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इस फेस्टिव सीज़न के लिए सलवार-सूट के 14 आकर्षक डिज़ाइन्स (Trending Patterns Of Salwar Suit)

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त्यौहारों का सीज़न क़रीब आ रहा है. उत्सव के इस माहौल में भारतीय परिधानों की मांग बढ़ जाती है. अगर इन त्यौहारों में आप भी सलवार सूट सिलवाने या ख़रीदने का मन बना रही हैं, जो सलवार-सूट्स के लेटेस्ट डिज़ाइन्स व पैटर्न पर एक नज़र डालना न भूलिए.

करीना का पीच कलर का सलवार सूट हैवी होते हुए भी बेहद एलिगेंट दिख रहा है.

इस फेस्टिव सीज़न के लिए सलवार-सूट के 14 आकर्षक डिज़ाइन्स

हाई नेक कुर्ता व धोती स्टाइल पटियाला यह सूट लंबी कद वाली लड़कियों पर सूट करेगा.

अगर आप लोअर पोर्शन हैवी है तो आप बंद गले का फ्लोर लेंथ अनारकली ट्राई कर सकती हैं.

 

फ्रंट स्लिट व स्ट्रेट पेंट स्टाइल इंडो वेस्टर्न लुक के लिए सही है.

एथनिक टच में भी लुक के साथ एक्सपेरिमेंट करना चाहती हैं तो यह पैटर्न ट्राई करें.

यह स्टाइल पहनकर आप भीड़ से अलग नज़र आएंगी.

 

एंकल लेंथ स्ट्रेट फिट पेंट के साथ साइड स्लिट वाला कुर्ता ऑफिस वेयर के लिए सही है.

हैवी एम्ब्रॉयडरी वाला यह पैटर्न आपको स्लिम लुक देगा.

अगर आप पियर शेप की हैं तो यह स्टाइल ट्राई करें.

जींस के साथ एसिमेट्रिकल पैटर्न वाला यह पैटर्न बेहद लुभावना है.

सोनम का यह लुक आपके शरीर की कमियों को ढंक देगा.

आजकल इन दोनों पैटर्न की धूम मची हुई है.

 

यह पैटर्न कंगना जैसी दुबली-पतली लड़कियों पर फबेगा.

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गणेश चतुर्थी स्पेशल: रंगोली (Ganesh Chaturthi Special: Rangoli)

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रंगोली के बिना त्योहारों का मज़ा अधूरा-सा लगता है. इसलिए गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर हम आपके लिए लाए हैं रंगोली के कुछ स्पेशल व ट्रेडिशनल डिज़ाइन्स. अनेक कलरफुल रंगों से बनाई गई इन रंगोली डिज़ाइन्स से आप अपने घर की शोभा बढ़ा सकते हैं.

Rangoli

 

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गणेशजी से जुड़े रोचक तथ्य (19 Surprising Things You Didn’t Know About Lord Ganesha)

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गणेशजी से जुड़े रोचक तथ्य

* कुण्डलिनी योग के अनुसार, सात कुण्डलिनी चक्रों में से पहला चक्र, जो हमारी रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से या आधार में स्थित मूल चक्र गणेशजी का निवास स्थान है.

* महर्षि व्यास की महाभारत गणेशजी ने लिखी थी. वे बोलते गए, गणेशजी लिखते रहे. लिखने के लिए उनके पास कुछ नहीं था, तो उन्होंने अपना एक दंत तोड़कर महाभारत लिखी, जिससे वे एकदंत कहलाए.

* गणेश भगवान के कानों में वैदिक ज्ञान, मस्तक में ब्रह्म लोक, आंखों में लक्ष्य, दाएं हाथ में वरदान, बाएं हाथ में अन्न, सूंड में धर्म, पेट में सुख-समृद्धि, नाभि में ब्रह्मांड और चरणों में सप्तलोक है.

* हर युग में गणेश भगवान के अलग-अलग रूप की आराधना की गई है. गणेश पुराण के अनुसार, सतयुग में उनका दस भुजाओंवाला सिंह की सवारीवाला विनायक रूप, त्रेता युग में श्‍वेत वर्ण छह भुजाओंवाले मयूर की सवारी मयूरेश्‍वर रूप, द्वापर युग में चार भुजाओंवाले लाल वर्ण व मूषक की सवारीवाले गजानन, कलियुग में दो भुजाएं अश्‍व वाहन धूम्र वर्ण धूम्रकेतु रूप प्रचलित रहेगा.

* घर में गणेशजी का फोटो लगाते समय ध्यान दें कि फोटो मेें मोदक व चूहा ज़रूर हो. इससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है.

* जीवन में शांति बनी रहे, इसके लिए स़फेद गणपति की पूजा-अर्चना करें.

* कामयाब व मशहूर होने के लिए पन्नावाले भगवान गणेश की आराधना करें.

* बच्चे की कामना के लिए बाल गणेश की पूजा करें.

* डर व शत्रुओं से बचने के लिए मूंगावाले गणेश भगवान की स्तुति करें.

* धन-वैभव के लिए चांदी के गणपति घर में रखें. साथ ही कमल पर बैठे गणेशजी की भी पूजा कर सकते हैं.

* परिवार में आपसी स्नेह, प्यार, सहयोग बना रहे, लड़ाई-झगड़े, कलह आदि न हो, इसके लिए चंदन के गणपति की पूजा करें.

* सिंदूरी रंग के गणेश भगवान की आराधना करने से घर के सभी कार्य निर्विघ्न रूप से होते हैं.

* घर के सेंटर में पूर्व दिशा में गणपतिजी को रखना शुभ होता है.

* मुख्यद्वार पर गणेशजी की दो मूर्ति लगाएं, जिनकी पीठ आपस में मिली हो. इससे सभी तरह के वास्तु-दोष दूर हो जाते हैं.

* घर में गणपतिजी की बैठी मुद्रा और शॉप-ऑफिस में खड़ी मुद्रा शुभदायक होती है.

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ध्यान दें

* गणपति भगवान का मुंह दक्षिण दिशा की तरफ़ न हो.

* एक घर में 3 गणपति की पूजा न करें.

* घर-ऑफिस में गणपति रखते समय ध्यान दें कि इनका मुंह दक्षिण-पश्‍चिम दिशा में न हो.

* गणेशजी की मूर्ति की स्थापना करते समय उनकी सूंड बाएं हाथ की ओर घूमी हुई हो.

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– ऊषा गुप्ता

 

 

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Fresh!!! देखिए सारा अली ख़ान का नया ग्लैमरस अवतार, साथ ही सारा के कुछ अनसीन पिक्स (Sara Ali Khan On Dinner Date With Sushant)

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सैफ़ अली ख़ान और अमृता सिंह की बेटी सारा अली ख़ान ने दर्शकों के सामने बड़े पर्दे पर भले ही एंट्री नहीं मारी है, लेकिन उनका ग्लैमर किसी स्टार से कम नहीं है. सारा जल्द ही सुशांत सिंह राजपूत के साथ डेब्यू कर रही हैं. फिल्म का नाम केदारनाथ है. फिल्म के सिलसिले में वे टीम से मिलती रहती हैं. कल रात एेसी ही मीटिंग के लिए जब वे मुंबई के ऑलिव बार रेस्तरां पहुंची तो उनका ग्लैमर देखते ही बन रहा था, सभी की निगाहें सिर्फ और सिर्फ सारा पर थीं.

क्रीम कलर की शॉर्ट ड्रेस में सारा बेहद सेक्सी लग रही थीं, उन्होंने बहुत लाइट मेकअप किया था. डिनर के लिए सुशांत सिंह सहित फिल्म के अन्य टीम मेंबर्स भी मौजूद थे. यह फिल्म अगले साल जून में रिलीज़ होनेवाली है. फिल्म के तैयारी में जुटे सुशांत और सारा अक्सर वर्कशॉप करते हुए देखे जाते हैं.

फिल्म के बारे में बात करते हुए निर्देशक अभिषेक कपूर ने कहा, “मैं अभी फिल्म के बारे में बहुत ज्यादा नहीं बताना चाहता लेकिन हमारी फिल्म की कहानी  एक पैशनेट लव स्टोरी है, जो तीर्थ यात्रा से जुड़ी हुई है. मैंने फिल्म में सारा अली ख़ान को इसलिए लिया क्योंकि वह इस रोल के लिए एकदम फिट हैं.”

अगर आपको सारा पसंद है तो ख़ास आपके लिए हम उनके बचपन व जवानी के कुछ अनसीन पिक्स पेश कर रहे हैं

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पर्सनल प्रॉब्लम्स: क्या कॉपर टी निकलवाने के तुरंत बाद फर्टिलिटी लौट आती है? (How Long After IUD Removal Can I Get Pregnant?)

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मैं 32 वर्षीया महिला हूं व मेरा 4 साल का बच्चा है. डिलीवरी के छह महीने बाद से ही मैं इंट्रायूटेराइन डिवाइस कॉपर टी इस्तेमाल कर रही हूं. मैं यह जानना चाहती हूं कि क्या कॉपर टी निकलवाने के तुरंत बाद मेरी फर्टिलिटी लौट आएगी या फिर मुझे कंसीव करने में बहुत ज़्यादा समय लगेगा?
– जयश्री मिश्रा, राजकोट.

आपको बता दें कि इंट्रायूटेराइन डिवाइस कॉपर टी निकलवाने के तुरंत बाद ही आपकी फर्टिलिटी वापस आ जाएगी, जबकि हार्मोंसवाले गर्भनिरोधक साधनों का इस्तेमाल करनेवाली महिलाओं के साथ ऐसा नहीं होता. उनकी फर्टिलिटी लौटने में 3 से 6 महीने का समय लगता है, इसलिए अपने पति से इस बारे में बात करें और जब आप प्रेग्नेंसी के लिए तैयार हों, तभी कॉपर टी निकलवाएं.

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मैं 50 वर्षीया महिला हूं और पिछले साल ही मेरे पीरियड्स बंद हुए हैं. पिछले दो महीने से मुझे अक्सर योनि में खुजली व डिस्चार्ज हो रहा है. क्या मुझे डॉक्टर से मिलना पड़ेगा?
– तुलिका कमानी, हैदराबाद.

आपका मेनोपॉज़ हो चुका है और आपके द्वारा बताए लक्षणों से लग रहा है कि आपको इंफेक्शन है. सबसे पहले आपको चेकअप कराना पड़ेगा, ताकि पता चल सके कि आपको किस तरह का इंफेक्शन है, जिससे सही इलाज किया जा सके. इसके अलावा आपको पैप स्मियर टेस्ट और ब्लड शुगर चेकअप (फास्टिंग और पोस्ट लंच) ज़रूर कराना चाहिए.

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डॉ. राजश्री कुमार
स्त्रीरोग व कैंसर विशेषज्ञ
rajshree.gynoncology@gmail.com

 

 

महिलाओं की ऐसी ही अन्य पर्सनल प्रॉब्लम्स पढ़ें

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कहानी- मां! तुम कैसी हो (Short Story- Maa! Tum Kaisi ho)

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इस तस्वीर ने भावना के हृदय में बचपन से चुभ रही एक फांस के दर्द को फिर से जागृत कर दिया था. ‘कभी मैं भी तो नन्हीं-सी बच्ची थी न… मासूम-सी… कैसी रही होगी मेरी मां?’ उसकी आंखें डबडबा आईं.

घर का काम पूरा करके भावना बाहर चली आई. गेट पर लगा बॉक्स खोलकर देखा तो कुछ ऑफ़िशियल पत्रों के साथ एक बड़ा-सा लिफ़ाफ़ा भी पड़ा था. उठाकर देखा तो लिखावट अनजानी-सी लगी, पर लिफ़ा़फे के ऊपर लिखे एक शब्द ने ध्यान आकर्षित कर लिया. पीले रंग के लिफ़ा़फे पर लाल रंग से बड़े अक्षरों में लिखा था, ‘सरप्राइज़’.
क्या होगा इसमें? किसी भूली-बिसरी सहेली का पत्र? या किसी स्नेहिल रिश्तेदार द्वारा भेजा गया कोई शुभकामना कार्ड? सोचते हुए भावना ने लिफ़ाफ़ा खोला तो एक तस्वीर सामने थी.
‘कितनी सुंदर तस्वीर है…’ तस्वीर देखते ही वो एक विलक्षण अनुभूति से सराबोर हो उठी. तस्वीर में एक मां की ममता मुखर हो उठी थी. एक सुंदर स्त्री अपने गाल से एक शिशु को सटाए ममत्व का गर्व मुख पर लिए भावविभोर हुई जा रही थी.
तस्वीर लिए भावना भीतर चली आई. बार-बार लिफ़ाफ़ा पलटती वो भेजनेवाले का सूत्र पाना चाहती थी, पर नाकाम रही. किसकी होगी ये तस्वीर?
बिटिया धरा स्कूल से लौटी तो वो भी तस्वीर देखकर ख़ुश हो गई और उसने ध्यान से निहारते हुए कहा, “मम्मी! किसी ने कार्ड भेजा होगा ‘मदर्स डे’ पर… कल मदर्स डे है न?”
“पर किसने? अपना नाम पता भी तो नहीं लिखा…. और फिर ये कार्ड नहीं है धरा. ये तो एक पुरानी तस्वीर लगती है, जिसे कलर करवाकर छोटी तस्वीर से बड़ा रूप दे दिया गया है. सच बता, ये तूने ही मुझे भेजा है न, सरप्राइज़ देने के लिए?”
“ओह मम्मी! तुम भी न… मैं तो कल ही तुम्हें अपना ग़िफ़्ट दूंगी न. मैं क्यों भेजूंगी भला?” अपना बैग उठाकर आठ वर्ष की धरा अपने कमरे में चली गई.
इस तस्वीर ने भावना के हृदय में बचपन से चुभ रही एक फांस के दर्द को फिर से जागृत कर दिया था. ‘कभी मैं भी तो नन्हीं-सी बच्ची थी न… मासूम-सी… कैसी रही होगी मेरी मां?’ उसकी आंखें डबडबा आईं. मात्र दो दिन की ही तो थी वो, जब उसकी मां ने उससे मुख मोड़ इस नश्‍वर संसार से विदा ली थी. छोटी-सी गुड़िया को सीने से लगाए दुख के अगाध सागर में डूबे उसके पापा भास्कर ने भी जैसे दुनिया से मुख ही मोड़ लिया था.
भावना का मातृविहीन बचपन बीतने लगा. जैसे-जैसे वो बड़ी होने लगी, उसके मन में प्रश्‍नों के अंबार खड़े होने लगे.
“पापा! सबके घर में कितने लोग होते हैं, दादा-दादी… चाचा… मामा… बहन-भाई… हमारे यहां कोई क्यों नहीं?”
“सबके यहां सब नहीं होते बेटा.”
“पर मां तो होती ही है न?”
“कभी-कभी वो भी नहीं होती.”
“क्यों पापा?”
“क्योंकि ईश्‍वर नहीं चाहते.”
“ईश्‍वर क्यों नहीं चाहते पापा?”
“ये तो वही जानें…”
पापा का मायूस चेहरा देखकर नन्हीं भावना चुप हो जाती. पर प्रश्‍नों की शृंखला बढ़ती ही जाती. “तुम्हारी मां को ईश्‍वर ने अपने पास बुला लिया है. जिन्हें वो प्यार करते हैं न, उन्हें सदा के लिए अपने पास बुला लेते हैं.” पापा की कही इस बात को भावना ने हृदय में गहरे तक उतार लिया था और ऊपर से सागर की तरह शांत दिखने लगी थी.
भावना भी कम उम्र में परिपक्व होने लगी थी, पर मां सदा उसकी सोच में जीवंत रहती. कैसी होगी मां? रात के घने अंधकार में अपने बिस्तर पर करवटें बदलती वो अक्सर अपनी कल्पना में मां के कई चित्र बनाती-मिटाती.
“पापा! मां की एक भी तस्वीर हमारे पास क्यों नहीं है?” पूछा भी था उसने एक दिन. पापा का चेहरा गहरी पीड़ा से भर उठा था. उसके सिर पर हाथ फेरते हुए विह्वल स्वर में उन्होंने बताया था.
“बेटा! जब वो हम दोनों को छोड़कर गई तो मैं ग़ुस्से में पागल-सा हो गया. पूरी एलबम ही फाड़कर जला डाली. न जाने कैसा जुनून सवार हो गया था. सच कहता हूं भावना, अगर तू नहीं होती तो मैं भी उसी के साथ…”
“नहीं… पापा! आप मुझे छोड़कर नहीं जा सकते.” पापा से लिपटकर वो फूट-फूट कर रो पड़ी थी.
बचपन की सीमा लांघकर भावना किशोरावस्था में पांव धरने लगी तो आस-पड़ोस के लोगों में ही रिश्ते तलाशती जीवन के रस में घुलने लगी, पर ‘मां’ क्षण भर के लिए भी मन-मस्तिष्क से नहीं हटी. जैसे-जैसे वो बड़ी होती गई, पापा ने टुकड़ों-टुकड़ों में स्वयं अपना अतीत बेटी के सम्मुख रख दिया. माता-पिता का विगत जानकर वो जड़-सी हो गयी.
भास्कर का बचपन एक अनाथालय में बीता था. प्रताड़नाएं, अभाव और मानसिक संत्रास सहकर किसी तरह कॉलेज की पढ़ाई पूरी की और ईश्‍वर की कृपा से प्रथम प्रयास में ही वो बैंक की नौकरी में आ गए थे. एक दिन अचानक उनकी मुलाक़ात अपनी एक सहकर्मी वंदना से हुई और उन्हें लगा जैसे अब क़िस्मत उन पर मेहरबान होने लगी है… सारी सृष्टि ही मानो उनकी मुट्ठी में समाहित होने को उतावली हो उठी है. इस मुलाक़ात ने धीरे-धीरे प्रगाढ़ रूप ले लिया और दोनों ने विवाह के अटूट बंधन में बंध जाने का निर्णय ले लिया, पर वंदना के परिवारवालों ने इस रिश्ते को स्वीकार नहीं किया. उच्च कुलीन ब्राह्मण परिवार की बड़ी बेटी थी वंदना और अनाथालय में पले-बढ़े भास्कर. न जात-कुल का पता और न धर्म का.
पहले तो वंदना ने भी परिवार और समाज के सामने आजीवन अविवाहित रहने का प्रण लेकर इस विवाह से इन्कार कर दिया था, लेकिन अन्ततः भास्कर की निश्छल वेदनापूरित आंखों के सामने अपना हृदय हार बैठी थी और इस विवाह ने मायके से हमेशा के लिए उसके संबंधों पर विराम लगा दिया था. भास्कर ने अथक प्रयास किया था इस नाते को जोड़ने का, पर असफल रहे थे.
“तुम अब हमारे लिए जीवित नहीं रही. तुम्हारा श्राद्धकर्म हम सम्पन्न कर चुके हैं लड़की…” वंदना के पिता और दोनों बड़े भाइयों का क्रोध सातवें आसमान पर था. देहरी पर बिलखती मां और छोटी बहन को पीछे छोड़कर वंदना पति के साथ हृदय पर भारी घाव लिए लौट आई थी. भास्कर के प्रेम ने ख़ुशियों से उसका दामन भर दिया था, पर नियति तो कुछ और ही चाल चलने वाली थी. बच्ची के जन्म का उल्लास भी दोनों अच्छी तरह मना नहीं पाए थे कि अचानक अत्यधिक रक्तस्राव के कारण दूसरे ही दिन संध्याकाल में वंदना भास्कर के जीवन में अंधकार छोड़कर चली गई. नन्हीं बेटी को कलेजे में अमूल्य निधि की भांति सहेजे भास्कर पाषाण प्रतिमा में बदल गए थे. वंदना गई तो वो शहर ही छोड़ दिया भास्कर ने. तबादला करवाकर पटना चले आए. बनारस से कोसों दूर.
भावना को पिता का इतना प्यार मिला कि उसकी मुट्ठी छोटी पड़ने लगी. उसकी हर इच्छा का उत्तर ‘हां’ होता था. “क्या मैं एक बार भी ननिहाल नहीं जा सकती पापा?” उसके इस भावपूर्ण प्रश्‍न का उत्तर भी पापा ने पहली गाड़ी से बनारस ले जाकर दिया था.
ननिहाल के वैभव का सूचक भवन का द्वार खुला तो संवेदना की अपार भेंट मन में समेटे आनन्दमग्न भावना जैसे आकाश से गिरी.
“तुम यहां क्यों आए हो?” उसके नाना का कठोर स्वर वातावरण को भी जड़ बना गया था. तभी पीछे से आकर एक युवती ने भावना को कलेजे में भींच लिया था.
“भीतर चलो अर्चना! हमारा इनसे कोई रिश्ता नहीं…!” एक कठोर स्वर और गूंजा था.
मन पर भारी बोझ लिए पिता-पुत्री लौट आए थे और मां की एक तस्वीर मांगकर लाने की भावना की मासूम इच्छा धूमिल हो गयी थी. मात्र आठ वर्ष की उम्र में उसे गहरा धक्का मिला था. फिर समय अपनी गति से अविराम चलता रहा.
स्नातक की पढ़ाई पूरी करने पर उसका विवाह विजय के साथ सम्पन्न हो गया और वो पिता का घर छोड़कर पति के घर आ गई. ममतामयी सास और दो बड़ी स्नेहमयी ननदों के प्यार से उसका रिक्त दामन भर उठा. पर मन में से फांस नहीं निकली… न जाने कैसी होगी मेरी मां? वो कई बार बचपन में आईना देखकर सोचती ‘क्या वो मेरे जैसी ही थी?’
“तुम तो बिल्कुल मुझ पर गई हो भावना! कहते हैं न, पितृमुखी सदा सुखी…” पिता और उससे जुड़े सभी लोगों की इस बात ने उसके मन में बन रहे मां के बिंब को पुनः धुंधला कर दिया था. पति विजय एक सुलझे हुए इंसान थे. ईश्‍वर ने सुख की हर किरण से भावना का अंतर्मन आलोकित किया था. धरा का जन्म हुआ तो उसे लगा वो परिपूर्ण हो गई है, पर नन्हीं धरा को सीने से लगाकर अक्सर वो धरा में स्वयं को और स्वयं में अपनी अनदेखी मां को जी उठती थी.
“मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर सकता हूं भावना, पर मैं समझ नहीं पा रहा कि तुम्हारी इस पीड़ा का क्या उपाय करूं?” कभी-कभी विजय भी बेहद दुखी हो जाते थे.
उसने तो इस दर्द को सहेजना सीख लिया था, पर आज इस तस्वीर को देखकर न जाने क्यों उसकी वेदना फिर मुखर हो उठी थी.
“मम्मी! आज खाना नहीं मिलेगा क्या?” धरा उसके कंधे पर झूल गई तो वो वर्तमान में लौटी. खाना खाकर धरा तो सो गई, पर भावना रातभर करवटें ही बदलती रही. दूसरी सुबह धरा को स्कूल भेजकर वो घर के कामों में लग गई. विजय शाम को लौटने वाले थे. उसे पति का मनपसंद खाना भी बनाना था. तभी फ़ोन की घंटी बज उठी.
“हैलो!” उसने कहा.
“मुझे भावना से बात करनी है.” दूसरी ओर से एक नारी स्वर उभरा.
“मैं भावना ही बोल रही हूं. आप कौन?”
“तुम मुझे नहीं जानतीं, पर मैं तुम्हें अच्छी तरह से जानती हूं.”
“कैसे…?”
“एक ऐसे व्यक्ति के माध्यम से, जो तुम्हें बहुत प्यार करता है.” वो हंसी.
कहीं रॉन्ग नंबर तो नहीं लग गया? भावना सोच में पड़ गई, फिर बोली, “शायद आपने ग़लत नंबर डायल किया है.”
“नहीं भावना! मुझे तुम से ही बात करनी है. कभी-कभी ख़ून के रिश्ते भी कितने बेमानी हो जाते हैं न…? गैरों से भी ़ज़्यादा पराये अपने लगने लगते हैं और कभी-कभी एक ऐसा व्यक्ति जिससे रक्त संबंध नहीं होता, वो अचानक परायेपन की पीड़ा झेल रहे ख़ून के दो अटूट रिश्तों को फिर से जोड़ देता है, है न आश्‍चर्य की बात?” उस स्त्री ने कहा तो भावना हतप्रभ रह गई.
“आप पहेलियां क्यों बुझा रही हैं? अपना परिचय दीजिए, अन्यथा मैं फ़ोन रख रही हूं.” भावना आपा खोने लगी थी.
“मैं आ रही हूं. मेरा इंतज़ार करना… और हां, तुम्हें एक ‘सरप्राइज़’ तो मिला ही होगा न?” उधर से कहा गया और फ़ोन कट गया.
सरप्राइज़? क्या वो तस्वीर? पर ये हैं कौन? भावना पशोपेश में पड़ गई थी.
शाम को विजय दौरे से लौटे तो उन्हें सारी बातें बताकर भावना ने वो तस्वीर दिखाते हुए पूछा, “किसने भेजी होगी ये तस्वीर?”
“मुझे तो लगता है किसी ने मज़ाक किया है. अगर नहीं तो प्रतीक्षा करो शायद कोई सचमुच आ जाए.” विजय हंस पड़े थे.
सुबह कॉलबेल बजी तो भावना ने दरवाज़ा खोला. सुंदर, सौम्य व्यक्तित्व की धनी, लगभग पचास वर्ष की स्त्री स्निग्ध वात्सल्यमयी मुस्कान लिए द्वार पर खड़ी थी.
“तुम भावना हो न?” उन्होंने आगे बढ़कर उसे गले से लगा लिया तो भावना ठगी-सी खड़ी रह गई.
“जी. आप कौन?”
“अरे! मौसीजी आप आ गईं?” तभी विजय ने कमरे में आते हुए कहा और उनके चरण-स्पर्श किए. भावना की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, पर जैसे-जैसे सत्य सामने आता गया, संशय की परतें हटने लगीं. वो आश्‍चर्यमिश्रित ख़ुशी से खिल-सी गयी.
“आप मेरी मां की सगी बहन हैं?”
“हां बेटी! वंदना दीदी की मृत्यु के बाद जीजाजी ने अचानक ही शहर छोड़ दिया था. मुझे लगा था इस रिश्ते की डोर अब कभी जुड़ नहीं पाएगी. पर किसी ने सहसा इस खंडित डोर को फिर से जोड़ दिया.” मौसी ने भावविह्वल होकर कहा, तो भावना ने पूछा, “किसने?”
“सब बताऊंगी. पहले ये तो बता वो तस्वीर कैसी लगी? वो सरप्राइज़…?”
“तस्वीर!”
“हां, तेरी और वंदना दीदी की तस्वीर, जो मैंने भेजी थी?” मौसी ने कहा तो अचानक भागकर वो तस्वीर उठा लाई.
“मां! तुम कितनी अच्छी थी.” वो बिलख-बिलख कर रो पड़ी थी.

मौसी यादों का पिटारा खोल रही थी.
“मां-बाबूजी और भाइयों के लिए तो दीदी मर चुकी थीं, पर मेरे लिए वे बहुत ख़ास थीं. मैं अपनी बहन से बहुत प्यार करती थी. तभी तो उनके एक फ़ोन कॉल पर घर में बिना किसी को बताए अस्पताल दौड़ी चली आई थी.
‘अर्ची! तू एक गुड़िया की मौसी बन गई है… क्या उसे देखने का तेरा जी नहीं कर रहा?’ बस दीदी के शब्द कानों में गूंज रहे थे… बाकी सब कुछ मैं भूल गई थी. पालने में लेटी बिटिया को निहारती दीदी ममता की प्रतिमूर्ति लग रही थीं.
“अर्ची! क्या इसे देखकर भी मां-बाबूजी मुझे क्षमा नहीं करेंगे?” दीदी रो पड़ी थीं. तुम्हें पालने से उठाकर कलेजे से लगा लिया था. और मैंने इस अद्भुत क्षण को साथ लाए कैमरे में उतार लिया था. उस क्षण ली गई तस्वीर एक दिन तुझे सौंपकर इतना आनंद पाऊंगी कभी सपने में भी नहीं सोचा था.”
“मैंने भी तो सपने में नहीं सोचा था कि मां की एक झलक भी कभी देख पाऊंगी. अरे हां, आप मुझ तक पहुंचीं कैसे?” भावना ने उत्कंठित होकर पूछा.
“उसके माध्यम से जो तुमसे बहुत प्यार करता है. जो मां के प्रति तुम्हारी निष्ठा और उनको देखने की तुम्हारी उत्कंठा का साक्षी रहा है. वही जिसने सप्तपदी के समय लिए गए इस वचन का अक्षरशः पालन किया है कि वो तुम्हारी हर ख़ुशी का ख़याल रखेगा.”
“क्या विजय ने ये रिश्ता पुनः जोड़ा है? पर कैसे?” भावना का अंतर्मन आह्लाद की नई फुहारों से भीग उठा. ओह! तभी वो बार-बार उसकी ननिहाल के बारे में पूछते रहते थे. पिछले वर्ष पापा की मृत्यु के बाद भी उन्होंने वहां सूचना भेजनी चाही थी, पर भावना ने ही मना कर दिया था कि पापा के साथ ही वो रिश्ता भी मर गया.
भावना ने प्रश्‍नवाचक स्निग्ध दृष्टि पति पर डाली तो विजय ने पूछा,
“माणिक के कारण मैं मौसी तक पहुंच पाया.”
“माणिक? वही न जो आपके सहकर्मी हैं. एक-दो बार घर पर भी आ चुके हैं?”
“हां वही माणिक… एक दिन बातों ही बातों में उसने बताया कि वो जिनके मकान में रहता है, वो लोग नारायणपुर के रहनेवाले हैं तो मैं चौंक पड़ा. नारायणपुर? यानी तुम्हारा ननिहाल? जब मैंने माणिक को बताया कि वहां मेरी पत्नी का ननिहाल है और मैं उसके मकान मालिक से मिलना चाहता हूं, तो वो मुझे अपने साथ अपने घर ले गया.
“नारायणपुर में किसके घर आपकी पत्नी का ननिहाल है.” माणिक के मकान मालिक डॉ. विश्‍वजीत ने पूछा तो मैंने बता दिया, “पंडित विश्‍वम्भरनाथ पांडे जी भावना के नाना हैं.”
“क्या?” अब चौंकने की बारी विश्‍वजीत जी की थी.
“क्या वो वंदनाजी की बेटी हैं?” उन्होंने पूछा. फिर तो आश्‍चर्यजनक रूप से टूटी कड़ियां जुड़ने लगीं.
“विजयजी! पंडित विश्‍वम्भर नाथजी मेरे भी नाना हैं.” उन्होंने स्नेह से मेरा हाथ थामते हुए बताया. विश्‍वजीतजी तुम्हारी अर्चना मौसी के बड़े बेटे निकले.”
“और जिस दिन विश्‍वजीत और माणिक के साथ दामादजी मेरे घर आए, वो दिन मेरे जीवन का एक अद्भुत दिन था. और मेरे दामाद ने मांगा भी तो क्या… अपनी पत्नी के लिए उसकी मां की एक तस्वीर? और कहे आत्मा की गहराइयों तक उतरनेवाले शब्द… ‘रक्त संबंध की जड़ें आत्मा से जुड़ी होती हैं मौसीजी! ये कभी टूट ही नहीं सकतीं.’ विजय ने ही बताया कि तुम्हें हर बात में सरप्राइज़ देने की, लोगों को चौंका देने की आदत है. सोचा क्यों न इस बार हम सब मिलकर तुम्हें बड़ा-सा सरप्राइज़ देकर चौंका दें? बस, बन गया प्लान. तुम्हें पता भी नहीं चला और मैं सरप्राइज़ बनकर आ गई तुम्हारे घर.” मौसी ने हंसते हुए बताया तो भावविभोर भावना बोली, “सरप्राइज़ नहीं… सरप्राइज़ ग़िफ़्ट कहिए मौसीजी. आपका आना मेरे जीवन में किसी उपहार से कम है क्या?”
“अभी और सरप्राइज़ बाकी है, लीजिए अपने भाई-भाभी से भी मिल लीजिए.” कहते हुए माणिक ने विश्‍वजीत और उनकी पत्नी के साथ कमरे में प्रवेश किया तो भावना की प्रसन्नता का पारावार न रहा. वो सबसे मिलकर भावविभोर हो उठी.
“मैं हृदय से आपकी आभारी हूं. आपके कारण ही मुझे फिर से परिवार का सुख मिल सका.” भावना ने भीगे कंठ से कहा तो माणिक बोल पड़ा,
“नहीं भावनाजी! जब मन में किसी भी बात को लेकर दृढ़ निश्‍चय कर लिया जाता है न, तो मार्ग ज़रूर मिलता है. विजय की दृढ़ इच्छाशक्ति और आपके प्रति उसके स्नेह ने इस रिश्ते को जोड़ा है. मैं तो केवल माध्यम बना.”
“केवल माध्यम नहीं, आज से आप मेरे बड़े भाई भी हैं.” भावना ने कहा.
“बाप रे! अचानक दो-दो भाई? मैं तो गया काम से. वो कहावत है न, सारी ख़ुदाई एक तरफ़ पत्नी का भाई एक तरफ़.” विजय ने कहा तो सभी हंस पड़े. रिश्तों की सोंधी सुगंध से कमरा भर उठा.
एकांत के क्षणों में विजय ने पूछा, “अब तो ख़ुश हो न?”
“बहुत ख़ुश. बचपन से ही मैं जिस प्रश्‍न को लेकर जूझती रही हूं, उसका उत्तर इतना मनोहर… स्नेहिल… अद्भुत और आनंददायक होगा, मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.” कहती हुई भावना ने पति के कंधे पर सिर टिका दिया था. नव प्रभात की प्रतीक्षा में रात ढल रही थी.

डॉ. निरुपमा राय

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पहला अफेयर: प्रेम-सुमन महक रहे हैं (Pahla Affair: Prem Suman Mahak Rahel Hain)

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पहला अफेयर: प्रेम-सुमन महक रहे हैं (Pahla Affair: Prem Suman Mahak Rahel Hain)

हथेलियों पर चढ़ी मेहंदी की रंगत, मेरे प्यार की गहराई का एहसास कराती तो होगी. उसकी भीनी ख़ुशबू, तुम्हारी सांसों को महकाकर मेरे क़रीब होने का एहसास तो कराती होगी. गोरी कलाइयों में खनकती कांच की चूड़ियां, मेरे नाम से तुम्हारे कानों में गुनगुनाती होंगी. क्यों तुम्हें लगता है कि मैं तुमसे दूर हूं? मुझे तो तुम हर पल मेरे दिल के क़रीब ही लगती हो…

अमेरिका से आए पतिदेव के ख़त को पढ़कर मैं कुछ पलों के लिए खो गई. फ़ोन पर उनसेे बातें तो होती थी, लेकिन प्यार के रंग में रंगे हुए उनके इस प्रेम-पत्र और उसमें अभिव्यक्त किए गए एक-एक शब्द की गहराई मेरे प्रति जिस प्रेम को व्यक्त कर रही थी… उस प्रेम की बारिश में मैं पल-पल भीग रही थी.

मेरी आंखों के सामने गुज़रे हुए पल झिलमिलाने लगे, जब कॉलेज से लौटने पर मां ने बताया कि तुम्हें लड़केवाले देखने आ रहे हैं. यह सुन कर तो मैं घबरा-सी गई. माथे पर पसीने की बूंदें तैरने लगीं. पहली बार ऐसी परिस्थिति से सामना जो हो रहा था. वो शख़्स कैसा होगा? क्या पूछेगा? यह सोचकर ही मेरे शरीर में एक सिहरन-सी दौड़ जाती. शाम को मन में अनगिनत ख़्वाहिशें और सवाल लिए मैं अजनबियों के बीच सकुचाते-शरमाते हुए पहुंच गई.

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एकांत में मुझे उनसे बात करने का मौक़ा मिला. छुईमुई-सी, नज़रें झुकाए हुए मैं उनके सामने बैठी थी, तभी एक मिश्री-सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी, “जरा मेरी ओर करम तो फ़रमाइए… मुझे अच्छी तरह से देख लीजिए, वरना बाद में शिकायत होगी…” यह सुनते ही मेरी दृष्टि बरबस ही उनकी ओर खिंची चली गई. सांवला रंग, बड़ी-बड़ी आंखें, ग़ज़ब की मुस्कान, सौम्य व्यक्तित्व, मैंने शरमाकर अपनी आंखें झुका लीं. उस पल मुझे ऐसा लगा, जैसे मैं तो युगों से इनको पहचानती हूं. मेरी “हां” को मम्मी-पापा भलीभांति जान गए और इनके घरवालों के “हां” कहते ही शादी की तारीख़ तय हो गई.

एक ओर बाबुल का आंगन छूट जाने का दुख मन को सता रहा था तो दूसरी ओर मेरे मन में प्रेम की तरंगें उठने लगीं. कितने सतरंगी एहसास हृदय को गुदगुदाने लगे थे. इनका नाम ज़ुबां पर आते ही दिल की धड़कनें ब़ढ़ती-सी महसूस होतीं. ङ्गयही तो प्यार हैफ सहेलियों ने चिढ़ाया. एक दिन मां ने एक ख़त दिया. ख़त को पढ़ते-पढ़ते मन झूम उठा. आख़िर भावी पतिदेव ने मेरी प्रशंसा में कविता लिखकर अपने प्यार का इज़हार जो किया था. एक-एक शब्द मुझे मोती के समान लग रहा था. अपने प्रेम की अनमोल भेंट उन्होंने ल़फ़्ज़ों में जो
लपेटकर भेजी थी. उसके सामने तो हर गहना कम था.

शादी के बाद जब नए जीवन की शुरुआत की, तब भी पतिदेव के प्रेम से मेरा रोम-रोम सराबोर होता रहा. प्रेम-सुमन से मेरा घर-आंगन महकने लगा. जैसे-जैसे बरस बीतते गए… हमारे प्रेम की रंगत निखरती गई.

एक दिन ऑफ़िस से आकर इन्होंने कहा, “मुझे ऑफ़िस की ओर से 2 साल के लिए अमेरिका जाना होगा. तुम्हें और बच्चों को मैं छुट्टियों में ले जाऊंगा.” यह सुनते ही मेरी आंखें भर आईं. इनसे दूर रहने की तो मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. एयरपोर्ट पर विदा लेते समय ये बोले, “हमारे मन-प्राण तो सदैव एक हैं. देखना, व़क़्त कैसे पंख लगाकर उड़ जाएगा और मैं फिर तुम्हारे पास आ जाऊंगा.” मैंने बुझे मन से कहा, “पल-पल आपकी याद आएगी और मेरे दिल को सताती रहेगी. आपसे बस इतनी गुज़ारिश है, जैसे शादी से पहले अपने ख़तों द्वारा मेरे दिल में अपने प्रेम की दुनिया आबाद की थी, वैसे ही फिर से ख़तों द्वारा हमारे प्रेम-सुमन को महकाते रहिएगा.” इनकी मुस्कुराहट इस बात का सबूत थी कि ये पुनः हमारे प्यार के उन सुनहरे पलों को दोबारा से लौटा लाएंगे. आज पतिदेव का यह ख़त फिर से बीता समय साथ लेकर आ गया. मैं ख़ुशनसीब हूं कि मेरा पहला प्यार आने वाले कई जन्मों तक मेरे साथ रहेगा.

– राजेश्‍वरी शुक्ला

पहले प्यार के मीठे एहसास में डूबे ऐसे ही अफेयर्स के लिए यहां क्लिक करें: Pahla Affair

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क्रिएटिव राइटिंग: कल्पनाओं को दें उड़ान (Creative Writing: Art of Self Expression)

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बचपन से लेकर आज तक हम सभी कहानियां सुनते और सुनाते आए हैं. कहानी सुनना सबको भाता है. ऐसे में इसकी डिमांड आजकल तेज़ी से बढ़ रही है. क्रिएटिव राइटिंग में अपना भविष्य आज़माने के लिए आपको धैर्य से काम लेना होता है. कहानी लेखन, धारावाहिक, फिल्म किसी में भी आप करियर बना सकते हैं. क्रिएटिव राइटर वो होता है, जो अपनी कल्पना से कुछ नया बनाता है और फिर उस नई सोच, विचार और भाव को काग़ज़ पर उतारता है. किसी के चोरी किए हुए विचारों को छपवाना क्रिएटिव राइटर का काम नहीं है. 

क्रिएटिव राइटिंग के प्रकार 

1. फिक्शन राइटिंग: इसके तहत प्ले राइटिंग, स्क्रीन राइटिंग, चिल्ड्रेन्स बुक, बुक रिव्यू और फिल्म क्रिटीसिज़म (आलोचना) शामिल है.

2. नॉन फिक्शन राइटिंग: इसके अंतर्गत कविता, लेख, जीवनी, रहस्यवादी लेख, रोमांस, साक्षात्कार और आर्ट क्रिटीसिज़म (आलोचना) शामिल है.

3. नॉवेल राइटिंग: इसके अंतर्गत स्क्रिप्ट राइटिंग, टीवी सीरीयल राइटिंग, ट्रैवल राइटिंग, लिरिक्स राइटिंग के साथ बिज़नेस कम्यूनिकेशन शामिल है.

शैक्षणिक योग्यता

क्रिएटिव राइटर बनने के लिए सबसे ज़रूरी है लिखने के प्रति आपका रुझान. रचनात्मकता, नई और अलग चीज़ें सोचने की क्षमता. लोगों के दिमाग़ को पढ़ने और उनकी पसंद जानने की योग्यता भी आप में होनी चाहिए.

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प्रमुख संस्थान

  • जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली.प दिल्ली यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली.
  • इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली.
  • ब्रिटिश काउंसिल ऑफ इंडिया, नई दिल्ली.
  • मुंंबई यूनिवर्सिटी, मुंबई.प यूनिवर्सिटी ऑफ कोलकाता, कोलकाता.
  • कर्नाटक स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी, कर्नाटक.
  • द आई.सी.एफ़.ए.आई. यूनिवर्सिटी, हैदराबाद.
  • सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन लैंग्वेजेज़, कर्नाटक.
  • यू.पी. राजश्री टंडन ओपन यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद.

रोज़गार के अवसर

इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए संभावनाएं बहुत हैं. इसमें पैसे बहुत हैं. बस, ज़रूरत है, तो लगन की. एक बार इस क्षेत्र में आपकी राइटिंग जम गई, तो फिर आपको कोई नहीं रोक सकता.

करियर संबंधी आर्टिकल्स के लिए यहां क्लिक करें: Career-Education

 

 

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जानें अपना साप्ताहिक राशिफल: 28 August-3 September 2017 (Know Your Weekly Horoscope 28 August-3 September 2017)

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मशहूर ज्योतिष (Jyotish) और वास्तु एक्सपर्ट राजेंद्रजी से जानें कैसा रहेगा यह सप्ताह आपके लिए. इस हफ़्ते कैसी रहेगी आपकी लवलाइफ (Love Life), आपकी सेहत, आपकी आर्थिक स्थिति और भी बहुत कुछ. इस सबके साथ एक ख़ास गुडलक टिप जो आपके लिए होगा लाभदायक. साथ ही बाधाएं दूर करने के लिए अपनाएं ये गुड लक टिप्स (Good Luck Tips).

राशि: मेष (Aries)

राशि: वृषभ (Taurus) 

राशि: मिथुन (Gemini)

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राशि: कर्क (Cancer)

राशि: सिंह (Leo)

राशि: कन्या (Virgo)

राशि: तुला (Libra)

यह भी पढ़ें: क्या आप भी 8, 17 और 26 को जन्मे हैं, तो आपका रूलिंग नंबर है- 8

राशि: वृश्‍चिक (Scorpio)

राशि: धनु (Sagittarius)

राशि: मकर (Capricorn)

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राशि: कुंभ (Aquarius)

राशि: मीन (Pisces)

बाधाएं दूर करने के आसान गुडलक टिप्स

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कपिल शर्मा के शो पर कभी नहीं आएंगे अजय देवगन, जानिए क्यों(Ajay Devgan Will Never Appear In Kapil Sharma Show)

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इन दिनों कपिल शर्मा के सितारे गर्दिश में हैं. जब से सुनील ग्रोवर कपिल का शो छोड़कर गए हैं, उसके बाद से ही  कपिल शर्मा की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. कपिल के कॉमेडी शो को एक के बाद एक झटके सहने पड़ रहे हैं. सुनने में आया है कि इन सभी घटनाओं के कारण कपिल के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा रहा है और वे डिप्रेशन में चले गए हैं. इन सभी चीज़ों का निगेटिव प्रभाव उनके शो पर पड़ रहा है. कपिल शूटिंग के लिए समय पर नहीं पहुंचते हैं, जिसके कारण शोज़ कैंसिल करने पड़ते हैं.

कपिल शर्मा के शो पर कभी नहीं आएंगे अजय देवगन

अब तक जब हैरी मेट सेजल, मुबारकां, गेस्ट इन लंदन और पोस्टर बॉयज़ के प्रोमोशनल एपिसोड्स कैंसल किए जा चुके हैं. और अब अजय देवगन की आगामी फिल्म बादशाहों की टीम के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. सूत्रों के अनुसार कपिल शर्मा शूट के लिए समय पर नहीं पहुंचे. 15 मिनट तक इंतज़ार करने के बाद अजय देवगन, इलियाना डीक्रूज़, इशा गुप्ता व इमरान हाशमी गुस्से में सेट से उठकर गए. सुनने में आया है कि चूंकि बादशाहों की टीम को कपिल शर्मा के स्वभाव व सेहत के बारे में पहले से जानकारी थी इसलिए वे पहले से ही कपिल की टीम से टच में थे, ताकि सबकुछ ठीक से हो सके. बादशाहों के स्टार्स घर से निकलने से पहले कपिल की टीम से पूछा तो उन्होंने कहा कि कपिल होटल में हैं और होटल स्टूडियो से स़िर्फ 15 मिनट की दूरी पर है इसलिए उन्हें पहुंचने में समय नहीं लगेगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. सूत्रों के अनुसार, कपिल सुबह 6 बजे तक पार्टी कर रहे थे इसलिए सुबह से शूट के लिए समय से नहीं उठ पाए. फिर बादशाहों की टीम को सूचित किया गया कि कपिल भी उठे नहीं हैं और उन्हें सूट के लिए पहुंचने में कम से कम दो घंटे लगेंगे. यह सुनने के बाद अजय व उनकी टीम को इतना ग़ुस्सा आया कि वे तुरंत स्टूडियों से निकल गए और अजय देवगन ने कसम खाई कि वे कपिल शर्मा के शो में दोबारा कभी नहीं आएंगे.

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राशि के अनुसार होम डेकोर(How to Decorate Your Home According to Your Zodiac Sign)

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आपके जीवन में हमेशा ख़ुशियां शामिल हों, सुख-संपत्ति और स्वास्थ्य प्राप्त हो, इसके लिए ज़रूरी है होम डेकोर करते समय अपनी राशि का भी ध्यान रखें.

मेषराशि के अनुसार होम डेकोर

एनर्जेटिक मेष राशिवालों का रेड पसंदीदा कलर है.

– घर या ऑफिस में रेड या हॉट पिंक का इस्तेमाल इनमें एनर्जी बनाए रखता है.

– इन्हें लाइट्स पसंद हैं. कम लाइट्स में ये डिप्रेशन महसूस करते हैं.

– इस राशिवालों को लाइट कलर्स से बचना चाहिए और डेकोर मेें ब्राइट कलर्स का इस्तेमाल करना चाहिए. रेड रंग का हिंट हर रूम में होना चाहिए, ख़ासकर किचन और डाइनिंग रूम में.

– प्रेरणादायक पंक्तियां, ट्रॉफीज़ या मेमेंटोज़ को ये होम एक्सेसरीज़ के तौर पर इस्तेमाल करना पसंद करते हैं.

– मेष राशिवाले पढ़ने के शौक़ीन होते हैं, इसलिए इन्हें अपने घर में बुकशेल्फ भी बनाना चाहिए.

– इन्हें क्लीन-ऑर्गेनाइज़्ड घर पसंद आता है, तो होम डेकोर भी वे उसी के हिसाब से करवाते हैं.

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वृषभ

– इस राशिवाले लक्ज़री और कंफर्ट चाहते हैं और इसकी झलक इनके होम डेकोर में भी नज़र आती है.

– इन्हें ट्रेडिशनल चीज़ों से लगाव होता है. शायद इसलिए इनके घरों में आपको एंटीक चीज़ों का कलेक्शन मिल जाएगा.

– इन्हें हर ख़ूबसूरत चीज़ आकर्षित करती है, इसलिए चाहे वो आर्ट पीस हो या कोई पेंटिंग- ये डेकोर में इनको शामिल कर लेते हैं.

– पर्शियन रग्स, पेंटिंग्स, लेदर सोफा, आर्टिस्टिक फोटोफ्रेम- इनके घर में आपको ये चीज़ें ज़रूर नज़र आ जाएंगी.

– व्हाइट और ब्लू रंग इस राशिवालों के लिए लकी कलर्स हैं और फेवरेट कलर्स भी. इन्हें डेकोर में शामिल करें.

– घर की दीवारों को यलो, क्रीम या व्हाइट रंग से पेंट करें. इससे पॉज़िटिव एनर्जी बनी रहेगी.

 

मिथुन

-ये सोशल और ज़िंदादिल होते हैं और लोगों से मिलना-जुलना इनको पसंद आता है. इनका घर भी इनके दिल की तरह ही बड़ा होता है.

– मिथुन राशिवाले काफ़ी क्रिएटिव होते हैं और घर सजाते वक़्त भी ये क्रिएटिविटी का इस्तेमाल करते हैं. इनके होम डेकोर में आपको ओल्ड और मॉडर्न दोनों का परफेक्ट ब्लेंड नज़र आएगा.

– इस राशिवालों को बदलाव पसंद है, घर की सजावट में भी ये बदलाव करते रहते हैं.

– लाइट ग्रीन, लाइट ब्लू, ऑरेंज और रेड कलर का इस्तेमाल करना चाहिए. ये इनके लिए लकी कलर्स हैं.

– वायव्य (उत्तर-पश्‍चिम) कोण में हल्का फर्नीचर रखें. इससे घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहेगी.


कर्क

– कर्क राशिवाले क्रिएटिव और रोमांटिक होते हैं. इन्हें रिश्तों से गहरा जुड़ाव होता है, इसलिए इनके लिए डेकोरेशन से ज़्यादा ज़रूरी है घर में कोज़ी और अपनापन.

– चूंकि ये फैमिली से ज़्यादा जुड़ाववाले होते हैं, इसलिए इनके घर में फैमिली फोटोज़, कोलाज, एलबम आदि को ख़ास जगह दी जाती है.

– एंटीक चीज़ें इन्हें पसंद हैं, फिर चाहे वो एंटीक फर्नीचर हो, आर्ट पीस या होम एक्सेसरीज़- ये डेकोर में इसका ख़ूबसूरती से इस्तेमाल करते हैं.

– सिल्वर, लाइट ब्लू और व्हाइट इस राशि के लिए लकी कलर है. इनका इस्तेमाल इनको शांति और सुकून देगा.

– ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में पानी से भरा बर्तन या बहते पानी की तस्वीर ज़रूर लगाएं.

 

सिंह

– रॉयल, क्लासिक और एलीगेंस- सिंह राशिवालों की ख़ूबियां हैं और ये उनके होम डेकोर में भी नज़र आती हैं.

– सिंह राशिवालों को नेचर से ख़ास लगाव होता है, इसलिए ये होम डेकोर में इनडोर प्लांट्स को ख़ास जगह देते हैं.

– ये क्लीन इंटीरियर सिलेक्ट करते हैं. बड़े-बड़े फर्नीचर इन्हें अच्छे नहीं लगते. क्लासी, मॉडर्न और कंफर्टेबल यही इनका डेकोर मंत्र होता है.

– इन्हें बोल्ड कलर्स पसंद हैं. डीप रेड, टरकॉइज़, प्लम कलर्स का इस्तेमाल ये ज़्यादा करते हैं, जो इनके होम डेकोर को रॉयल अंदाज़ देते हैं.

– लिविंग रूम के डेकोर पर ये ख़ासतौर से ध्यान देते हैं, क्योंकि यहां समय बिताना इन्हें पसंद होता है.

– व्हाइट, सिल्वर और गोल्ड इनके लिए लकी कलर्स हैं. कुशन कवर्स, परदे या बेडशीट में इनका इस्तेमाल जीवन में सुख-समृद्धि लाएगा.

 

कन्या

– इस राशिवाले परफेक्शनिस्ट होते हैं. होम डेकोर में भी इन्हें सब कुछ परफेक्ट ही चाहिए. ये कभी संतुष्ट भी नहीं होते, इसलिए डेकोर में ये बदलाव लाते रहते हैं.

– इन्हें क्लीन डेकोर पसंद है. थोड़ा भी क्लटर इन्हें पसंद नहीं आता.

– कन्या राशिवालों के घर में प्रवेश करते ही एक अलग ही शांति और सुकून का एहसास होता है.

– सिंपल और बेसिक यही इनका होम डेकोर मंत्र है. होम एक्सेसरीज़ के तौर पर ये कुछ ही चीज़ें यूज़ करते हैं, मसलन- कलरफुल कुशन्स, फ्लावर वास.

– लाइट ग्रीन, ब्लू, यलो और ऑरेंज इनके लिए लकी कलर्स हैं.

– तुलसी का पौधा लगाएं, हमेशा स्वस्थ रहेंगे.र्ीं नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्‍चिम) में कोई हैवी फर्नीचर रखें या अपने पूर्वजों की तस्वीर लगाएं, तो हमेशा ख़ुशहाली बनी रहेगी.

 

तुला

– इस राशिवाले आर्ट और क्राफ्ट लवर होते हैं और अपने होम डेकोर को भी डिज़ाइनर लुक देना पसंद करते हैं.

इनके डेकोर में आपको परफेक्ट बैलेंस नज़र आएगा. कहीं कुछ भी ज़्यादा या लाउड नहीं. बस, जितने की ज़रूरत है, वही ख़ूबसूरती से अरेंज किया हुआ.

– इन्हें लाइट व कूल कलर पैलेट पसंद आता है. क्रीम, व्हाइट, पिंक, लाइट ब्लू इनके लिए परफेक्ट कलर सिलेक्शन है.

– कलाप्रेमी होने के कारण आपको इनके घर होम थिएटर, स्टाइलिश आउटफिट से भरा वॉर्डरोब और किताबों का कलेक्शन मिलेगा.

– हां, ये कभी-कभी बहुत ज़्यादा हैवी फर्नीचर सिलेक्ट करने की ग़लती कर बैठते हैं, जिससे इन्हें बचना चाहिए.

 

वृश्‍चिक

– वृश्‍चिक राशिवाले लोग बेहद प्राइवेट क़िस्म के होते हैं. इनके लिए घर यानी पर्सनल स्पेस, जिसमें बहुत ज़्यादा बाहरी लोगों की दख़लअंदाज़ी पसंद नहीं.

– इसी वजह से इनके घर पर आपको वेल्वेट जैसे हैवी फैब्रिकवाले परदे ही मिलेंगे.

– इन्हें अपनी पर्सनल लाइफ इतनी पसंद है कि ये बेडरूम को लिविंग रूम से एकदम डिटैच्ड यानी अलग-थलग रखते हैं.

– इनके होम डेकोर में पावर की झलक मिलती है, चाहे फिर वो फर्नीचर सिलेक्शन हो, फनिर्ंशिंग या होम एक्सेसरीज़.

– ये क्वालिटी से कभी समझौता नहीं करते. हाई क्वालिटी फर्नीचर, पेंटिंग- इनका सिलेक्शन बेहद ख़ास होता है.

– वृश्‍चिक राशिवालों को पानी बेहद पसंद है. बीच के किनारे घर बनाना इनका सपना होता है. अगर आप ऐसा नहीं कर सकते, तो फिश एक्वेरियम घर में रखें.

– रेड, लाइट यलो और ऑरेंज इनके फेवरेट कलर्स हैं और इन्हें अपने डेकोर में शामिल करना वो नहीं भूलते.

धनु

– इस राशिवालों को ओपन स्पेस बहुत पसंद है, इसलिए बालकनी या टैरेस वाला घर ही इन्हें अच्छा लगता है.

– ऑरेंज, हॉट पिंक, यलो जैसे ब्राइट कलर्स को डेकोर में शामिल करें.

– इस राशिवालों को एथनिक लुक पसंद है. ब्रोकेड के कुशन कवर्स, डिफरेंट प्रिंट्स के कर्टन और बेडशीट्स का कलेक्शन इनके पास होता है.

– कंफर्टेबल सोफा, परफेक्ट लाइटिंग अरेंजमेंट और एक बड़ा-सा डाइनिंग टेबल- ये सारी चीज़ें इनके घर में आपको नज़र आ ही जाएंगी.

 

मकर

– मकर राशिवाले बेहद अनुशासित होते हैं.

– होम डेकोर में सिंप्लिसिटी ही इनका फॉर्मूला है. ये कम से कम फर्नीचर और होम एक्सेसरीज़ ही इस्तेमाल करना पसंद करते हैं.

– डेकोर में कंफर्टेबल स्टाइल इनकी पहली चॉइस होती है.

– इन्हें कल्चर और ट्रेडिशन से भी प्यार होता है, इसलिए ये एंटीक चीज़ों को डेकोर में शामिल करना पसंद करते हैं.

– डार्क ब्लू, ग्रीन, ब्राउन और ब्लैक कलर इनके फेवरेट और लकी कलर्स हैं. सुख-समृद्धि के लिए इन्हें डेकोर में शामिल करें.

– घर के दक्षिण कोण में वॉयलेट रंग का इस्तेमाल इनको फाइनेंशियली मज़बूत बनाएगा.

 

कुंभ

– मॉडर्न और फ्यूचरिस्टिक- इनके होम डेकोर में इनकी पर्सनैलिटी की झलक मिलती है.

– कंटेम्परेरी और एंटीक फर्निशिंग, लेदर सोफा इन्हें ख़ास पसंद आते हैं.

– ब्लू, वॉयलेट, इंडिगो आदि इनके फेवरेट कलर्स हैं, जिसका इस्तेमाल ये होम डेकोर में भी करते हैं.

– नेचुरल लाइट्स इन्हें एनर्जेटिक फील कराती है, इसलिए ये विंडोज़ बड़े ही सिलेक्ट करते हैं.

 

मीन

– प्रकृति प्रेमी मीन राशिवाले लोगों को ऐसे ही घर की तलाश होती है, जहां से कुदरत का ख़ूबसूरत नज़ारा दिखता हो.

– स्टाइल की अच्छी समझ होती है मीन राशिवालों को और ये क्रिएटिव भी होते हैं. स्टाइल और किएटिविटी का ये कॉम्बीनेशन इनके होम डेकोर को ख़ूबसूरत अंदाज़ देता है.

– यलो, क्रीम और गोल्डन शेड्स इनके होम डेकोर में आपको ज़रूर नज़र आएंगे, क्योंकि ये इनके फेवरेट कलर्स हैं.

– इन्हें अपने घर के ईशान कोण में पानी भरकर रखना चाहिए. इससे घर में सुख-शांति बनी रहती है.

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 श्रेया तिवारी

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12 स्मार्ट मेकअप ट्रिक्स जो हर लड़की को जानना चाहिए ( 12 Smart and Easy Makeup Tricks)

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कहते हैं कि मेकअप एक कला है. अगर आप भी मेकअप में माहिर होना चाहती हैं तो हमारे द्वारा बताए गए कुछ आसान ट्रिक्स ट्राई कीजिए.

  1. मेकअप करने से पहले अपनी स्किन पर 5-10 मिनट बर्फ़ घिस लें. एेसा करने से मेकअप ज़्यादा देर तक टिका रहता है.
  2. अपनी उंगलियों से धीरे-धीरे थपथपाते हुए फाउंडेशन को ब्लेंड करें. अगर चाहें, तो गीले स्पॉन्ज से इसे अच्छी तरह ब्लेंड कर सकती हैं.
  3. फाउंडेशन में ही सनस्क्रीन मिक्स करके लगाएं. इससे आपकी त्वचा तो ख़ूबसूरत लगेगी ही, धूप से सुरक्षित भी रहेगी.
  4. अगर आप चाहती हैं कि आईब्रोज़ के बाल शाइनी नज़र आएं तो आईब्रोज़ पर थोड़ी-सी आई क्रीम अप्लाई करें.
  5. अगर आपकी आंखों का रंग डार्क ब्राउन है तो ब्रॉन्ज़, कॉपर या ब्राउन आईशैडो सिलेक्ट करें. ग्लैमरस लुक के लिए ग्रीन चुनें.
  6. अगर आपकी आंखों का रंग ब्लैक है तो आप कोई भी शेड सिलेक्ट कर सकती हैं. ब्राउन, सॉफ़्ट गोल्ड या ग्रे आईशैड आप पर ख़ूबसूरत लगेंगे.
  7. होंठों का आकार बड़ा दिखाने के लिए ब्राइट कलर की लिपस्टिक लगाएं.
  8. अगर आपका आईलाइनर सूख गया है और लगाने पर त्वचा को खींचता है तो लगाने से पहले उसे कुछ देर के लिए बल्ब से पास रखें.
  9. ख़ूबसूरत ग्लो चाहती हैं तो अपने मॉइश्चराइज़र में लिक्विड हाईलाइट या थोड़ा-सा गोल्ड शिमर मिलाकर लगाएं.
  10. छोटी नाक को थोड़ा लंबा या शार्प दिखाना हो तो नोज़ बोन पर शिमर पाउडर लगाएं. इससे नाक लंबी दिखेगी.
  11. अगर आपके होंठ मोटे हैं तो ग्लासी और शाइनी लिपकलर्स से बचें, इसके बजाय मैटी लिपस्टिक का इस्तेमाल करें.
  12. आई मेकअप के लिए समय नहीं है तो आई लैशेज़ को कर्ल कर लें और मस्कारा लगा लें. आंखों को ख़ूबसूरत लुक देने का ये सबसे आसान और क्विक तरीक़ा है.
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Adorable! ईशा देओल की सरप्राइज़ गोद भराई पार्टी को मॉडर्न टच दिया बहन अहाना ने! (Ahana Deol Throws A Surprise Baby Shower For Sister Esha Deol)

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सिंधी रस्मों के मुताबिक़ मॉमी टु बी ईशा देओल की गोद भराई के बाद इस फंक्शन को मॉडर्न टच दिया ईशा की छोटी बहन अहाना देओल ने. अहाना ने ईशा के लिए एक सरप्राइज़ पार्टी प्लान की, जिसकी थीम उन्होंने रेट्रो रखी. 70s से लेकर 90s तक के म्यूज़िक को प्ले किया गया. लेवेंडर फ्लोरल थीम के साथ ये पार्टी वाक़ई लाजवाब थी.

ईशा और उनके पति भरत तख्तानी ने केक भी कट किया.

इस पार्टी को और भी इंस्ट्रेस्टिंग बनाने के लिए अहाना ने गेम्स भी रखे थे. देखिए कैसे भरत रस्साकशी का मज़ा ले रहे हैं.

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अहाना ने ये सरप्राइज़ पार्टी इसलिए रखी, क्योंकि जब अहाना प्रेग्नेंट थीं, तