शन की थी. पर यह फिल्म कुछ ख़ास नहीं चल पाई. लेकिन उसके बाद उनकी कई एक-से-एक बेहतरीन फिल्में कामयाब रहीं. वे नब्बे के दशक की टॉप एक्ट्रेस बन गईं. सफलता के नए मुक़ाम हासिल किए. तेजाब, हम आपके है कौन, राम लखन, किशन कन्हैया, कोयला, सैलाब, बेटा, मृत्युदंड ने उन्हें नाम-शौहरत सब कुछ दिया. उनकी सबसे हिट जोड़ी रही अनिल कपूर के साथ. अनिल कपूर भी उनके ज़बर्दस्त फैन हैं. बरसों बाद माधुरी ने अनिल कपूर के साथ टोटल धमाल में काम किया. इस फिल्म के प्रमोशन के दरमियान अनिल कपूर ने माधुरी दीक्षित के प्रति अपनी फीलिंग्स को अप्रत्यक्ष रूप से ज़ाहिर किया था. अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित ने कई सुपरहिट फिल्में दी हैं. कहा जाता है कि जैसे शाहरुख ख़ान और काजोल की जोड़ी ज़बर्दस्त थी. वैसे ही 90 में अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित की जोड़ी सुपर-डुपर हिट थी. उनकी साथ की तेजाब, राम लखन, किशन कन्हैया, बेटा आदि को दर्शकों ने बेहद पसंद किया. माधुरी दीक्षित के लव-अफेयर की बात करें, तो उन्हें प्यार हुआ, उसके आकर्षण में बंधी, पर इस प्यार को रिश्ते का नाम नहीं मिला. टॉप पर देखा जाए, तो संजय दत्त के साथ उनका प्रेम संबंध काफ़ी सुर्ख़ियों में रहा. दोनों की कई फिल्में भी सफल रहीं, जिसमें साजन, खलनायक, थानेदार आदि हैं. दोनों एक-दूसरे के काफ़ी करीब आ गए थे. जबकि संजय दत्त शादीशुदा थे. पर जब संजय दत्त का नाम गैरकानूनी रूप से बंदूक रखने से जुड़ा, फिर उन्हें जेल भी हुई. तब अपनों के दबाव में माधुरी ने संजय से दूरी करना ही बेहतर समझा. उनका परिवार भी नहीं चाहता था कि वे किसी ऐसे व्यक्ति से जुड़े, जिसका आपराधिक बैकग्राउंड बना हो. माधुरी दीक्षित एक क्रिकेटर के भी क़रीब आई थीं. वो थे अजय जडेजा. एक विज्ञापन के सिलसिले में दोनों की मुलाक़ात हुई थी. दोनों एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हुए. अजय जडेजा उस समय क्रिकेट जगत में काफ़ी मशहूर हैंडसम खिलाड़ियों में से एक थे. लड़कियां उनकी दीवानी थीं. उनकी फैन फॉलोइंग भी बहुत थी. माधुरी को यह सब और उनका फैमिली बैकग्राउंड पसंद आया. वे गुजरात के राजघराने से ताल्लुक रखते थे. अजय जडेजा का भोलापन, हंसमुख स्वभाव और उनका क्रिकेट खेलने का अंदाज़ उन्हें अच्छा लगता था. माधुरी उन्हें पसंद करने लगी थी. दोनों मिलने लगे थे. दोनों के प्यार के चर्चे भी मीडिया में सुर्खियां बटोर रहे थे. लेकिन जब मोहम्मद अजहरुद्दीन के साथ अजय जडेजा का नाम मैच फिक्सिंग में उछाला गया. अजय को बैन कर दिया गया, तब माधुरी का दिल टूट ही गया. उन्हें इस रिश्ते को आगे बढ़ाना सही नहीं लगा और दोनों अलग हो गए. अब बात करते हैं माधुरी दीक्षित के पतिदेव यानी डॉक्टर श्रीराम माधव नेने की. माधुरी दीक्षित के भाई लॉस एंजिलिस में रहते हैं. वहीं पर एक पार्टी में माधुरी की श्रीराम से मुलाक़ात हुई थी. तब माधुरी इस बात से बड़ी ख़ुश हुईं कि वो माधुरी के बारे में बिल्कुल नहीं जानते थे. ना ही फिल्में देखते थे, ना उन्हें पता था कि माधुरी हीरोइन है. श्रीराम की यही बात माधुरी को आकर्षित कर गई. उन्हें अच्छा भी लगा कि चलो कोई तो है, जिसे मेरे बारे में कुछ नहीं पता है. माधुरी के अनुसार, इस पार्टी के अगले ही दिन उन्होंने उन्हें पहाड़ों पर बाइक राइड के लिए आमंत्रित किया. माधुरी को यह काफ़ी रोमांचक लगा. उन्होंने हामी भर दी. दोनों के लिए काफ़ी मुश्किलोंभरा रहा यह सफ़र, पर दोनों एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हुए. फिर मुलाकातें होती रहीं. वे मिलते रहे. माधुरी को श्रीराम की सादगी, उनकी साफगोई दिल को छू गई और उन्होंने शादी के लिए हामी भर दी. 17 अक्टूबर 1999 को शादी करके वे अमेरिका में बस गईं. माधुरी ने पति के लिए कुकिंग भी सीखी, क्योंकि श्रीराम खाने के काफ़ी शौकीन हैं. माधुरी दीक्षित के दो बेटे हैं- अरिन और रियान. दोनों ही अपने माता-पिता की तरह दिखते हैं. अभी हाल ही में इंटरनेशनल डांस डे के दिन माधुरी दीक्षित ने एक नृत्य सोशल मीडिया पर शेयर किया था. उसमें उनके बेटे ने तबला बजाया था. लोगों ने यह वीडियो काफ़ी पसंद किया था. माधुरी दीक्षित लॉकडाउन के समय अपना अधिकतर वक्त परिवार के साथ, डांस, म्यूज़िक और अपने प्यारे डॉगी के साथ बिताती हैं. माधुरी दीक्षित 90 के दशक के टॉप एक्ट्रेस में थीं. उनकी मुस्कुराहट, उनका भोलापन, अभिनय अदायगी लोगों को दीवाना करती थी और अभी भी करती है. उस समय जब हम आपके कौन फिल्म आई थी, तब तो हर कोई माधुरी का दीवाना हो गया था. फिर चाहे आम हो या ख़ास. उस दौर में पेंटर एम. एफ. हुसैन का नाम ख़ास लिया जाता है, क्योंकि उन्होंने माधुरी दीक्षित की हम आपके है कौन फिल्म कम-से-कम 100 बार देखी थी. उन्होंने उनके प्रति अपने लगाव को पेंटिंग के ज़रिए दर्शाया. माधुरी ख़ुद का डांस का ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी चलाती हैं, जिसे लोग काफ़ी पसंद भी करते हैं. डांस डायरेक्टर सरोज ख़ान से लेकर हर किसी को माधुरी ने अपने नृत्य से प्रभावित किया है. सरोज ख़ान की वजह से भी माधुरी ने डांस में अपने करियर में ऊंचाइयों को छुआ था, ख़ासकर तेजाब का गाना एक दो तीन चार… उनके लिए मील का पत्थर साबित हुआ. इस गाने ने दुनियाभर में शौहरत हासिल की. सरोज ख़ान को भी माधुरी के इस गाने की वजह से एक नया माइलस्टोन भी मिला. माधुरी दीक्षित की फिल्मों के गाने भी सुपरडुपर हिट रहे हैं. और उनकी कई फिल्मों के गाने बेहद ख़ास और लुभावने रहे हैं, जैसे- हम आपके हैं कौन, तेजाब, परिंदा, बेटा, खलनायक आदि. माधुरी दीक्षित को देश-विदेश हर जगह से भरपूर प्यार और मान-सम्मान मिला. सभी उनकी हंसी व अभिनय के कायल हैं. मेरी सहेली की तरफ़ से माधुरी दीक्षित को जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई! वह इसी तरह लोगों को एंटरटेन करती रहें. सफलता की ऊंचाइयों को छूती रहें और अपने नृत्य से भी लोगों को लुभाती रहें.
Thanks for all the good wishes and birthday love! Wanted to give some love back to you. Sharing an exclusive preview of my first ever single. Will share the song soon. It's called Candle and it's about hope, something we need in large supply right now. pic.twitter.com/gmSTmt3KrJ
हाईड्रेटेड रहें: शरीर में पानी व नमी की कमी ना होने पाए. पानी ख़ूब पियें क्योंकि यह ज़हरीले तत्वों को बाहर करता है और पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है. पानी के नाम पर शुगरी ड्रिंक आदी ना पियें. नींबू पानी, नारियल पानी या ताज़ा फल व सब्ज़ी का जूस लें.
ध्यान रहे शराब व कैफेन का सेवन कम करें क्योंकि यह भीतर से शरीर को ड्राई करते हैं और डीहाईड्रेट करते हैं.
प्रोबायोटिक्स ज़रूरी है: हेल्दी बैक्टीरिया पाचन तंत्र को स्वस्थ रखते हैं और पाचन क्रिया को बेहतर बनाते हैं. आप प्रोबायोटिक्स के प्राकृतिक स्रोतों को अपने भोजन में शामिल करें. ख़मीर वाले प्रोडक्ट्स, दही, छाछ व रेडीमेड प्रोबायोटिक्स ड्रिंक्स का सेवन करें.
फाइबर शामिल करें: खाने में फाइबर जितना अधिक होगा पेट उतना ही स्वस्थ होगा क्योंकि आपको क़ब्ज़ की शिकायत नहीं होगी. फाइबर हमारे कोलोन की कोशिकाओं को स्वस्थ रखता है. आपका पेट साफ़ रखता है. अपने भोजन में साबूत अनाज, गाजर, ब्रोकोली, नट्स, मकई,बींस, ओट्स, दालें व छिलके सहित आलू को शामिल करें.
क्रियाशील रहें, कसरत व योगा करें: आप भले ही कितना भी हेल्दी खा लें पर जब तक शरीर को क्रियाशील नहीं रखेंगे तब तक कहीं न कहीं कोई कमी रह ही जाएगी. रोज़ाना 30 मिनट कसरत करें, चहल क़दमी करें, लिफ़्ट की बजाए सीढ़ियों का इस्तेमाल करें. योगा करना चाहें तो वो करें. यह रूटीन आपकी मांसपेशियों को लचीला बनाएगा और पाचन को बेहतर. वरना शारीरिक गतिविधियों की कमी से क़ब्ज़ जैसी समस्या होने लगेगी.
तनाव ना लें: तनाव पूरे शरीर व ख़ासतौर से पाचन तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. इस से गैस, ऐसिडिटी, क़ब्ज़ जैसी समस्या हो सकती है. दरअसल तनाव के कारण पेट में रक्त व ऑक्सीजन का प्रवाह कम हो जाता है जिससे पेट में ऐंठन, जलन जैसी समस्या होने लगती है, साथ ही पेट में मैजूद हेल्दी बैक्टीरिया में भी असंतुलन आने लगता है. इसके अलावा तनाव से नींद भी नहीं आती और नींद पूरी ना होने से पाचन तंत्र ठीक से काम नहीं कर पाता. बेहतर होगा तनाव को खुद पर हावी ना होने दें.
सोशल डिस्टेंसिंग करानेवाले कोरोना वायरस के जाने के बाद क्या सबके दिल मिल पाएंगे? क्या बच्चों में बाहर निकलने की, एक-दूसरे से मिलने-जुलने की नैसर्गिक उत्कंठा जागेगी? दिनभर स्क्रीन में सिर दिए लोगों को आसपास सूखती रिश्तों की बेलों में अपने समय की खाद देकर हरियाने की इच्छा जागेगी. आज की चिंता क्या पर्यावरण के प्रति चिंतन में तब्दील होगी…
“हे भगवान्… कमरे का क्या हाल किया है तुम दोनों ने…” शारदा ने कमरे छोटे-से कमरे को हैरानी से देखा. लैपटॉप से डाटा केबल द्वारा टीवी कनेक्ट करके एकलव्य और काव्या बिस्तर में बैठे कार्टून देख रहे थे… कुछ देर उनके पास बैठकर शारदा भी अजीब-सी आवाज़ निकालते कार्टून करेक्टर को देखने लगी. फिर कुछ ऊब से भरकर वह उठकर चली आई और बालकनी में बैठ गई. उन्हें अकेले बालकनी में बैठे देख बहू कविता ने उन्हें टोका, “क्या हुआ मां, आप यहां बालकनी में अकेले क्यों बैठी है…” “क्या करूं, सुबह से कभी टीवी, तो कभी नेट पर कार्टून ही चल रहा है.“ “कार्टून नहीं एनीमेटेड मूवी है मां…” “जो भी हो… सिरदर्द होने लगा है. दिनभर ये लैपटॉप नहीं, तो टीवी खोले बैठे रहते है… उनसे फुर्सत मिलती नहीं और जो मिल जाए, तो हाथों में मोबाइल आ जाता है… कुछ किताबे वगैरह दो बहू…” “हां मम्मीजी, बेचारे अब करे भी तो क्या… इस कोरोना ने तो अच्छी-खासी मुसीबत कर दी. ईश्वर जाने कब स्कूल खुलेंगे…” “मम्मी कोरोना को मुसीबत तो मत बोलो…” काव्या की आवाज़ पर शारदा और कविता दोनों ने चौंककर काव्या को देखा, जो एकलव्य के साथ वॉशबेसिन में हाथ धोने आई थी… काव्या की बात सुनकर कविता कुछ ग़ुस्से से बोली, “क्यों! कोरोना को मुसीबत क्यों न बोले?” “अरे मम्मी, कोरोना की वजह से लग रहा है गर्मी की छुट्टियां हो गईं..” काव्या ने हंसते हुए कहा, तो कविता गंभीर हो गई. “अरे! ऐसे नहीं बोलते काव्या… कोरोना की वजह से देखो कैसे हमारी आर्थिक व्यवस्था डांवाडोल हो रही है. इस वायरस का अब तक कोई इलाज नहीं निकला है. कितने लोग डरे हुए हैं. कितने लोग इसकी चपेट में आ गए है… और कितनों ने तो अपनी जान…” “ओहो मम्मा, मज़ाक किया था और आप सीरियस हो गई… चलो सॉरी..” कविता के गले में गलबहियां डालते हुए काव्या उनकी मनुहार करती बोली, “छुट्टियां हो गई. पढ़ाई से फुर्सत मिल गई, इसलिए कह दिया.” “ये मज़ाक का समय नहीं है समझी.” कविता ने डांटा, तो शारदा भी बड़बड़ा उठी… “और क्या, आग लगे ऐसी छुट्टियों को. इस मुए कोरोना की वजह से पूरी दुनिया की जान सांसत में है और तू उसी को भला हुआ कह रही है. ऐसी छुट्टियों का क्या फ़ायदा, जिसमें न बाहर निकल पाए और न किसी को घर पर बुला पाए. न किसी से मेलजोल, न बातचीत… घूमना-फिरना सब बंद. सब अपने-अपने घरों में कैद कितने परेशान हैं…” यह भी पढ़ें: कोरोना के कहर में सकारात्मक जीवन जीने के 10 आसान उपाय (Corona Effect: 10 Easy Ways To Live A Positive Life)
“परेशानी कैसी दादी… टीवी, नेट सब तो खुला है न…” एकलव्य ने सहसा मोर्चा संभाल लिया… “हम दोस्तों से जुड़े हैं. वाट्सअप और फोन से हमारी गप्पबाजी हो जाती है. मम्मी आजकल बढ़िया-बढ़िया खाना बना रही है… चिल दादी…” कहते हुए एकलव्य काव्या के साथ चला गया तो कविता शारदाजी से बोली, “मांजी रहने दीजिए, इनकी बात को इतना सीरियसली न लीजिए. वैसे देखा जाए, तो आज की जनरेशन का कूल रवैया हमारे लिए ठीक ही है… आज पूरे विश्व में इतनी भीषण विभीषिका आन पड़ी है, देश में घर में ही रहने का आह्वान किया जा रहा है. लोगों से दूर रहने को कहा जा रहा है. ऐसे में ये बिना शिकायत घर पर मज़े से बैठे है… ये कम है क्या…” शारदाजी चुपचाप बहू की बातें सुनती रहीं… “जानती हो मां, आज अख़बार में निकला है कि आपदा प्रबंधन में कोरोना वायरस को भी शामिल किया जा रहा है… और हां अब से विज्ञान के छात्र विभिन्न तरह के फ़्लू और बीमारियों के साथ कोरोना वायरस के बारे में भी पढ़ेंगे…” “हां भई, परिवर्तन के इस युग में नई-नई चीज़ें पाठयक्रम में शामिल होंगी… जानती हो, जब मैंने उस जमाने में पर्यावरण का विषय लिया, तो लोग हंसते थे कि इसका क्या स्कोप है. आज देखो, पर्यावरण हमारी आवश्यकता बन गई… इसी तरह आज इस वायरस को लेकर जो बेचैनी की स्थिति बनी है, उसमे जागरूकता ज़रूरी है…” अपनी शिक्षित सास की समझदारी भरी बातों से प्रभावित कविता देर तक उनसे वार्तालाप करती रही… फिर रसोई में चली गई. कविता के जाने के बाद शारदा ने अपनी नज़रे बालकनी से नीचे दिखनेवाले पार्क में गड़ा ली… पार्क में फैले सन्नाटे को देख मन अनमना-सा हो गया. कोरोना के चक्कर में बाज़ार-मॉल सब बंद है… घर पर ऑनलाइन सामान आ जाता है. आगे की स्थिति की गंभीरता को देखते हुए राशन इकट्ठा कर लिया गया है, सो सब निश्चिन्त है. स्कूल बंद है, पर बच्चे ख़ुश है… लोगो से मिलने-जुलने पर लगी रोक का भी किसी को ख़ास मलाल नहीं, क्योंकि बहुत पहले से ही सबने ख़ुद को वाट्सअप-फेसबुक के ज़रिए ख़ुद को बाहरी दुनिया से जोड़ लिया है… वैसे ही रिश्तों में दूरियों का एहसास होता था, अब तो दूरियां जीवनरक्षक है. उन्हें एकलव्य की भी चिंता हो रही है. पहले ही उसका वज़न इतना बढ़ा हुआ है… अब तो दिनभर लैपटॉप या टीवी स्क्रीन के सामने बैठे खाना खाते रहना मजबूरी ही बन गई है… ये अलग बात है कि इस मजबूरी पर वो ख़ुश है, पर उन्हें बेचैनी है. सामान्य स्थिति में डांट-फटकार कर उसे घर से बाहर खेलने साइकिल चलाने भेजा जाता था. आज वो भी बंद है… हैरानी होती है कि आज के बच्चों को बाहर खेलने भेजना भी टास्क है. यक़ीनन इसकी वजह वो ‘यंत्र’ है जिस पर दिनभर बिना थके लोगो की उंगलियां थिरकती है. वो ऊब रही है, क्योंकि लाख चाहने के बाद भी वो स्मार्टफोन से दोस्ती नहीं कर पाई. यश ने कितनी बार उनसे कहा, “मां, स्मार्टफोन की आदत डाल लो. समय का पता ही नहीं चलेगा.” स्मार्टफोन लाकर भी दिया, पर उन्हें कभी भी स्मार्टफोन पर मुंह गाड़े लोग अच्छे नहीं लगे शायद इसी वजह से उन्होंने इस आदत को नहीं अपनाया… इसीलिए आज वो उकताहट महसूस कर रही है… घर में क़ैद ऊब रही है, पर ये क़ैद इन बच्चों को महसूस नहीं होती. पार्क में न जाने का उन्हें कोई मलाल नहीं… फ्रेंड्स से आमने-सामने न मिलने की कोई शिकायत नहीं… ऐसे में उसे बच्चों के व्यवहार से कविता की तरह संतुष्ट होना चाहिए, पर मन बेचैन है. रात का खाना बच्चों ने अपने-अपने कमरे में स्क्रीन ताकते हुए खाया.. वो भी खाना खाकर अपने कमरे में आकर लेट गईं… घर की दिनचर्या बिगड़ गई थी, ऐसा लग रहा था मानो काव्या और एकलव्य की गर्मियों की छुट्टियां चल रही हो. सहसा उन्हें बीते ज़माने की गर्मियों की छुट्टियां याद आई… यश काव्या की उम्र का ही था… गर्मियों की दोपहर को चोरी-छिपे खेलने भाग जाता था… गर्मी-सर्दी सब खेल पर भारी थी… सातवीं कक्षा में उसका वार्षिक परीक्षा का हिन्दी का पर्चा याद आया… चार बजे शाम का निकला यश सात बजे खेलकर आया, तो वह कितना ग़ुस्सा हुई थी.. “ऐसा करो, अब तुम खेलते ही रहो… कोई ज़रूरत नहीं है इम्तहान देने की, मूंगफली का ठेला लगाना बड़े होकर.” उसकी फटकार वह सिर झुकाए सुनता रहा. यह भी पढ़ें: तनाव दूर करके मन को शांत रखते हैं ये 4 योगासन (4 Yoga Poses For Stress Relief)
शारदाजी ये सोचकर मुस्कुरा उठीं कि यश को खेलने की एवज में उससे कितनी बार दूध-फल-सब्जी बिकवाई… कभी-कभी तो रिक्शा भी चलवाया. उसके मन-मस्तिष्क में कूटकूटकर भर दिया था, जो ढंग से पढ़ाई नहीं करते, ज़्यादा खेलते है, वो यही काम करते है. कितनी ग़लत थी वह… आज पछतावा होता है कि नाहक ही उसे खेलने के लिए डांटा. आउटडोर खेल के महत्व को उस वक़्त नकारा, जबकि आज चाहती है कि बच्चे खेले… खेलते भी है, पर मैदान में नहीं स्क्रीन पर… घर बैठे ही. वैसे ही आजकल खुले में खेलने को ठेलना पड़ता था. अब कोरोना के चलते वो भी नहीं हो सकता. अब बच्चों की मौज है… उन्हें कोई शिकायत नहीं, काश! वो शिकायत करते. यश की तरह… यश की खिलंदड़ी प्रवृत्ति को लेकर वह हमेशा चिंतित रही. आज उसके बच्चे खेलने नहीं जाते तो चिंतित है. विचारों में घिरे-घिरे झपकी आई कि तभी काव्या और एकलव्य के चीखने से ही हड़बड़ाकर उठ बैठी… उनके कमरे में जाकर देखा, तो काव्या ख़ुशी से नाच रही थी… एकलव्य भी बहुत ख़ुश था. यश और कविता के मुख पर मंद-मंद मुस्कान थी… यश बोला, “मां, इनके इम्तहान कैंसिल हो गए…” “मतलब…” “मतलब अब बिना इम्तहान के ही ये दूसरी कक्षा में चले जाएंगे.” “अरे ऐसे कैसे…” “सब कोरोना की वजह से दादी, अभी-अभी स्कूल से मेल आया है, क्लास आठ तक सब बच्चे बिना इम्तहान के ही पहले के ग्रेड के आधार पर प्रमोट हो जाएंगे… हुर्रे मैं क्लास नाइंथ में आ गई…” वो उत्साहित थी. “और मैं क्लास सेवन्थ में…” “हां वो भी बिना मैथ्स का एग्ज़ाम दिए हुए…” काव्य ने एकलव्य को छेड़ा. एकलव्य का हाथ मैथ्स में तंग है. सब जानते थे, इसलिए सब हंस पड़े. इम्तहान नहीं होंगे, उसे सेलीब्रेट करने के लिए रात देर तक अंग्रेज़ी पिक्चर देखी गई… शारदा अपने कमरे में आकर सो गई… सुबह आंख खुली, तो देखा सूरज की धूप पर्दों से भीतर आने लगी थी. आज कविता ने चाय के लिए आवाज़ नहीं लगाई, यह देखने के लिए वह उठी, तो देखा बेटे-बहू का कमरा बंद था. आज न शनिवार था, न इतवार, न ही कोई तीज-त्यौहार फिर छुट्टी..? वो सोच ही रही थी कि तभी दरवाज़ा खुला… कविता कमरे से निकली, शारदा को देख बोली, “आज इन्हें ऑफिस नहीं जाना है, इसलिए देर से उठे. आप बालकनी में बैठो चाय वहीं लाते है.” सुबह और शाम की चाय अक्सर तीनों साथ ही पीते है. शारदा बालकनी में आकर बैठ गई… यश भी अख़बार लेकर बालकनी में पास ही आकर बैठ गया, तो शारदा ने पूछा “आज काहे की छुट्टी..” “मां, कोरोना के चलते हमारी भी छुट्टी हो गई… आज सुबह मेल देखा, तो पता चला. हमें आदेश मिला है कि घर से काम करने के लिए…” “ओह!..” कहकर वह मौन हुई, तो यश बोला, “पता नहीं ये कब तक चलेगा… घर से कैसे काम होगा.” यश के चेहरे पर कुछ उलझन देखकर शारदा ने परिहास किया, “क्यों तुम्हारे बच्चे बिना इम्तहान दिए दूसरी कक्षा में प्रवेश कर सकते है, तो क्या तुम घर से काम नहीं कर सकते…” यश हंसते हुए कहने लगा, “सच कहती हो मां… मुझे तो जलन हो रही है इनसे, बताओ, बिना इम्तहान के दूसरी क्लास में चले जाएंगे… “ शारदा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, तो यश बोला, “याद है मां, एक बार जब मुझे चिकनपाक्स हुआ था, तो भी मुझे इम्तहान देने पड़े थे वो भी अकेले…” “अरे बाप रे! कैसे भूल सकती हूं. पहला पर्चा देकर घर आया और बस… ऐसे दाने निकले कि निकलते ही चले गए. सब बच्चों की छुट्टियां हुई, तब तूने इम्तहान दिए…” “वही तो…” यश सिर हिलाते हुए कुछ अफ़सोस से बोला. “बिना पढ़े मुझे तो नहीं मिली दूसरी क्लास… बीमारी में भी तुम मुझे कितना पढ़ाती थी. तुम पढ़कर सुनाती और मैं लेटा-लेटा सुनता रहता… जब तबीयत ठीक हुई, तब टीचर ने सारे एग्ज़ाम लिए. आज इन्हें देखो, मस्त सो रहे है दोनों.” यश ने मां का हाथ थामकर कहा, “वक़्त कितना बदल गया है. मुझे याद है जब मुझे चिकनपाक्स हुआ था, तब मैं भी इनकी तरह क़ैद था घर में… छुआछूत वाली बीमारी के चलते न किसी से मिलना-जुलना, न किसी के साथ खेलना… बड़ा बुरा लगता था.” “हां, बड़ा परेशान किया तूने उन पंद्रह दिन…” “हैं अम्मा… ये परेशान करते थे क्या…” सहसा चाय की ट्रे लिए कविता आई और वह भी बातचीत में शामिल हो गई. शारदा यश के बचपन का प्रसंग साझा करने लगी. “और क्या… एक दिन चोरी से निकल गया था बगीचे में… आम का पेड़ लगा था उस पर चढा बैठा था…” यश को वो प्रसंग याद आया और ख़ूब हंसा… “पता है कविता, मैं आम के पेड़ में चढा हुआ था अम्मा ने कहा एक बार तेरा चिकनपाक्स ठीक हो जाए, फिर बताती हूं.. मैं कितना डर गया था. लगा कि ठीक होऊं ही न….” यह सुनते ही शारदा ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बड़ी ज्यादतियां की है तुझ पर…” “कैसी बात कर रही हो मां… मैं था भी तो कितना शैतान कि मौक़ा मिलते ही बाहर भागने की सोचता… कभी क्रिकेट खेलता.. तो कभी फुटबॉल… कभी यूं ही पेड़ों में चढ़कर मस्ती करते…” “जो आज जैसी सुविधाएं होती तो शायद तू बाहर निकलने को न छटपटाता…” “अच्छा है जो आज जैसी सुविधाएं नहीं है. कम-से-कम हमने अपना बचपन तो जिया… सुविधाएं होती, तो शायद बचपन के क़िस्से नहीं होते… मां ये बच्चे अपने बचपन के कौन-से क़िस्से याद करेंगे.” यश के मुंह से निकला, तो शारदा का मन भीग-सा गया. सहसा चुप्पी छा गई… तो कविता बोली, “कोरोना वायरस की वजह से हुई छुट्टियां और बिना इम्तहान दिए नई क्लास में प्रमोट होने जैसे क़िस्से याद करेंगे…” हंसते हुए शारदा ने कविता से पूछा, “वो दोनों अभी उठे नहीं है क्या…” “रात ढाई बजे तक चली है पिक्चर. इतनी जल्दी थोड़ी न उठनेवाले…” “ठीक है सोने दे… उठकर करेंगे भी क्या, वही टीवी, नेट-गेम्स और स्मार्टफोन…” शारदा के कहने पर यश ने कहा, “अभी ये लोग सो रहे है… आओ, न्यूज सुन लेते है… देखे कोरोना वायरस का क्या स्टेटस है…” “सच में बड़ा डर लग रहा है…” कविता ने कहा, तो यश बोला, “डरना नहीं है, वायरस से लड़ना है… अपने देश ने काबिलेतारीफ इंतज़ाम किए है. डब्ल्यूएचओ ने भी तारीफ़ की है, ये बड़ी बात है. आगे हमें ही सावधानियां रखनी है.” यश और कविता समाचार देखने चले गए.. शारदा सोचने लगी- कोरोना वायरस को भगाने के लिए जागरूक होना अतिआवश्यक है… सभी लोंगो के प्रयास से कोरोना देश-दुनिया से चला ही जाएगा… सैल्यूट है डॉक्टर को… सुरक्षाकर्मियों को और मीडियावालों को, जिनके काम घर से नहीं हैं. इस वायरस से तो कभी-न-कभी छूटेंगे, पर उस वायरस का क्या… जिसने सबको दबोचा है और किसी को उसकी पकड़ में होने का अंदाज़ा भी नहीं है… यह भी पढ़ें: अपनी इमोशनल इंटेलीजेंसी को कैसे इम्प्रूव करें? (How To Increase Your Emotional Intelligence?) मुआ इंटरनेट नाम का वायरस ज़रूरत के नाम पर घर-घर में प्रवेश कर चुका है. उसको दूर करने के इंतज़ाम कब होंगे. काश! समय रहते इसके प्रति भी जागरूकता आए, तो क्या बात हो… शायद बच्चों का बचपन बचपन जैसा बीते… शारदा का मन बेचैन हो उठा. कुछ यक्ष प्रश्न उसके मन उद्वेलित करने लगे. सोशल डिस्टेंसिंग करानेवाले कोरोना वायरस के जाने के बाद क्या सबके दिल मिल पाएंगे? क्या बच्चों में बाहर निकलने की, एक-दूसरे से मिलने-जुलने की नैसर्गिक उत्कंठा जागेगी? दिनभर स्क्रीन में सिर दिए लोगों को आसपास सूखती रिश्तों की बेलों में अपने समय की खाद देकर हरियाने की इच्छा जागेगी. आज की चिंता क्या पर्यावरण के प्रति चिंतन में तब्दील होगी… एक प्रश्न जो सबसे ज़्यादा उसे कचोट रहा था कि सब घर पर संतुष्ट है. वर्तमान की मांग होने पर भी आज ये संतुष्टि उसके मन को क्यों चुभ रही है? “अरे मां, आप किस सोच में डूबी हैं…” कविता का स्वर उन्हें सोच-विचार घेरे से बाहर ले आया. भविष्य के गर्भ में छिपे उत्तर तो वर्तमान के प्रयासों और नीयत के द्वारा निर्धारित किए जाने हैं, ये सोचकर शारदा ने गहरी सांस भरी और उठ खड़ी हुईं…
सरोगेसी मतलब है किराये की कोख. साधारण तौर पर बच्चा पैदा करने के लिए सरोगेसी का सहारा तब लिया जाता है जब कोई दंपति नॉर्मली बच्चा पैदा करने में कामयाब नहीं हो पाता. लेकिन यहां हम जिन बॉलीवुड स्टार्स की बात कर रहे हैं, उन सभी ने अलग अलग वजहों से सरोगेसी के ऑप्शन को चुना.
शिल्पा शेट्टी कुंद्रा
पिछले दिनों जब शिल्पा शेट्टी ने 44 साल की उम्र में अचानक एक बेटी की मां बनने की खुशखबरी शेयर की, तो हर कोई हैरान रह गया. इसकी जानकारी खुद अभिनेत्री ने इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर पोस्ट करके दी थी. शिल्पा और उनके पति राज कुंद्रा सरोगेसी के माध्यम से इस प्यारी बच्ची ‘समीषा शेट्टी’ के माता पिता बने. शिल्पा की बेटी का जन्म 15 फरवरी 2020 को हुआ था लेकिन उन्होंने ये न्यूज़ कुछ दिनों पहले ही लोगो को दी. उनका पहला बच्चा विवान 7 साल का है.
शाहरुख़ खान
शाहरुख़ खान और गौरी के तीन बच्चे आर्यन, सुहाना और अब्राहम हैं. इनमें उनका सबसे छोटा बेटा अब्राहम सरोगेसी से ही हुआ था. 27 मई 2013 को जन्मा अब्राहम अपने मम्मी पापा ही नहीं, सुहाना और अब्राहम का भी फेवरेट है और शाहरुख के साथ सबसे ज़्यादा वही नज़र आता है.
आमिर खान
आमिर और उनकी दूसरी बीवी किरण राव का बेटा आजाद भी सरोगेसी से हुआ था. जब दोनों ने शादी की तभी से वो एक बच्चा चाहते थे. आखिरकार सरोगेसी से उनकी ये ख्वाहिश पूरी हुई और आज़ाद का जन्म हुआ. हालाँकि आमिर की पहली बीवी रीना दत्ता के दोनों बच्चे जुनैद और इरा सामान्य तरीके से ही हुए थे.
सनी लियोनी
बॉलीवुड की बेबी डॉल एक्ट्रेस सनी लियोनी और उनके पति डेनियल भी साल 2017 में सेरोगेसी से दो जुड़वा बच्चों के माता-पिता बने. दोनों बेबी बॉय हैं. एक का नाम है अशर सिंह वेबर तो दूसरे का नाम है नोह सिंह वेबर. बता दें कि इससे पहले दोनों ने निशा नाम की एक लड़की भी गोद ली थी.
करण जोहर
47 साल के करण जौहर ने अभी तक शादी नहीं की है लेकिन तीन साल पहले 44 साल की उम्र में उन्होंने पिता बनने का फैसला किया और इसके लिए उन्होंने सरोगेसी का सहारा लिया. इस टेक्नोलॉजी के जरिए वे जुड़वां बच्चों यश और रूही के लीगल सिंगल पेरेंट बन सके. इन बच्चों का जन्म 6 मार्च 2018 में हुआ था.
तुषार कपूर
तुषार भी अनमैरिड एक्टर हैं. उन्होंने भी बिना शादी सिंगल पैरेंट बनने का फैसला किया और 2016 में सेरोगेसी से पिता बने. उनके बेटे का नाम लक्ष्य है. तुषार सिंगल पेरेंट बनकर खुश हैं. एक इंटरव्यू में पिता बनने के बारे में उन्होंने कहा था, “वक्त तेजी से निकलता जा रहा था, मुझे बेबी चाहिए था. 39 साल की उम्र तक मैंने शादी नहीं की थी. तो मैंने सोचा कि मैं शादी तो लेट कर सकता हूं लेकिन उम्र बढ़ने के साथ फैमिली स्टार्ट न कर पाने का डर सता रहा था, इसलिए मैंने सिंगल पेरेंट बनने का फैसला लिया.”
एकता कपूर
अपने भाई की तरह एकता कपूर ने भी बिना शादी सिंगल पेरेंट बनने का फैसला किया। उनके बेटे रवि का जन्म 27 जनवरी 2019 को सरोगेसी से ही हुआ था.
सोहेल खान
सलमान खान के भाई सोहेल खान और उनकी बीवी सीमा के दो बेटे हैं. इन्होंने अपने छोटे बेटे को सरोगेसी से ही जन्म दिया था. इनके छोटे बेटे का नाम योहान हैं जबकि बड़े बेटे का नाम निर्वान हैं.
कृष्णा अभिषेक-कश्मीरा शाह
कॉमेडियन कृष्णा अभिषेक और उनकी एक्ट्रेस पत्नी कश्मीरा शाह ने शादी के बाद पहले सामान्य तरीके से बच्चे के लिए कोशिश की, फिर उन्होंने सरोगेसी का सहारा लिया और साल 2017 में जुड़वा बेटों के प्राउड पैरेंट्स बने. दोनों इन जुड़वा बच्चों के माता-पिता बन कर काफी खुश हैं.
श्रेयस तलपड़े
श्रेयस तलपड़े और उनकी पत्नी दीप्ति शादी के लगभग 14 साल के बाद सेरोगेसी के जरिए एक बेटी के पैरेंट्स बने. 43 साल के हो चुके श्रेयस तलपड़े ने 2004 में मनोचिकित्सक दीप्ति से शादी की थी. शादी के कई साल बाद तक जब उन्हें बच्चे नहीं हुए तो श्रेयस और दीप्ति ने सरोगेसी की मदद ली. आख़िरकार 2018 में दोनों सेरोगेसी के जरिए मां-बाप बनने में कामयाब हुए. इनकी बेटी का नाम आद्या है और दोनों इस बेटी को पाकर बहुत खुश हैं.
आज के ज़्यादातर युवाओं के लिए 90 का दशक उनके ख़्वाबों और सपनों का दशक था. वह ज़माना जब हम स्कूल या कॉलेज में थे और वीडियो एलबम्स और विज्ञापनों में अपने फेवरेट सुपर मॉडल्स को देखकर बहुत सी लड़कियों के दिलों की धड़कनें बढ़ जाती थीं. आज भी उनके चेहरे देखकर हमें अपना वो ज़माना याद आ जाता है. आइए, आज हम अपने उन्हीं फेवरेट मेल मॉडल्स के बारे में जानने की कोशिश करते हैं कि वो कहां हैं और आजकल क्या कर रहे हैं.
जस अरोड़ा (Jas Arora)
उनकी मोहक मुस्कान किसी को भी अपना दिल हारने के लिए मजबूर कर दे. गुर नाल इश्क मीठा, मेरा लौंग गवाचा और यारों सब दुआ करो जैसे वीडियो एलबम्स के ज़रिये सभी के दिलों पर छानेवाले जस अरोड़ा की आज भी लड़कियां दीवानी हैं.
इतनी पॉप्युलैरिटी के बाद वो देव आनंद की फिल्म मैं सोलह बरस की से फिल्म इंडस्ट्री में डेब्यू किया, जिसके बाद दुश्मन, मॉनसून वेडिंग, चलते चलते, प्यार के साइड इफेक्ट्स, एक पहेली लीला और फ्रीकी अली में नज़र आए थे. उन्होंने अपना डिज़ाइनर शू लाइन लॉन्च किया. इनकी कंपनी वेडिंग शूज़ बनाती है.
मिलिंद सोमन (Milind Soman)
मेड इन इंडिया एल्बम के माचो मैन मिलिंद सोमन को भला कौन भूल सकता है. लकड़ी के बॉक्स से निकलते मिलिंद को देखकर न जाने कितनी लड़कियों के दिल धड़कने लगते थे. उस एल्बम के बाद इस कदर प्यार है वीडियो एल्बम में भी मिलिंद काफ़ी डैशिंग लगते हैं. इसके बाद मिलिंद दूरदर्शन के कार्यक्रम मिस्टर व्योम में बतौर मिस्टर व्योम और सी हॉक्स में भी नज़र आये थे.
उसके बाद उन्होंने 16 दिसंबर, रूल्स- प्यार का सुपरहिट फॉर्मूला, भ्रम, से सलाम इंडिया, भेजा फ्राई और बाजीराव मस्तानी जैसी फिल्मों में काम किया. मिलिंद खतरों के खिलाड़ी सीज़न 3 में भी नज़र आये थे, जहां उन्होंने काफ़ी अच्छा परफॉर्म किया था. हाल ही में वेब सीरीज़ फोर मोर शॉट्स प्लीज़ में मिलिंद ने काफी बोल्ड सीन दिए. बचपन से ही फिटनेस फ्रीक मिलिंद आजकल फिटनेस के बहुत से वीडियोज़ शेयर करते रहते हैं. मिलिंद नेशनल लेवल स्विमर रह चुके हैं और उनके पास इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री भी है.
निकेतन मधोक (Niketan Madhok)
1994 में जब निकेतन 17 साल के थे, तब उन्होंने अपना पहला मॉडलिंग असाइनमेंट किया था. एल्बम भीगी भीगी रातों में अनुपमा वर्मा के साथ नज़र आनेवाले निकेतन ने उस एक वीडियो एल्बम से लाखों लड़कियों को अपना दीवाना बना लिया था. निकेतन का मॉडलिंग करियर काफी कामयाब रहा. उन्होंने बड़े बड़े फैशन डिजाइनर्स के साथ काम किया. इंडिया में ही नहीं, इंटरनेशनल लेवल पर निकेतन ने काफ़ी नाम कमाया. वो बिग बॉस में भी नज़र आये थे, जहां उनकी फैन फॉलोइंग देखने लायक थी. आजकल निकेतन प्रोड्यूसर बन गए हैं.
डिनो मोरिया (Dino Morea)
बैंगलुरु में जन्मे डिनो के पिता इटालियन और मां इंडियन हैं. 90 के दशक में डिनो सुपर मॉडल थे और कई ब्रांड्स को प्रमोट करते थे. वो दूरदर्शन के साइंस फिक्शन सीरीज़ कैप्टन व्योम में सॉनिक बने थे. फिल्म प्यार में कभी कभी से उन्होंने फिल्मों में डेब्यू किया. उसके बाद वो राज़, गुनाह, रक्त, ऐसिड फैक्ट्री में नज़र आए. फिल्म राज़ के बाद लड़कियां उनकी दीवानी हो गयी थीं. डिनो ने फियर फैक्टर खतरों के खिलाड़ी में भी भाग लिया था. जल्द ही वो फिल्म मुम्बई सागा में नज़र आनेवाले हैं.
जॉन अब्राहम (John Abraham)
पंजाबी गाने सुरमा से इंडस्ट्री में डेब्यू करनेवाले जॉन अब्राहम ने उसके बाद पंकज उदास के वीडियो अल्बम चुपके चुपके सखियों के संग, हंसराज हंस के तेरी झांझर किसने बनाई वीडियो एल्बम में नज़र आये थे. जहां एक ओर जॉन के किलर लुक ने लाखों लड़कियों को अपना दीवाना बना रखा था, वहीं दूसरी ओर लड़के उनके जैसी बॉडी और पर्सनलिटी चाहते थे. जिस्म फिल्म से बॉलीवुड में डेब्यू करनेवाले जॉन ने उसके बाद मुड़कर पीछे नहीं देखा. आज वो बॉलीवुड के सुपर स्टार हैं और अपनी प्रोडक्शन कंपनी भी शुरू की है. वो नॉर्थ ईस्ट यूनाइटेड फुटबॉल टीम के मालिक भी हैं.
अर्जुन रामपाल (Arjun Rampal )
अपने गुड लुक्स और पर्सनालिटी के कारण अर्जुन की अच्छी खासी फैन फॉलोइंग है. मॉडलिंग के डिंनों में उन्होंने कई प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक विज्ञापन किये. प्यार इश्क और मोहब्बत फिल्म से उन्होंने बॉलीवुड में डेब्यू किया और उसके बाद कई फिल्मों में नज़र आये. अर्जुन आज एक कामयाब ऐक्टर हैं. 2012 में वोटिंग के ज़रिये अर्जुन रामपाल मोस्ट डिज़ायरेबल मैन रह चुके हैं.
इन्दर मोहन सुदान (Inder Mohan Sudan)
दिल था यहां अभी अभी वीडियो एल्बम से लाखों लड़कियों का दिल चुरानेवाले इस 6 फुट 4 इंच के सुपर मॉडल की लड़कियां फैन थीं. 1994 में उन्होंने ग्लैडरैग्स मेल हंट में रनर अप रहे थे. उसके बाद उन्होंने कई ब्रांड के लिए काम किया. फ़िलहाल वो अपने परिवार के साथ लॉस एंजिलिस कैलिफोर्निया में सेटल हो गए हैं.
बिक्रम सलूजा (Bikram Saluja)
तेरे बिन जीना नहीं वीडियो एल्बम से सभी लड़कियों को अपना दीवाना बनानेवाले बिक्रम सलूजा 1994 में मैन ऑफ द ईयर और 1995 में मिस्टर इंडिया का ख़िताब अपने नाम कर चुके थे. टाइटल्स जीतने के बाद बिक्रम सलूजा ने कई प्रिंट और वीडियो प्रोजेक्ट्स किए. उसके बाद उन्होंने थियेटर में भी काम किया. बिक्रम ने फ़िज़ा, एलओसी कारगिल, पेज3 और जस्ट मैरिड जैसी फिल्मों में काम किया. उसके बाद उन्होंने अपनी ख़ुद की प्रोडक्शन कंपनी शुरू की. आजकल वो मुंबई में रहते हुए अपने प्रोडक्शन कंपनी का काम देखते हैं.
– अनीता सिंह
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आसान नहीं होता अपनों को यूं अलविदा कहना, भावनाएँ कहती हैं कि काश कुछ और समय साथ बीत जाता लेकिन जीवन का सबसे बड़ा सच यही है कि शरीर एक न एक दिन मिटता ही है.
जब अपने साथ छोड़ जाते हैं तब लगता है कि काश कोई ऐसा हो जो थोड़ा सहारा दे, थोड़ी मदद कर दे ताकि अपने प्रियजन को दुःख की उस घड़ी में जी भर के देख लें, लेकिन अक्सर ज़िंदगी की कड़वी सच्चाइयों से सामना होने लगता है और दुःख की उस घड़ी में भी जुटना पड़ता है अंतिम यात्रा, अंतिम संस्कार की तैयारियों में. ऐसे में दिल में यही भावना होती है कि शोक मनायें, अपनों को सम्भालें या फिर इस सच्चाई की कठोरता को स्वीकारते हुए जुट जाएँ तैयारियों में… लेकिन कोई है जो इस समय भी आपकी मदद करने को तैयार है, आपके काम की ज़िम्मेदारी को वो खुद लेकर आपको पूरा समय देते हैं कि आप अपनों के साथ इस दुःख दर्द को बाँट सकें और खुद को संभाल सकें. जी हां, डॉक्टर रमणिक पारेख और डॉक्टर ज्योति पारेख अंतिम संस्कार सेवा के कार्य में जुटे हैं अपनी पूरी टीम के साथ ताकि आपको इस दुःख की घड़ी में संभलने का मौक़ा मिले और अपनी भावनाओं को पूरी तरह से आप जी सकें.
इसी संदर्भ में हमने बात की डॉ. पारेख से, तो उन्होंने अपने इस समाजिक काम के विषय में विस्तार से चर्चा की. दरअसल, मेरा खुद का कड़वा अनुभव था जिस वक़्त मेरे पिताजी की मृत्यु हुई थी, हुआ यूँ कि उस वक़्त उनकी बॉडी व पूरी प्रक्रिया में उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए था वो अस्पताल प्रशासन की ओर से नहीं मिला, मेरा दिल बैठ गया था यह सब देख के और उसके बाद ही मेरे ज़ेहन में इस काम का ख़याल आया. मुझे यही महसूस हुआ कि जिस वक़्त हम अपनों को खोने के गहरे दुःख में होते हैं उसी वक़्त हमें उनके अंतिम संस्कार से जुड़ी पूरी प्रक्रिया व काम में जुटना पड़ता है, जो बेहद मुश्किल होता है,क्योंकि ये भावनात्मक समय होता है, हमें लगता है कोई सम्भाल ले हमें, कोई दुःख को बाँट ले, लेकिन हमें भावनाओं को दरकिनार कर समाजिक व पारिवारिक ज़िम्मेदारियों में जुटना पड़ता है और यह बेहद तकलीफ़ देह होता है. ऐसे में मुझे लगता है कि किसी के काम आना सबसे बड़ी सेवा है.
हम अस्पताल से लेकर अंतिम क्रिया तक का पूरा बंदोबस्त करते हैं. सारी सामग्री मुहैया कराते हैं ताकि जो परिवार दुःख में है वो अपनी भावनाओं को हल्का कर सके बजाय इस काम में जुटने के. हमारी 20 लोगों की टीम है और मुंबई शहर में हम अब तक लगभग 13500 लोगों की अंतिम यात्रा को सम्माजनक तौर पे पूरा करवा चुके हैं और अब तक किसी भी परिवार की ओर से कोई शिकायत नहीं मिली. हमारी पूरी टीम बेहद विनम्र है और पूरी ईमानदारी से अपना काम करती है.
जहां तक कोरोना का सवाल है तो उसकी गाइडलाइन्स अलग हैं तो वो हमारे दायरे में नहीं आता. लेकिन कोरोना के समय भी रोज़ाना 5-7 अंतिम क्रियाएँ हम करवा रहे हैं क्योंकि यह मुश्किल दौर है और ऐसे में परिवार जनों को अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है इसलिए हम उनकी मदद करते हैं ताकि उनका दुःख कुछ हद तक हम बाँट सकें. हमारी फोन सेवा भी चौबीस घंटे चलती है, कोई भी ज़रूरतमंद हमें इन नम्बर्स पर फोन कर सकता है- +91 86553 55591, +91 86553 55592, +91 22-3355500, +91 92233 55511
हमें बेहद सुकून मिलता है कि इस तरह के दुःख दर्द में हम लोगों को सहयोग कर पाते हैं और उनकी ज़िम्मेदारी बांट सकते हैं.
आंखों में पति के जाने का दर्द और चेहरे पर शहीद की पत्नी कहलाने का रौब, ये कॉम्बिनेशन सिर्फ़ शहीद जवान की पत्नी के चेहरे पर ही नज़र आ सकता है. नम आंखों और मुस्कुराते चेहरे के साथ पति को अंतिम विदाई देना बहुत हिम्मत का काम है और ये हौसला सिर्फ़ फौजी की पत्नी के पास होता है. हंदवाड़ा के शहीद कर्नल आशुतोष शर्मा की पत्नी पल्लवी शर्मा से जब हमने बात की, तो जाना देश के लिए मर-मिटना क्या होता है. पल्लवी शर्मा ने हमें शहीद कर्नल आशुतोष शर्मा की जांबाज़ी के जो तमाम क़िस्से बताए, वो आपको भी ज़रूर जानने चाहिए. हम अपने घरों में चैन से इसलिए सो पाते हैं, क्योंकि देश का जवान सरहद पर जागकर हमारी रक्षा कर रहा होता है. पढ़िए, देश पर मर-मिटने वाले शहीद कर्नल आशुतोष शर्मा की कहानी, उनकी पत्नी पल्लवी शर्मा की ज़ुबानी.
एक फौजी की बीवी होना कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी होती है? मैं एक शब्द भी न बोलूं, फिर भी आप मेरी बॉडी लैंग्वेज से समझ जाएंगे कि ये पक्का किसी फौजी की बीवी होगी. आर्मी हमें वो कॉन्फिडेंस देती है, ज़िंदगी जीने का हौसला देती है. मैं अकेले 30 लोगों का पार्टी का खाना बना सकती हूं, मैं अकेले अपनी बेटी की हर ज़िम्मेदारी पूरी कर सकती हूं. आर्मी हमें हर अच्छे-बुरे वक़्त के लिए तैयार कर देती है. हम अपने सीनियर्स को देखकर अपने आप इंप्रूव होते चले जाते हैं, कभी उनसे सीखकर, कभी उनकी डांट खाकर. एक फौजी की बीवी कभी ऑर्डिनरी नहीं हो सकती. ऐसी ज़िंदगी और ऐसी मौत आम आदमी को नसीब नहीं होती. फौज की वर्दी फौजी के साथ-साथ उसके परिवार को भी बहुत स्ट्रॉन्ग बना देती है. फौजी वर्दी पहनकर अपना जज़्बा दिखाता है और उसका परिवार उसकी वर्दी का सम्मान करके अपना जज़्बा दिखाता है. एक फौजी जंग के लिए बेफिक्र होकर घर से इसलिए निकल पाता है, क्योंकि उसे पता होता है कि घर पर उसकी कमांडर बीवी सबकुछ अकेले संभाल लेगी. आर्मी हमें इतना आत्मनिर्भर बना देती है कि फौजी का परिवार बड़ी से बड़ी तकलीफ़ हंसते-हंसते झेल जाता है.
जब आपको कर्नल आशुतोष शर्मा की शहादत की ख़बर मिली, तो ये बात आपने अपनी बेटी को कैसे बताई? हम सब में से किसी से भी आशु की बात नहीं हो पा रही थी. मुझे आशंका होने लगी थी कि अब मुझे किसी भी तरह की ख़बर के लिए तैयार रहना होगा. मैंने रात में कुहू (आशुतोष और पल्लवी की 11 साल की बेटी) के सोने से पहले उसे बताया कि बेटा, पापा से किसी की बात नहीं हो पा रही है, हमें बुरी घटना के लिए भी तैयार रहना होगा. फिर सुबह जब मुझे इस बात की ख़बर मिली, तो मैंने कुहू को उठाया और कहा, “बेटा, पापा इज़ नो मोर, उनकी डेथ हो गई है.” मेरी बात सुनकर वो रोने लगी, तो मैंने उससे कहा, “बेटा, जी भरकर रो लो, ये तुम्हारा हक़ है, तुम्हारा नुक़सान हुआ है.” आशु को लंबे बाल बहुत पसंद थे इसलिए जब हमें उन्हें लेने जाना था, तो मैंने कुहू से कहा कि तुम अपने बाल वॉश कर लो, मैं पापा को तुम्हारे बाल दिखाऊंगी, उनसे कहूंगी कि तुम्हारी हाइट थोड़ी और बढ़ गई है. जब हमें आशु को एयरपोर्ट रिसीव करने जाना था, तब भी मैं कुहू को अपने साथ ले गई. मैंने उससे कहा, “देखो, हर बार पापा को रिसीव करने हम इसी एयरपोर्ट पर आते थे और आज भी हम उन्हें लेने यहीं आए हैं.” एयरपोर्ट से लेकर आशु की अंतिम विदाई तक मैंने हर पल कुहू को अपने साथ रखा. मैं उसे स्ट्रॉन्ग बना रही थी, उसका सच्चाई से सामना करा रही थी. आशु की अंतिम विदाई के समय मैंने ऑफिसर्स से इजाज़त मांगी और कुछ समय आशु के साथ अकेले बिताया. उस वक़्त मैंने आशु से ढेर सारी बातें की, जैसे मैं हमेशा उनके घर लौटने पर किया करती थी. मैंने आशु से कहा, “देखो, कुहू की हाइट थोड़ी और बढ़ गई है ना? मैं तुम्हारी बेटी के बाल हमेशा लंबे रखूंगी, लेकिन बीच-बीच में जब मैं उसके बाल ट्रिम करवाऊंगी, तो प्लीज़ मुझसे झगड़ना मत.”
जब हम एयरपोर्ट से निकले, तो मैं जानती थी कि जवानों के हाथ में जो कार्टन है, उसमें क्या है, उसमें आशु की खून से सनी यूनिफॉर्म थी, उनके शूज़, उनके सॉक्स थे. मैंने उनसे कहा, “प्लीज़, आप ये कार्टन मुझे दे दीजिए. एयरपोर्ट से लेकर श्मशान पहुंचने तक पूरे 45 मिनट मैंने वो कार्टन अपनी गोद में रखा. उस वक़्त भी कुहू मेरे पास बैठी थी. रास्तेभर मैं वो गाना गा रही थी, जो मैं अक्सर आशु के लिए गाया करती थी-
एक दिन आप यूं हमको मिल जाएंगे, फूल ही फूल राहों में खिल जाएंगे, मैंने सोचा न था एक दिन ज़िंदगी होगी इतनी हंसी, गाएगा आसमां झूमेगी ये ज़मीं, मैंने सोचा न था
आशु हमेशा कहते थे, ज़िंदगी एक बार ही मिलती है पल्लवी, कफ़न में चले जाना है, इसलिए ज़िंदगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिए. वो किंग साइज़ लाइफ में विश्वास करते थे, उन्होंने अपनी ज़िंदगी का एक-एक पल खुलकर जीया और मौत भी आलीशान पाई. अब आप ही बताइए, ऐसे जवान, ऐसे शहीद की बीवी होने पर किसे गर्व नहीं होगा.
क्या आपको पहले ही अंदेशा हो गया था कि कुछ ग़लत होने वाला है? मैंने आशु के साथ 20 ख़ूबसूरत साल बिताए हैं. आशु के साथ रहकर मैंने जाना कि देश के लिए मर-मिटना क्या होता है. हम आज स्मार्ट कम्युनिकेशन के युग में जी रहे हैं. मेरी तो आशु से काफी समय से बात नहीं हुई थी, लेकिन जब मुझे ये पता चला कि किसी से भी कम्युनिकेशन नहीं हो पाया है, तो मैं समझ गई थी कि कुछ गड़बड़ होने वाला है. उम्मीद पर तो दुनिया क़ायम है, लेकिन हमारा मन जान लेता है कि जो हो रहा है, वो सही नहीं है.
शहीद कर्नल आशुतोष शर्मा को खोने के बाद परिवार में कैसा माहौल है? आर्मी ही हमारा परिवार है और हमारा आर्मी परिवार हमें कभी अकेला नहीं रहने देता. आर्मी ऑफिसर्स की बीवियों की आपस में बहुत अच्छी बॉन्डिंग होती है. यहां पर भी सीनियर्स अपने जूनियर्स को ट्रेंड करते हैं. बहुत प्यार देते हैं, कई बार हक़ से डांट भी देते हैं. अगर हम कहीं बाहर गए हैं, तो ये चिंता नहीं होती कि परिवार की देखभाल कौन करेगा, उनके लिए खाना कौन बनाएगा, बिना कुछ कहे ही सब मिलकर आपका काम कर देते हैं. मेस है, फिर भी सब एक-दूसरे के लिए खाना बनाते हैं, एक-दूसरे का पूरा ध्यान रखते हैं. बर्थडे, एनीवर्सरी, त्योहार, शादी-ब्याह… हम अपना हर सुख-दुख अपनी आर्मी फैमिली के साथ शेयर करते हैं इसलिए हम कभी अकेले नहीं होते. ऐसा प्यार तो नॉर्मल परिवारों में भी नहीं होता. आर्मी परिवार का हिस्सा होना एक अलग ही अनुभव है, इसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. हां, लेकिन आर्मी परिवार का प्यार पाने के लिए आपको भी आर्मी के प्रति पूरी तरह समर्पित होना पड़ता है. पति वर्दी पहनकर अपनी ज़िम्मेदारी निभाता है और आपको बिना वर्दी पहने अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होती है.
क्या आप कर्नल आशुतोष शर्मा की यूनिट में जाती थीं? मैं आशु की यूनिट में 13 बार जा चुकी हूं. 21-राष्ट्रीय राइफल्स हंदवाड़ा में जहां आशु पोस्टेड थे, उस यूनिट के चप्पे-चप्पे में आशु के निशां हैं. वहां की हर चीज़ आशु ने बहुत प्यार से बनवाई है. उन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर शहीद स्मारक से लेकर खरगोशों के लिए घरौंदा तक बनवाया है. मैंने खुद वहां के मेस में साथ के ऑफिसर्स के लिए खाना बनाया है. उनके लिए मेनू तैयार किया है. मैं क्या, आशु से जुड़ा कोई भी शख्स उन्हें कभी भूल नहीं सकता.
बहादुरी का दूसरा नाम थे शहीद कर्नल आशुतोष शर्मा, मिल चुके हैं दो वीरता मेडल 21-राष्ट्रीय राइफल्स यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर रहे शहीद कर्नल आशुतोष जम्मू-कश्मीर में कई मिशन का हिस्सा रहे. 3 मई को 2020 को उन्होंने हंदवाड़ा में मुठभेड़ के दौरान 2 आतंकियों को मार गिराया, लेकिन इस दौरान कर्नल आशुतोष समेत 5 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए. कर्नल आशुतोष को दो बार वीरता पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. शहीद आशुतोष पिछले पांच सालों में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में अपनी जान गंवाने वाले कर्नल रैंक के पहले कमांडिंग ऑफिसर थे. इससे पहले साल 2015 के जनवरी में कश्मीर घाटी में कर्नल एमएन राय शहीद हुए थे. कर्नल आशुतोष शर्मा काफी लंबे समय से गार्ड रेजिमेंट में थे. गार्ड रेजिमेंट लंबे समय से घाटी में सेवा दे रही है. कर्नल आशुतोष इकलौते कर्नल थे, जिन्हें कश्मीर में दो बार वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जिसमें एक कमांडिंग ऑफिसर के रूप में उनकी बहादुरी के लिए शामिल है. शहीद आशुतोष शर्मा को कमांडिंग ऑफिसर के तौर पर अपने कपड़ों में ग्रेनेड छिपाए हुए आतंकी से जवानों की जिंदगी बचाने के लिए वीरता मेडल से सम्मानित किया जा चुका है. दरअसल, एक आतंकी उनके जवानों की ओर अपने कपड़ों में ग्रेनेड लेकर बढ़ रहा था, तब शर्मा ने बहादुरी का परिचय देते हुए आतंकी को गोली मारकर अपने जवानों की जान बचाई थी. एनकाउंटर में शहीद कर्नल आशुतोष शर्मा के परिवार को उनकी शहादत पर गर्व है. उनकी छोटी-सी बेटी कुहू भी आर्मी जॉइन करना चाहती है. कर्नल शर्मा के बड़े भाई का कहना है कि उनमें देश सेवा का अटूट जज़्बा था.
आर्मी पर आधारित बॉलीवुड की कौन सी फिल्म आपको सबसे ज़्यादा पसंद है? आशु के साथ हमने आख़िरी फिल्म ‘केसरी’ देखी थी. ये फिल्म आशु के दिल के बहुत क़रीब है, क्योंकि इसमें देश के लिए मर-मिटने का वो जज़्बा है, जो किसी साधारण इंसान में नहीं हो सकता. हंदवाड़ा एनकाउंटर के बाद मैं ‘केसरी’ फिल्म से अपने आशु की बहादुरी को जोड़कर देख पा रही हूं. और ये कहते हुए पल्लवी अपने आशु को याद करते हुए ‘केसरी’ फिल्म का ये गाना गाने लगी- ओ हीर मेरी, तू हंसती रहे तेरी आंख घड़ी भर नम ना हो मैं मरता था जिस मुखड़े पे, कभी उसका उजाला कम ना हो
कर्नल आशुतोष शर्मा से आपकी मुलाक़ात कब हुई थी? इसके लिए आपको मेरे साथ बीस साल पीछे चलना पड़ेगा. ये उन दिनों की बात है जब मैंने आर्मी के लिए अप्लाई किया था और मेरा सलेक्शन भी हो गया था. जब मैं आर्मी की कोचिंग के लिए गई, वहां मेरी आशु से पहली मुलाक़ात हुई थी. मुझे आज भी याद है 2 जून 2000 की वो तारीख, जब मुझे देखते ही आशु ने अपने साथ वाले लड़के से कहा था, देख, तेरी भाभी आ गई (मैंने तो ये सुना नहीं, बाद में आशु ने मुझे इसके बारे में बताया था). फिर धीरे-धीरे दोस्ती बढ़ी, लंच शेयर होने लगा और हम एक-दूसरे के करीब आने लगे. जब हमने शादी का फैसला किया, तो हम दोनों ने मिलकर ये तय किया कि आशु आर्मी ज्वाइन करेंगे और मैं हमारा घर संभालूंगी. आशु के लिए मैंने अपने बचपन के सपने को छोड़ दिया और अपने प्यार को हमेशा के लिए अपना लिया. आशु और मैं शायद इसलिए मिले, क्योंकि हम एक जैसे हैं. मैं ऐसे परिवार से हूं, जहां घर का कोई सदस्य आर्मी में नहीं है. आज से 42 साल पहले जब मेरा और मेरी जुड़वां बहन का जन्म हुआ, तब बेटियों के जन्म पर खुशियां नहीं मनाई जाती थी. लेकिन मेरे पापा ने न सिर्फ हमारे जन्म का जश्न मनाया, बल्कि हमें बेटों जैसी परवरिश भी दी. एनसीसी, माउंटेनियरिंग से लेकर आर्मी के लिए अप्लाई करने तक मैंने सिर्फ़ आर्मी ऑफिसर बनने का सपना देखा था, लेकिन आशु से मिलने के बाद मुझे आशु के अलावा कुछ नज़र नहीं आया. आज भी मैं आशु के साथ ही जी रही हूं, वो मुझसे कभी दूर हो ही नहीं सकते. पहले तो मुझे और बेटी को आशु से बात करने के लिए इंतज़ार करना पड़ता था कि कब बात करें, शायद बिज़ी होंगे, सो रहे होंगे, लेकिन अब तो हम उनसे हर समय बात कर सकते हैं, क्योंकि अब वो हर समय हमारे साथ रहते हैं.
मैं तिरंगा फहराकर वापस आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर आऊंगा, लेकिन मैं वापस आऊंगा ज़रूर… तिरंगे पर मर-मिटने वाले वीर जवान कर्नल आशुतोष शर्मा को शत-शत नमन!
आओ झुक कर सलाम करें उनको जिनके हिस्से में ये मुक़ाम आता है ख़ुशनसीब होता है वो खून जो देश के काम आता है
ये देश आपका और आपकी शहादत का हमेशा कर्ज़दार रहेगा कर्नल आशुतोष शर्मा, आप हमारे दिल में हमेशा ज़िंदा रहेंगे देश का गौरव बनकर!
आज विक्की कौशल का जन्मदिन है और उनके छोटे भाई सनी कौशल ने बड़े ही मज़ेदार तरीक़े से उन्हें जन्मदिन की बधाई दी. उन्होंने कहा कि कुछ नहीं बदला.. फोटो पेपर से फोन पर आ गए.. तू 2 फीट 6 से 6 फीट 2 का हो गया, बाकी कुछ नहीं बदला.. हम पहले कूल थे, आज भी वेरी कूल है.. बाकी कुछ नहीं बदला.. मैं लेफ्ट था, तू राइट है.. देख कुछ नहीं बदला.. जन्मदिन मुबारक हो ब्रदर.. ढेर सारा प्यार… सच इसे कहते हैं एक प्यार करनेवाले भाई का मस्तीभरा मुबारकबाद. विक्की-सनी दोनों भाइयों में बड़ा ही प्रेम है. अक्सर वे सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को लेकर शरारत करते रहते हैं. कभी बचपन की फोटो शेयर करते हैं, तो कभी एक-दूसरे की टांग खींचते हैं. दोनों भाई से बढ़कर एक-दूसरे के दोस्त हैं. सनी भी अपने भाई विक्की की तरह एक्टर हैं. उनकी अनफॉरगेटेबल हीरो वेब सीरीज काफ़ी पसंद की गई थी. सनी ने बचपन की अपने और विक्की की बड़ी प्यारी-सी तस्वीर इंस्टाग्राम पर शेयर की और ऊपर दी गई बहुत ही सुंदर पंक्तियां लिखकर भाई को विश किया. विक्की पंजाब के होशियारपुर से हैं, लेकिन बचपन, पढ़ाई सब कुछ मुंबई में हुआ. विक्की कौशल ने फिल्मों में अभिनय के लिए काफ़ी संघर्ष किया. वैसे वह बचपन से ही फिल्मों में आना चाहते थे. अभिनेता बनना चाहते थे, लेकिन टेली कम्युनिकेशन की डिग्री लेने के बाद वे विदेश में नौकरी के लिए चले गए. लेकिन जॉब उन्हें रास नहीं आया. फिर एक नए सिरे से फिल्मी दुनिया में संघर्ष शुरू किया. बकौल उनके पिता श्याम कौशल, जो स्टंट डायरेक्टर हैं, विक्की हर रोज़ सुबह 10:00 बजे नाश्ता करके घर से निकल जाते ऑडिशन के लिए. उनके पिता ने भी अपने साथ विकी की बचपन की मासूम प्यारी-सी तस्वीर शेयर करके भावुक शब्दों के साथ बधाई दी, उन्होंने कहा- हैप्पी बर्थडे पुत्तर. तुम्हें हमेशा मेरा प्यार और दुआएं. भगवान तुम्हें हमेशा ख़ुश रखे. मैं बहुत ख़ुश हूं कि अब मुझे तेरे नाम से जाना जाता है. मैं तुझसे प्यार करता हूं और मुझे तुझ पर गर्व है. रब राखा… विकी कौशल को मसान फिल्म से पहचान मिली. इसके लिए उन्हें अवॉर्ड भी मिला. इससे पहले उन्होंने पांच साल तक काफ़ी संघर्ष किया. अनुराग कश्यप के असिस्टेंट के रूप में गैंग्स ऑफ वासेपुर फिल्म में काम किया. उनकी ही लव शव ते चिकन खुराना और बॉम्बे वेलवेट में अभिनय करने का मौक़ा मिला. लेकिन सही मायने में संजू और उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक फिल्म उनके करियर के लिए संजीवनी साबित हुई. उरी में उनके अभिनय और जोश ने हर किसी को प्रभावित किया, ख़ासकर How’s The Josh?.. डॉयलाग काफ़ी मशहूर हुआ था. उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक ने नाम के साथ उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिलवाया. अंतिम बार विक्की कौशल करण जौहर की भूत फिल्म में दिखाई दिए थे. इसका पार्ट टू भी आनेवाला है. इसके अलावा कई बड़े प्रोजेक्ट्स भी उनके हाथ में है, जैसे- उधम सिंह, फील्ड मार्शल सैम मानकशॉ की बायोपिक, तख़्त आदि. कोरोना वायरस के कारण देशभर में लॉकडाउन है इस वजह से बाहर जाना या पार्टी तो नहीं होगा. पर घर में परिवार के साथ जश्न ज़रूर होगा, जिसमें छोटे भाई सनी उनके लिए स्पेशल डिश बनाएंगे. जैसा वे पहले भी बनाते रहे है. हां, विकी उनकी मदद ज़रूर कर देंगे. यक़ीनन घर पर सेलिब्रेट किया हुआ यह उनका यादगार बर्थडे होगा. मेरी सहेली की तरफ़ से उन्हें जन्मदिन मुबारक हो!.. आइए, उनके बचपन को तस्वीरों के ज़रिए देखते हैं…
क्रिकेटर विराट कोहली पत्नी अनुष्का शर्मा की तारीफ करने का कोई मौका नहीं छोड़ते, चाहे क्रिकेट करियर में सफलता की बात हो, या उन्हें धैर्य सिखाने की बात हो, विराट अपने जीवन की तमाम खुशियों का श्रेय अनुष्का को देते हैं और जमकर उनकी तारीफ भी करते हैं.
अब जब कि अनुष्का शर्मा के प्रोडक्शन हाउस की वेब सीरीज ‘पाताल लोक’ अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हो गई है, तो विराट कोहली ने भी पूरी सीरीज देख डाली और एक तस्वीर शेयर करके इस वेब सीरीज की खूब तारीफ की है.
अपने इंस्टाग्राम पर जो फ़ोटो विराट ने शेयर की है, उसमें विराट के सामने लैपटॉप खुला हुआ है और स्क्रीन पर ‘पाताल लोक’ वेब सीरीज नजर आ रहा है. तस्वीर में विराट कैमरे की ओर देखते हुए नज़र आ रहे हैं. इस फोटो के साथ उन्होंने लिखा है, “मैंने कुछ समय पहले ही ‘पाताल लोक’ का पूरा सीजन देख लिया था. मुझे पता था कहानी, स्क्रीनप्ले और अभिनय के हिसाब से यह मास्टरपीस साबित होगा. अब यह देखकर कि लोगों को यह शो कितना पसंद आ रहा है, मैं बस यह कंफर्म करना चाहता हूं कि मैंने ये शो कैसे देखा.” साथ ही वो अनुष्का पर बधाई देते हुए प्यार भी बरसाते नज़र आये,”मुझे अपने प्यार अनुष्का शर्मा पर गर्व है कि उन्होंने इतनी शानदार सीरीज प्रोड्यूस की और अपनी टीम पर बहुत भरोसा जताया.”
विराट ने बताया कि उन्होंने ये सीरीज दूसरों से काफी पहले ही देख ली थी. विराट ने कुछ अलग अंदाज में इस सीरीज की तारीफ़ करते हुए ट्वीट भी किया, ‘एक शानदार शो की निर्माता से शादी का ये फायदा है कि मैंने इसे हफ्तों पहले देख लिया था. निश्चित रूप से ये मुझे बहुत पसंद आया. Well done Team Clean Slate Films’
जहां तक इस वेब सीरीज की बात है, अभी दो दिन पहले ही ये रिलीज़ हुई है और क्रिटिक्स से लेकर दर्शकों तक की इसे जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है. सीरीज के सभी कलाकारों के अभिनय की भी खूब तारीफ हो रही है.
क्या है ‘पाताल लोक’ की कहानी? एक मशहूर पत्रकार हैं संजीव मेहरा. टीवी पर प्राइम टाइम शो करते हैं. एक दिन उन पर हमला हो जाता है. पुलिस तुरंत एक्टिव होती है और इस हमले में शामिल चारों लोगों को पकड़ लेती है. ये चार लोग हैं. तोप सिंह, कबीर एम, मैरी लिंगदोह और विशाल त्यागी. इस केस की छानबीन की ज़िम्मेदारी इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी को दी जाती है. जब हाथीराम इस मामले की तह तक पहुंचने की कोशिश करता है, तब उसे समझ आता है कि ये खेल पुलिस, पत्रकार और आरोपियों से कहीं बड़ा और जटिल है.
‘पाताल लोक’ में जयदीप अहलावत, नीरज काबी, अभिषेक बनर्जी, गुल पनाग, आकाश खुराना, विपिन शर्मा, राजेश शर्मा, जगजीत संधू और अनूप जलोटा ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं. अविनाश अरुण और प्रोसित रॉय इस वेब सीरीज के निर्देशक हैं.
बतौर प्रोड्यूसर अनुष्का की ये पहली वेब सीरीज़ है. हालांकि अपने प्रोडक्शन हाउस के तले ‘एनएच 10’, ‘फिल्लौरी’ और ‘परी’ जैसी फिल्में बना चुकी हैं.
लोगों की नज़र में वो देवता थे, पर नेहा की नज़र में वो बेचारा भला आदमी, जिसका सब लाभ उठाया करते हैं. ‘शादी के बाद कुछ समय तक तो उस प्यार का स्वाद चखने को मिलता ही है, जो सागर के उस ज्वार की तरह होता है, जो तन-मन और आत्मा तक को भिगो देता है. जो उन्माद की तरह चढ़ता है, तो धरती अंतरिक्ष लगने लगती है…’ सखियों के कहे ये वाक्य सिम्मी के दिल में कील की तरह चुभते रहते.
लंबा कद, स्वर्णाभा लिए गौर वर्ण और तराशे हुए नैन-नक्श, उस पर गीत-संगीत, पाक कला, सिंगार कला और अन्य घरेलू कार्यों में अद्भुत कौशल. लगता था, ईश्वर ने बड़ी फुर्सत से उसमें रूप-गुण भरे थे. सिम्मी बड़ी-बूढ़ी औरतों और सखियों से सुनते-सुनते ख़ुद भी यक़ीन करने लगी थी कि उसे तो कोई परियों का राजकुमार मांगकर ले जाएगा. ब्याहकर अपने घर आई, तो अविचल में अपने रूप के सम्मोहन में मंत्र-मुग्ध ख़ुद पर जान छिड़कनेवाले सपनों के राजकुमार जैसा कुछ भी न पाया. उसमें जितनी पिपासा थी, अविचल में उतनी ही निर्लिप्तता. वो अल्हड़ कैशोर्य की उन्मुक्त उमंगों की जीवंतता थी, तो अविचल अपने माता-पिता के देहांत के बाद छोटी आयु से ही परिवार की ज़िम्मेदारियां सम्हालते हुए एक धीर-गंभीर सांचे में ढली शालीनता और कर्त्तव्यनिष्ठा की प्रतिमूर्ति. तीन बहनों की शादी करने और भाई को हॉस्टल में डालने के बाद उन्होंने शादी की थी. अविचल गणित की ट्यूशंस पढ़ाते थे. एक घंटा वे ग़रीब बच्चों को मुफ़्त में पढ़ाने के लिए भी देते थे. बहुत-से रिश्तेदार शहर में रहते थे. किसी को कोई भी काम हो, अविचल कभी मना नहीं करते थे. और तो और, दूधवाले का बेटा बीमार हो या सब्ज़ीवाले के बेटे का स्कूल में प्रवेश कराना हो, अविचल हमेशा तत्पर रहते. लोगों की नज़र में वो देवता थे, पर नेहा की नज़र में वो बेचारा भला आदमी, जिसका सब लाभ उठाया करते हैं. ‘शादी के बाद कुछ समय तक तो उस प्यार का स्वाद चखने को मिलता ही है, जो सागर के उस ज्वार की तरह होता है, जो तन-मन और आत्मा तक को भिगो देता है. जो उन्माद की तरह चढ़ता है, तो धरती अंतरिक्ष लगने लगती है…’ सखियों के कहे ये वाक्य सिम्मी के दिल में कील की तरह चुभते रहते. उस प्यार की प्यास में वो ख़ूब मन लगाकर तैयार होती कि कभी तो उसका अद्वितीय रूप अविचल की ज़ुबान को प्रशंसा करने को विवश कर दे. अक्सर रात में कोई रोमांटिक गीत लगाकर उस पर थिरकने लगती या कोई गीत गुनगुनाने लगती कि कभी तो उन गुणों की तारीफ़ में चंद शब्द सुनने को मिल जाएं, जिनके कारण लोग उसकी तुलना अप्सराओं से किया करते थे, पर सब बेकार. अविचल मुस्कुराते हुए उसे देख-सुन तो लेते, पर कभी तारीफ़ के दो शब्द उनके मुंह से न निकले. पहली बार मायके गई, तो दीदियों ने सलाह दी लज़ीज़ व्यंजनों की चाभी से दिल का ताला खोलने की कोशिश कर. लौटकर आई, तो वो चाची गांव वापस जा चुकी थीं, जो पहले खाना बनाया करती थीं. उसका रसोई में प्रवेश कराया गया, तो अवसर भी मिल गया पेट के रास्ते दिल में घुसने का. फिर क्या था, लज़ीज़ व्यंजनों से मेज़ सजा डाली, पर खाना चखकर अविचल की आंखों में आंसू आ गए. यह भी पढ़ें: ये उम्मीदें, जो हर पत्नी अपने पति से रखती है (Things Wife Expect From Husband)
“मैं ये खाना खा नहीं सकूंगा. तुम्हें शायद चाची ने बताया नहीं कि मैं मिर्ची बिल्कुल नहीं खा पाता. तुम मेरे लिए दूध ला दो, मैं उसमें रोटी भिगोकर खा लूंगा.” दूध लेकर आई, तो अविचल उसकी प्लेट लगा चुके थे. उसे पकड़ाते हुए बोले, “तुम भी मेरे कारण इतने दिनों से ऐसा खाना क्यों खाती रहीं? अब से अपने लिए ढंग से अपनी पसंद का बना लिया करो.” सिम्मी को काटो तो ख़ून नहीं. उसके सामने उसके पति बड़ी निर्लिप्तता से दूध-रोटी खा रहे थे और उसकी थाली यूं सजाई थी कि खाना न निगलते बन रहा था, न उगलते. यही हाल पलकों में छलक आए आंसुओं का भी था. जीवन ऐसे गुज़रने लगा था, जैसे घड़ी की सुइयां एक परिधि के अंदर चक्कर काटती रहती हैं. अर्थहीन, रसहीन, नवीनताविहीन. शादी की वर्षगांठ आई, तो इसी बहाने सिम्मी ने दिल की बहुत-सी गांठें खोलने की ठान ली. उसने ख़ूब सुंदर क्रॉकरी में कैंडल लाइट डिनर अविचल के मनपसंद खाने से सजाया. एक स्वेटर तो बुनकर तैयार ही कर लिया था. बहुत सुंदर-सा कार्ड भी ले आई. बहुत ही रोमांटिक अंदाज़ में कार्ड पेश किया, तो अविचल ने चौंककर कार्ड हाथ में लेकर सीधी तरफ़ से देखने से पहले ही उलटकर उसका दाम देखा और बोले, “सौ रुपए का कार्ड! इतने रुपए कैसे बरबाद कर सकीं तुम इस फ़ालतू की चीज़ में? हां, स्वेटर बनाकर अच्छा किया. घर के बने स्वेटर में बहुत बचत होती है, पर मेरे पास तो अभी दो हैं. काम चल रहा है. इसे पंकज को दे देना. वैसे भी हॉस्टल में रहनेवाले बच्चों को सुंदर चीज़ें पहनने का बड़ा शौक़ होता है.” सिम्मी की पलकें छलक उठीं. उसने सोचा, ‘अब मैं सबके लिए बुनूंगी, पर इनके लिए कभी नहीं.’ इस आदमी के सीने में दिल की जगह एक पत्थर रखा हुआ है. इसमें जगह बनाने की कोशिश ही व्यर्थ है. वो सपनीला प्यार, अविचल के दिल में, उसकी ज़ुबां पर, उसकी आंखों में अपने लिए पिपासा, अपना महत्व या अपने बिना न जी सकने की लाचारगी देखने-सुनने की चाह एक कसक थी. ये चाह पहले निराशा, फिर आक्रोश, फिर कटुक्तियों में बदलती जा रही थी. अंतस में कैद ऊर्जा खीझ और चिड़चिड़ेपन के रूप में बाहर आने लगी थी कि किसी नवागत के स्पंदन ने तन-मन को पुलक से भर दिया. डॉक्टर ने उसकी रिपोर्ट्स देखकर उसे एनीमिक बताते हुए खानपान की एक लंबी सूची पकड़ाई, तो अविचल ने ये ज़िम्मेदारी ख़ुद पर ले ली. वे नियम से फल, सब्ज़ी, दूध आदि लाते, दही जमाते और उसे हर चीज़ ज़बर्दस्ती खिलाते. रसोई में जाते ही सिम्मी को उबकाई आने लगती थी, तो अविचल ने कह दिया कि वो केवल इतनी मेहनत कर ले कि ख़ुद ठीक से खा सके, इसीलिए वो बस एक चटपटी सब्ज़ी और रोटियां किसी तरह बना लेती. अविचल के लिए अलग से सादी सब्ज़ियां बन ही नहीं पाती थीं. वे कुछ कहते भी नहीं थे. सलाद तो ख़ुद ही बना लेते थे. दूध-रोटी, दाल-रोटी या नमकीन चावल खा लेते, पर सिम्मी को पूरा खाना अपने सामने ऐसे सख़्ती से खिलाते, जैसे वो उनकी विद्यार्थी हो. अगर थोड़े प्यार से खाने के लिए कहते, तो यही लम्हे कितने रोमांटिक हो सकते थे. सोचकर सिम्मी अक्सर इस पाषाण हृदय के सपाट अंदाज़ पर कुढ़ जाती.
समय के चक्र ने सिम्मी की गोद में बेटे का उपहार डाला. उसके आगमन और मुंडन के उत्सव बहुत सादगी के साथ सम्पन्न हुए. न कोई पार्टी, न धूम-धड़ाका. अविचल की सारी बहनें आतीं और मिलकर घर में ही खाना बनाकर रिश्तेदारों को दावत दे दी जाती. अपने लिए किसी मनोरंजन पर ख़र्च न करने की टीस तो सिम्मी बर्दाश्त कर जाती, पर बेटे के लिए पार्टी न होने की तिलमिलाहट अक्सर व्यंग्य बनकर ज़ुबां पर आ जाती. कुछ बच्चे की व्यस्तता और कुछ अविचल के स्थित प्रज्ञ साधुओं के से रवैये से पनपी खीझ ने सिम्मी को इतना आलसी बना दिया था कि उसने खानपान के रवैये को ऐसे ही चलने दिया. ननदें आती-जाती रहती थीं. उन्होंने भाई की ऐसी उपेक्षा देखी, तो ऐसी बहुत-सी सादी साग-सब्ज़ियों, सलाद और सूप आदि की विधियां बताईं, जो अविचल को बहुत पसंद थे, पर इतना समय लगाकर बननेवाले इतने स्वादहीन पकवानों को काटने-बनाने में सिम्मी की बिल्कुल दिलचस्पी न थी. वो सोचती ऐसे पत्थर दिल के लिए मेहनत करने का क्या फ़ायदा, जिसे कभी जीवन में न कुछ अच्छा लगा, न बुरा. कुछ अच्छा बना दो, तो तारीफ़ ही कब करते हैं और न बनाने पर शिकायत ही कब की है? जाने कोई एहसास है भी उनके भीतर या… सिम्मी के मायके में एक शादी का अवसर था. अविचल का कहना था कि बढ़ते बच्चों के लिए महंगे सामान ख़रीदना पैसों की बर्बादी है, इसलिए उसके बेटे के पास ननदों के लाए पुराने कपड़े और सामान ही थे. उन सामानों में बेटे को लेकर मायके जाना सिम्मी को गंवारा न था. वो जब भी मायके जाती थी, तो चलते समय मां बिदाई में जो रुपए दिया करती थीं, वो बड़े जतन से जमा किए थे उसने. पहली बार बिना अविचल से पूछे ख़ुद जाकर अपने मनपसंद सामान ले आई. अविचल ने देखा, तो परेशान हो गए, “अभी से इतने महंगे सामानों की आदत डालोगी, तो बेटे की फ़रमाइशें बढ़ती जाएंगी. बहनों की शादी में थोड़ा कर्ज़ लिया है, वो चुकाना होता है, फिर पंकज की फीस और बहनों के यहां लेन-देन भी बना रहता है. जब तक कर्ज़ चुकेगा, इसके स्कूल में दाख़िला दिलाने का समय आ जाएगा, उसके लिए भी तो जोड़ना है.” हालांकि अविचल ने समझाने के अंदाज़ में ये शब्द बड़ी कोमलता से बोले थे, पर आज बात उसके बच्चे की थी, इसलिए सिम्मी के मन में भरा ग़ुस्सा बांध तोड़कर बह निकला, “कब तक यूं ही घुट-घुटकर जीना होगा मुझे?… कितनी छोटी उम्र से मम्मी मुझे पॉकेटमनी देती थीं. शादी के बाद तो वो भी नसीब नहीं. मैं कभी आपसे कुछ मांगती नहीं, क्योंकि जानती हूं कि आपके पास है नहीं, पर मेरे कुछ देने से भी आपको चिढ़ है. मेरा हर ख़र्च इसीलिए ग़लत है न, क्योंकि मैं कमाती नहीं हूं? कमाना चाहती हूं मैं भी, लेकिन उसके लिए…” जाने कितनी देर वो गुबार निकलता रहा और अविचल हमेशा की तरह चुपचाप सुनते रहे. दूसरे दिन उसके हाथ में हज़ार रुपए देकर बोले, “मेरी कमाई पर तुम्हारा अधिकार मुझसे कम नहीं है, लेकिन क्या करूं बहुत से फर्ज़ हैं, जिनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती, लेकिन ये तुम्हारी समस्या का अच्छा समाधान है, जो तुमने कल सुझाया. मैं हर महीने तुम्हें पॉकेटमनी दिया करूंगा. ये रुपए स़िर्फ तुम्हारे होंगे. इनसे जो चाहो, ख़रीद लिया करना.” उसी दिन रात के दस बजे किसी ने दरवाज़ा खटखटाया. खोला तो एक विद्यार्थी था. सिम्मी को याद आया कि ये बच्चा पहले आया था, तब अविचल ने ये कहकर मना कर दिया था कि अब उनके पास समय नहीं है, तो क्या इस पॉकेटमनी के लिए… सिम्मी के मन में टीस उठी, पर जल्द ही उसने ये विचार ये सोचकर झटक दिया कि ऐसे भी इस पाषाण हृदय को कौन-सा मनोरंजन या आराम करना होता है.
समय का पहिया अपनी गति से चल रहा था कि एक दिन कार्यालय से लौटते समय एक ट्रक ने अविचल के स्कूटर को टक्कर मार दी. अस्पताल में आईसीयू में अविचल की हालत देखकर सिम्मी स्तब्ध रह गई. उसके तो हाथ-पैर-दिमाग़ सबने काम करना बंद कर दिया था. रिश्तेदारों और देवर-ननदों की सांत्वना उसके आंसुओं की नदी में टिक ही नहीं पा रही थी. बेटा कहां है, अविचल के लिए डॉक्टर क्या कह रहे हैं, कौन-सी दवाइयां लानी हैं, उसे कुछ होश नहीं था. होश तो तब सम्हला, जब डॉक्टर ने उन्हें ख़तरे से बाहर बताया. तब ध्यान दिया कि क़रीब पिछले एक माह से बच्चा और अस्पताल की ज़िम्मेदारियां उसके ननद-देवर और रिश्तेदार मिलकर सम्हाल रहे हैं. अभी दो माह अविचल को फ्रैक्चर के कारण बिस्तर पर रहना था. ये सब बंदोबस्त कैसे हुआ, आगे कैसे क्या होना था, सिम्मी को कुछ पता नहीं था. घर पहुंचकर पहले दिन अकेले पड़ी, तो दिल को मज़बूत बनाकर अविचल को नित्यकर्म कराने के लिए ख़ुद को मज़बूत बना ही रही थी कि अविचल के विद्यार्थी आ गए, “मैम! हमारे होते आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं है. सर हमारे लिए देवता हैं और उनकी सेवा हमारा सौभाग्य.” उनके जाते ही फिर डोरबेल बजी. सब्ज़ीवाला, दूधवाला और राशनवाला खड़े थे. “साहब ने फोन करके कहा कि आपकी सामान लेने जाने की आदत नहीं है. हम उनके ठीक होने तक घर पर सामान दे जाया करेंगे, ताकि आपको द़िक्क़त न हो. आप बिल्कुल चिंता न करें. उनके ठीक होने तक सामान घर पर आ जाया करेगा.” अविचल को इतनी तकलीफ़ में भी उसका इतना ख़्याल है, सोचकर सिम्मी पुलक उठी. सामान लेकर रखा और अविचल के सिरहाने बैठकर उनके बालों में उंगलियां फेरते हुए उनके सही सलामत होने के सुखद एहसास को ठीक से जीने लगी. संतुष्टि की भावुकता में उसकी आंखों में आंसू छलछला आए थे, तभी वे बोले, “तुम मुझे फल और साग-सब्ज़ी धोकर दे दो. मैं बैठे-बैठे छील-काट देता हूं.” अबकी सिम्मी का दिल खीझने की बजाय कसक उठा. ऐसी तबीयत में भी अविचल को… उसका स्वर भीग गया, “नहीं, आप केवल आराम कीजिए, मैं…” मगर अविचल ने उसकी बात काट दी, “अरे! एक माह से आराम ही तो कर रहा हूं और तुमने इस एक माह में फल, सलाद, दूध, दही वगैरह तो कुछ खाया-पीया नहीं होगा. बच्चों की तरह खिलाना पड़ता है तुम्हें भी. मुझे डर है कि कहीं फिर से एनीमिक न हो जाओ.” मैंने कहा, “ना, मैं कर लूंगी, आप…” सिम्मी के स्वर में ग्लानि थी, पर अविचल ने बात फिर काट दी, “नहीं, तुम एक-दो दिन कर भी लो, फिर नहीं करोगी. मैं जानता हूं कि तुम्हारी इन चीज़ों में मेहनत करने की बिल्कुल आदत नहीं है.” “मेरी आदत ख़राब है, तो आप मुझ पर ग़ुस्सा कीजिए, मेरी आदत बदलिए, ख़ुद को सज़ा क्यों देते हैं? मैं बहुत बुरी हूं न?…” आत्मग्लानि से उसका कंठ अवरुद्ध होने लगा था… मगर अविचल का स्वर अब भी सपाट था, “नहीं सिम्मी, शादी जिस उम्र में होती है, उस उम्र तक जो संस्कार बन जाते हैं, उन्हें बदला नहीं जा सकता, केवल अपनी मेहनत से अपने साथी की कमी को पूरा किया जा सकता है. और कौन कहता है कि तुम बुरी हो. तुममें अच्छी आदतों की भी कमी नहीं है. तुमने इतने ख़ूबसूरत स्वेटर बुने हैं सबके लिए. घर को इतना सजाकर रखती हो, परिवार के हर कार्यक्रम में तुम्हारे गीत-संगीत रौनक़ भर देते हैं, तुम हंसमुख हो… अब किसी भी इंसान में केवल अच्छाइयां तो नहीं हो सकतीं न? और हां, ये लो तुम्हारा दो महीनों का पॉकेटमनी.” कहते हुए अविचल ने दो हज़ार रुपए सिम्मी की ओर बढ़ाए, तो अपने आंसुओं को पलकों में रोकना उसके लिए असंभव हो गया, “आपने मेरी तारीफ़ की, यही बहुत है मेरे लिए, मुझे ये रुपए नहीं चाहिए. आप सलामत हैं, मुझे और कुछ नहीं चाहिए, आपके इलाज में कोई कमी न पड़े, भगवान से बस यही प्रार्थना है.” “उसकी चिंता तुम मत करो. मेरी कोई बंधी नौकरी तो है नहीं, इसीलिए मैंने अपना बीमा कराया हुआ है, ताकि यदि मैं मर जाऊं, तो भी तुम्हें जीवनयापन में कोई तकलीफ़ न हो. मेरे इलाज का ख़र्च भी बीमा राशि से निकलता रहेगा.” “अब बस भी कीजिए. ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं?” कहते-कहते वो अविचल से लिपटकर फूट-फूटकर रो पड़ी, “आप सचमुच महान हैं, मगर मैं भी इतनी बुरी नहीं. बहुत प्यार करती हूं आपसे. अगर आपको कुछ हो गया, तो मैं पैसों का क्या करूंगी? मैं आपके बिना नहीं जी सकती! मैं…” “नहीं सिम्मी, ऐसा नहीं होता. पंद्रह साल की उम्र में जब मैंने अपने माता-पिता को खोया, तो मैं भी यही सोचता था, पर जल्द ही पता चला कि मरनेवालों के साथ मरा नहीं जाता. मन हर हाल में जीना चाहता है. उनके प्यार की कमी के दुख से कहीं विकराल थीं जीवनयापन की व्यावहारिक समस्याएं. अगर रिश्तेदारों ने मेरी नौकरी लगने तक हमें सहारा न दिया होता, तो भीख मांगने की नौबत आ जाती. और यदि मैंने ख़ुद को एक सख़्त और अनुशासित कवच में बंद न किया होता, तो मेरे भाई-बहन एक अच्छे इंसान के सांचे में न ढलते. जिन गुरुजी ने हम सबको मुफ़्त में पढ़ाया, उन्होंने ही साधनहीन ज़रूरतमंदों को मुफ़्त में पढ़ाने का वचन लिया था. लोग जिसे मेरी महानता समझते हैं, वो तो बस मेरी इस समाज को कृतज्ञता ज्ञापित करने की कोशिश भर है.”
अविचल का स्वर तो अभी भी उनकी आदत के मुताबिक़ सपाट ही था, पर सिम्मी को चुप कराने के लिए उन्होंने अपनी बांहों का घेरा उसके गिर्द कस दिया था और उसके बालों में उंगलियां फेरे जा रहे थे. सिम्मी को लग रहा था, उसके रोम-रोम में अमृत घुलता जा रहा हो. कितनी नासमझ थी वो, जो उस उन्माद या ज्वार को प्यार समझती थी, जो जितनी तेज़ी से चढ़ता है, उतनी ही तेज़ी से उतरकर अपने पीछे कुंठा की गंदगी छोड़ जाता है, जबकि प्यार तो वो पारस मणि है, जो अपने संपर्क में आनेवाले लोहे को भी कंचन बना देता है. अविचल के दिल में रखी प्यार की इस पारस मणि से उनके संपर्क में आनेवाला हर व्यक्ति कंचन हो चुका था. पिछले एक माह से ये कंचन ही तो सब कुछ कर रहे थे, लेकिन वो जो उनके सबसे नज़दीक थी, वही इतने सालों से उसे पत्थर समझती रही. कभी प्रशंसा और महत्व की पिपासा रूपी मैल के आवरण को उतारकर इसे छूने की कोशिश ही नहीं की. आज खीझ और आक्रोश के मैल का आवरण हटा, तो उसके मन का लोहा भी प्यार के इस पारस का स्पर्श पाकर कंचन बन गया था.
भावना प्रकाश
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चंद क़दम चलने पर ही सांस फूल जाना, प्लेन की सीट पर भी पूरा ना समा पाना, छः-छः बर्गर एक साथ खा जाना… और 140 किलो के भारी भरकम शरीर के साथ खुश रहना… क्या आप यक़ीन कर सकते हैं कि मात्र 22 साल की उम्र में शरीर का ये हाल होने के बाद कोई लड़का फ़िल्म इनडस्ट्री का फिट हीरो भी बन सकता है. लेकिन अर्जुन कपूर ने यह कमाल कर दिखाया और इससे उनकी मेनटल स्ट्रेंथ का पता चलता है.
आज अर्जुन मलाइका जैसी सेक्सी ऐक्ट्रेस को डेट कर रहे हैं और लड़कियाँ उनकी दिवानी हैं.
भला कैसे अर्जुन ने 140 के शरीर को फिट किया? कैसे 50 किलो वज़न कम किया? कैसे वो बने हीरो? जानते हैं उनकी फिटनेस जर्नी.
एक वक़्त था जब अर्जुन ने अपने इस शरीर के साथ समझौता कर लिया था और वो खुद को दिलासा देते कि वो खुश हैं, लेकिन अंदर से वो भी जानते थे कि वो फिट होने की ख्वाहिश रखते हैं.
उनका खाने पे कोई कंट्रोल नहीं था और वो एकसाथ कई बर्गर खा जाते थे. वो प्लेन की सीट पर फ़िट नहीं होते थे इसीलिए बिज़नेस क्लास में जाते थे. लेकिन सलमान खान उन्हें प्रेरित करते कि अगर वो फिट हो जाएँ तो हीरो बन सकते हैं. अर्जुन ने भी मन बना लिया कि कोशिश की जाए और वो जुट गए मेहनत करने में. क़रीब तीन साल तक उन्होंने कसरत और डाइट से 50 किलो वज़न घटाया.
उन्होंने इस दौरान वेट ट्रेनिंग, कार्डियो, सर्कट ट्रेनिंग, क्रॉसफिट ट्रेनिंग, बेंच प्रेस, स्क्वैट, डेड लिफ्ट्स और पुल अप्स के ज़रिए अपनी स्ट्रेंथ बढ़ाई. लेकिन वो यह भी जान गए थे कि मात्र ऐक्सरसाइज़ ही काफ़ी नहीं, खान पान पर भी नियंत्रण ज़रूरी है.
उन्होंने अपनी डाइट में बदलाव किया और उसके बाद उन्हें कोई नहीं रोक सका फिट होने से.
वो दिन की शुरुआत यानी ब्रेकफ़ास्ट में टोस्ट, 4-6 अंडे का सफ़ेद भाग लेते हैं.
लंच में रोटी- गेहूं या बाजरे की, सब्जी, दाल और चिकन का सेवन करते हैं.
डिनर में मछली, चिकन व चावल खाते हैं. वर्क आउट के बाद प्रोटीन शेक लेते हैं और मीठा खाने से बचते हैं.
इस तरह अर्जुन बने फ़ैट टु फ़िट, आप भी उनसे प्रेरणा लें और लॉकडाउन में खुद को फ़िट रखने के लिए खाने पीने का ख़्याल रखें, सकारात्मक रहें, मेडिटेशन करें, कसरत व योगा करें.
हर्षद चोपड़ा ने जब 2006 में ममता से टीवी पर अपना डेब्यू किया, तभी से वो दर्शकों के चहेते बन गए हैं. आज तक उन्होंने जितने भी रोल किये सबमें रोमांस का एक अलग अंदाज देखने को मिला. पिछले 14 सालों में उन्होंने टीवी पर कई कामयाब किरदार निभाए और हर किरदार ने लोगों के दिलों में अपना घर बनाया. आज वो 37 साल के हो गए हैं, तो आइए उनकी अब तक की पारी की एक झलक देखते हैं.
अली बेग- लेफ्ट राइट लेफ्ट
भले ही हर्षद चोपड़ा ने अपने करियर की शुरुआत ममता से की थी, लेकिन असली पहचान उन्हें लेफ्ट राइट लेफ्ट सीरियल से मिली. इस सीरियल में 6 कैडेट्स की आर्मी ट्रेनिंग और उनके कोच राजीव खंडेलवाल को कौन भूल सकता है. इसमें हर्षद का अली बेग का सीधा-साधा, भोला-भाला किरदार और अदाकारी दर्शकों को बेहद पसंद आई. उनके इस कैरेक्टर में कई शेड्स थे, जहां वो छोटे शहर के सिंपल बॉय के रूप में नज़र आए, वहीं आर्मी की ट्रेनिंग में उनके मज़ेदार कैरेक्टर ने लोगों को काफी इंटरटेन किया. पूजा के लिए अली बेग की फीलिंग्स को उन्होंने बख़ूबी दर्शाया, जो लोगों को काफ़ी पसंद आता था.
प्रेम जुनेजा- किस देश में है मेरा दिल
यह सीरियल देखने के बाद आप भी यही कहेंगे कि प्रेम जुनेजा का किरदार हर्षद चोपड़ा के अलावा कोई निभा ही नहीं सकता. दो परिवारों की इस कहानी में हीर मान यानी अदिति गुप्ता के साथ उनकी ग़ज़ब की केमिस्ट्री लोगों को बेहद पसंद आती थी. उनकी केमिस्ट्री का ही कमाल था कि लड़कियां हर्षद की आज भी दीवानी हैं.
अनुराग शेखर गांगुली- तेरे लिए
अनुराग गांगुली के तौर पर एक लवर बॉय की इमेज को हर्षद ने अपनी अदाकारी से काफ़ी ख़ूबसूरती से पेश किया. अनुराग गांगुली और तानी बैनर्जी की ज़बरदस्त केमिस्ट्री आज भी लोगों को याद है. बचपन का उनका प्यार और नोंक झोंक किस तरह बड़े होने पर जीवनसाथी के रूप में एक दुसरे को अपनाना… यह शो उस समय काफी पॉप्युलर हुआ था और हर्षद चोपड़ा हर किसी के दिल के बेहद करीब. उन्होंने जिस तरह अपने इस किरदार को पूरे परफेक्शन के साथ निभाया, वो काबिले तारीफ़ है.
साहिर अज़ीम चौधरी- हमसफर्स
बाकी सीरियल्स की तरह इस सीरियल में हर्षद का रोल काफी अलग था. साहिर का कैरेक्टर उनके पहले के बाकी किरदारों से हटकर था. एक एंग्री यंग मैन, जिसे ख़ुद पर बहुत घमंड है, ऐसे लड़के की ज़िंदगी में आरज़ू आती है, चीज़ें किस तरह बदलती हैं और कैसे साहिर का किरदार लोगों के दिलों में अपनी एक अलग छाप छोड़ता है, यह देखना काफ़ी दिलचस्प रहा.
आदित्य हूडा- बेपनाह
फिर एक बार इस सीरियल में हर्षद का उम्दा अभिनय देखने को मिला. एक आया किरदार जो, ख़ुद टूट चुका है, बिखर चुका है, फिर भी किसी और को संभालता है. इस शो में हर्षद और जेनिफर की बेमिसाल केमिस्ट्री लोगों को बेहद पसंद आई थी. इस रोल के लिए हर्षद को बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड भी मिला था. हर्षद की मनमोहक मुस्कान आज भी दर्शकों के दिलों में हलचल मचा देती है. आज भी ज़ोया और आदित्य की केमिस्ट्री दर्शकों के दिलों में मौजूद है.
ये थे हर्षद चोपड़ा के वो 5 किरदार, जिन्हें हम बार बार देखन चाहेंगे. उनके जन्मदिन पर मेरी सहेली की ओर से उन्हें ढेरों शुभकामनाएं.
– अनीता सिंह
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ये मोहब्बत का वो सिलसिला है जो थमने का नाम ही नहीं लेता. कहने को तो रेखा और अमिताभ के प्यार का किस्सा 80 के दशक में ही खत्म हो चुका था. लेकिन आज भी उनके किस्से लोगों के लिए उतने ही दिलचस्प बने हुए हैं.
अमिताभ को ‘इनको’ ‘इन्होंने’ कहती थीं रेखा बहुत कम लोगों को ये बात पता होगी कि रेखा अमिताभ को कभी उनके नाम से नहीं पुकारती थीं. वो अमिताभ के लिए हमेशा ‘इनको’ ‘इन्होंने’ जैसे शब्द इस्तेमाल करती थीं. भारत में महिलाएं ऐसे शब्द केवल अपने पति के लिए ही इस्तेमाल करती हैं. ज़ाहिर था कि वह खुद को शादीशुदा और अमिताभ को अपना पति समझती थीं. ये बात फिल्ममेकर मुजफ्फर अली ने एक इंटरव्यू के दौरान बताई थी. उन्होंने ये भी बताया था कि जब फिल्म ‘उमराव जान’ की शूटिंग दिल्ली में हो रही थी तो सेट पर अक्सर अमिताभ आ जाया करते थे और अमिताभ को देख कर रेखा चलती फिरती लाश जैसी हो जाती थीं. उन्हें देखते ही सुध बुध खो बैठती थीं.
जब शुरू हुआ मोहब्बत का सिलसिला
70 के दशक में आई फिल्म ‘दो अनजाने’ के सेट से रेखा और अमिताभ का प्यार शुरू हुआ था. ये फिल्म दोनों की पहली फिल्म थी, जिसमें अमिताभ और रेखा ने एक साथ काम किया. इससे पहले दोनों कभी मिले भी नहीं थे, लेकिन इस फिल्म ने सब कुछ बदल कर रख दिया था. अमिताभ शादीशुदा थे, लेकिन इसके बावजूद उन्हें रेखा से प्यार हो गया. ‘दो अनजाने’ की शूटिंग के दौरान रेखा सेट पर टाइम से नहीं आती थीं. कई बार वो शूटिंग में सीरियस भी नहीं रहती थीं. कहते हैं अमिताभ बच्चन ने एक बार रेखा को समझाया कि समय पर आया करो और अपना काम सीरियसली करो. बस, अमिताभ की ये बात रेखा को इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने सेट पर न सिर्फ टाइम से आना शुरू किया, बल्कि शूटिंग में भी सीरियसली पार्टिसिपेट करने लगीं. इसी वाकये के बाद रेखा अमिताभ की तरफ अट्रैक्ट होने लगीं. तब दोनों चुपचाप रेखा की फ्रेंड के बंगले में मिला करते थे और साथ काफी वक्त बिताया करते थे, लेकिन बहुत दिनों तक दोनों ने अपना प्यार दुनियावालों से छिपाकर रखा.
जब प्यार दुनिया के सामने आया
लेकिन इनका प्यार सबके सामने तब खुलकर आया, जब फिल्म ‘गंगा की सौगंध’ के समय एक को-एक्टर रेखा को भलाबुरा कहने लगा, यहां तक कि उसने रेखा के साथ बदतमीजी भी कर दी. वहां बैठे अमिताभ रेखा का अपमान बर्दाश्त नहीं कर पाए और अपना आपा खो बैठे. कहा तो ये भी जाता है कि अमिताभ ने गुस्से में उस बन्दे की पिटाई भी कर दी थी. बस इस घटना के बाद अमिताभ-रेखा के प्यार के किस्से आम हो गए.
जया को ‘दीदी भाई’ कहती हैं रेखा
आपको जानकर बड़ी ही हैरानी होगी कि जब रेखा बॉलीवुड में करियर बनाने मुंबई पहुंचीं, तो मुंबई में उनकी पहली दोस्त जया बच्चन ही थीं. रेखा उनके ऊपर वाले फ्लैट में रहती थीं और उन्होंने लोगों को जया बच्चन के घर का नंबर दे रखा था. जब भी रेखा के लिए फोन आता, तो जया उन्हें बुला लेती थीं. तब जया की शादी नहीं हुई थी. रेखा हमेशा से ही जया को दीदीभाई कह कर बुलाती थीं. रेखा आज भी जया को दीदी भाई ही कहती हैं.
जब जया ने अमिताभ के सामने रेखा को थप्पड़ मारा
जया बच्चन नहीं चाहती थीं कि अमिताभ और रेखा साथ काम करें. इसी दौरान प्रोड्यूसर टीटो टोनी रेखा और अमिताभ को लेकर फिल्म ‘राम बलराम’ बनाने की प्लानिंग की. जया और टीटो के अच्छे संबंध थे, इसलिए जया को जब इस बारे में पता चला, तो उन्होंने टीटो से रेखा की जगह फिल्म में जीनत अमान को कास्ट करने के लिए कहा. टीटो ने जया की बात मान ली और रेखा को फिल्म से बाहर कर दिया. रेखा को जब ये बात पता चली, तो उन्होंने टीटो के सामने ऐसा ऑफर रखा कि वो रेखा को मना नहीं कर सके. रेखा ने कहा कि वो इस फिल्म में बिना पैसे लिए काम करने को तैयार हैं. इस तरह ये फिल्म रेखा को मिल गई और जया चाहकर भी कुछ न कर पाईं. रेखा और अमिताभ के साथ ‘राम बलराम’ फिल्म की शूटिंग शुरू हो गई. लेकिन जया से ये बात बर्दाश्त नहीं हो रही थी. एक दिन जया अमिताभ को बताए बिना फिल्म के सेट पर पहुंच गईं. वहां जब उन्होंने रेखा और अमिताभ को एक साथ प्राइवेट में बात करते देखा, तो उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ और जया ने सबके सामने रेखा के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया. ये सब इतना अचानक हुआ कि अमिताभ को समझ नहीं आया कि क्या रियेक्ट करें. वो चुपचाप सेट छोड़ कर घर चले गए.
रेखा की मांग में सिंदूर देखकर जया रोने लगीं
उन दिनों रेखा और अमिताभ बच्चन के अफेयर के चर्चे बेहद गर्म थे, उस पर जब रेखा ऋषि कपूर और नीतू सिंह की शादी पर पहुंचीं, तो सबके आकर्षण का केंद्र बन गईं. उनके माथे पर सजी लाल बिंदिया, मांग में सिंदूर और गले में मंगल सूत्र देखकर सबमें खुसफुसाहट होने लगी. इस शादी में अमिताभ पत्नी जया और अपने पैरेंट्स के साथ पहुंचे थे. शादी में रेखा पर लगभग सभी मेहमानों की नज़र थी, लेकिन वो बस अमिताभ को ही देख रही थीं. दोनों के बीच कुछ देर बातचीत भी हुई. जया पहले शांत रहीं और सर झुका कर एक ओर बैठ गईं. उनकी आंखों से आंसू बहने लगे. हालांकि काफी लंबे समय बाद रेखा ने खुलासा किया कि वे एक फिल्म के सेट से सीधे शादी में पहुंचीं थीं और ये लुक उनकी फिल्म का गेटअप था.
जब जया ने रेखा को डिनर पर बुलाकर अमिताभ से दूर रहने का इशारा किया
कहते हैं ऋषि कपूर की शादी वाली घटना के बाद ही एक दिन जब अमिताभ शूटिंग के लिए मुंबई से बाहर गए थे तो मौका देखकर जया ने फोन करके रेखा को डिनर पर इनवाइट किया. पहले रेखा को लगा कहीं जया उन्हें घर पर बुलाकर उनकी बेइज्जती न करें. लेकिन फिर भी रेखा डिनर पर गईं. जया ने रेखा का स्वागत किया. उनसे ढेर सारी बातें की. इस बीच अमिताभ का जिक्र तक नहीं हुआ. लेकिन जब रेखा लौटने लगीं और जया उन्हें बाहर तक छोड़ने आईं, तब जया ने रेखा को सख्त लहज़े में कहा, ‘चाहे कुछ भी हो जाए मैं अमित को नहीं छोड़ूंगी.’ कहते हैं उसी दिन के बाद से रेखा ने ये फैसला कर लिया था कि अब वो न कभी अमिताभ बच्चन से मिलेंगी और न बात करेंगी.
…और फिर आई ‘सिलसिला’
जब 80 में यश चोपड़ा ने अमिताभ, रेखा और जया को लेकर फ़िल्म ‘सिलसिला’अनाउंस की, तो हंगामा मच गया. खबरों की मानें तो अमिताभ ने ही उन दोनों को साथ फिल्म करने के लिए मनाया था. ताकि उन दोनों के बीच की कड़वाहट को खत्म किया जा सके. पहले यश जी रेखा और जया की जगह परवीन बॉबी और स्मिता पाटिल को लेकर ‘सिलसिला’ बनाने वाले थे. कश्मीर में शूटिंग से पहले अमिताभ ने फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ी, तो उन्होंने यश जी से कहा कि क्यों न जया और रेखा को लिया जाए. और इस तरह ‘सिलसिला’ बनी. हालांकि यश चोपड़ा ने एक इंटरव्यू में खुद ही बताया था कि ‘सिलसिला’ बनाते वक्त बहुत डर रहे थे क्योंकि इन तीनों के बीच पहले से ही काफी तनातनी थी. ये अमिताभ- रेखा की जोड़ी की आखिरी फ़िल्म साबित हुई. कहते हैं कि जया ने सख्ती से अमिताभ से कह दिया था कि अब वो रेखा के साथ काम नहीं करेंगे और इस तरह ‘सिलसिला’ के बाद दोनों की मोहब्बत का सिलसिला भी थम गया.
रेखा को अमिताभ से मिलने तक नहीं दिया गया
‘सिलसिला’ के बाद अमिताभ और रेखा एक दूसरे से दूर हो गए. लेकिन तीन साल बाद फिल्म ‘कुली’ के सेट पर अमिताभ के साथ हादसा हो गया और सीरियस हालत में उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा. रेखा फिर अमिताभ के लिए तड़प उठीं और अमिताभ को अस्पताल देखने पहुंच गईं. लेकिन वहां उनको अमिताभ से मिलने नहीं दिया गया. वो आखिरी मौका था जब रेखा ने अमिताभ से मिलने की कोशिश की थी.
जब रेखा ने बेबाकी से कहा,’ मैं उनको पसंद करती थी और करती हूं. बात खत्म.’
अमिताभ बच्चन ने कभी न खुलकर रेखा से अपने रिश्ते की बात स्वीकारी, न कभी यही कहा कि वो रेखा से प्यार करते थे, लेकिन रेखा कई बार इस बात को कबूल कर चुकी हैं. सिमी ग्रेवाल के शो में जब सिमी ने रेखा से अमिताभ को लेकर सवाल किए तो उन्होंने हर सवाल का जवाब काफी बेबाकी से दिया. अपने और अमिताभ के रिश्ते पर रेखा ने कहा, “मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग क्या सोचते हैं. मैं उन्हें अपने लिए प्यार करती हूं किसी को दिखाने के लिए नहीं. मैं उनसे प्यार करती हूं और वो मुझसे, लोग बोलते हैं कि बेचारी रेखा पागल है उसपर, लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ता कि कौन क्या सोचता है.” रेखा ने ये भी कहा, “वो किसी और के थे और ये सच मैं बदल नहीं सकती थी. वो शादीशुदा आदमी हैं लेकिन ये बात उनको अलग नहीं करती. मैं उनको पसंद करती थी और करती हूं. बात खत्म.”
बॉलीवुड के जानेमाने फिल्ममेकर महेश भट्ट अपनी बोल्ड और बिंदास लाइफ के लिए जाने जाते हैं. महेश भट्ट कभी अपने स्टेटमेंट, तो कभी अपने बोल्ड फैसले से लोगों को चकित कर देते हैं. महेश भट्ट की ज़िंदगी का एक ऐसा ही किस्सा कभी बहुत विवादों में था, जब महेश भट्ट ने अपनी ही बेटी पूजा भट्ट से शादी करने की इच्छा जताई थी. साथ ही बेटी को लिप टू लिप किस करके सबको हैरान कर दिया था. आखिर महेश भट्ट अपनी ही बेटी पूजा भट्ट से शादी क्यों करना चाहते थे? जानिए इस विवादित किस्से का सच.
महेश भट्ट ने जब बेटी पूजा भट्ट को किया था लिप टू लिप किस दरअसल, महेश भट्ट ने एक फिल्म मैगज़ीन के लिए अपनी बेटी पूजा भट्ट के साथ एक बोल्ड फोटो शूट किया था, जिसमें उन्होंने बेटी पूजा भट्ट को लिप टू लिप किस किया था. ये फोटो छपते ही बॉलीवुड से लेकर महेश भट्ट की ज़िंदगी में तहलका मच गया था. इस फोटो शूट को लेकर मीडिया में विवाद इतना बढ़ गया कि इसे ख़त्म करने के लिए महेश भट्ट को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी पड़ी, लेकिन इससे भी महेश भट्ट की मुसीबत कम नहीं हुई, बल्कि इसके बाद उनकी परेशानी और बढ़ गई और इसके लिए महेश भट्ट को बहुत शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा.
क्या अपनी ही बेटी पूजा भट्ट से शादी करना चाहते थे महेश भट्ट? एक फिल्म मैगज़ीन के लिए अपनी बेटी पूजा भट्ट के साथ बोल्ड फोटो शूट और लिप टू लिप किस करने के विवाद को सुलझाने के लिए जब महेश भट्ट ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और मीडिया के सामने अपना पक्ष रखा, तो उस समय वो कुछ ऐसा बोल गए, जिससे उनकी परेशानी और बढ़ गई. प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने दिल की बताते हुए महेश भट्ट ने कहा, “अगर पूजा मेरी बेटी नहीं होती, तो मैं उससे शादी कर लेता.” फिर क्या था, इसके बाद महेश भट्ट का नाम मीडिया में इस कदर उछला कि वो डिप्रेशन में चले गए.
अपनी ही बेटी पूजा भट्ट से शादी की इच्छा जाहिर करने के बाद महेश भट्ट ने अपनी सफाई में कहा ये प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब महेश भट्ट ने कहा कि यदि पूजा उनकी बेटी न होती, तो वो उससे शादी कर लेते, इसके बाद महेश भट्ट इस कदर विवादों में घिरे कि वो डिप्रेशन का शिकार हो गए. जब महेश भट्ट और उनकी बेटी पूजा भट्ट को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे थे, तो बाद में महेश भट्ट ने मीडिया में अपनी सफाई देते हुए ये बयान दिया था कि वो काफी विवादों में रहे हैं, जिसके कारण वो डिप्रेशन में हैं और इसी डिप्रेशन की वजह से उन्होंने ऐसा बयान दिया है. अपनी सफाई देने के बाद भी महेश भट्ट की मुसीबत टली नहीं, इसके कारण उन्हें बहुत कुछ झेलना पड़ा.
अक्सर विवादों से घिरे रहे महेश भट्ट अपनी बोल्ड और बिंदास लाइफ के लिए जाने जाने वाले महेश भट्ट अक्सर विवादों में रहे. उनकी बेटी पूजा भट्ट भी अक्सर विवादों में ही घिरी रही. पूजा भट्ट अपने ज़माने की बोल्ड एक्ट्रेस रह चुकी हैं. पूजा ने बहुत बोल्ड फोटो शूट किए हैं, जिसमें उनका बॉडी पेंटिंग वाला फोटो शूट भी बहुत विवादों में घिरा रहा. उस दौर में ऐसा फोटो शूट दर्शक सहन नहीं कर पाते थे, जिसके कारण पूजा भट्ट को बहुत आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. बता दें कि महेश भट्ट ने पहले किरण भट्ट से शादी की थी, जिनसे उन्हें दो बच्चे पूजा और राहुल भट्ट हुए थे. बाद में महेश भट्ट ने अपनी बीवी किरण को तलाक देकर अभिनेत्री सोनी रजदान से शादी कर ली. सोनी से उन्हें दो बेटियां शाहीन और आलिया भट्ट हुईं. आलिया भट्ट बॉलीवुड की बेहतरीन अभिनेत्रियों में से एक हैं.
बॉलीवुड को कई यादगार फिल्में दी हैं महेश भट्ट ने महेश भट्ट ने बॉलीवुड को अर्थ, सारांश, नाम, ज़ख्म, आशिक़ी, सड़क, दिल है कि मानता नहीं जैसी कई यादगार और बेहतरीन फिल्में भी दी हैं. महेश भट्ट बोल्ड और हॉरर फिल्में बनाने के लिए भी मशहूर हैं, उन्होंने राज़, जिस्म, जिस्म-2, जुनून, चाहत, वो लम्हे, गुमराह, जुर्म, मर्डर, मर्डर-2, नाजायज़, गैंगस्टर, कलयुग बोल्ड और हॉरर फिल्में भी बनाई हैं.
बॉलीवुड के फिल्ममेकर महेश भट्ट द्वारा अपनी ही बेटी पूजा भट्ट से शादी करने की इच्छा जताने से लेकर बेटी को लिप टू लिप किस करने को लेकर आपकी क्या राय है, हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं.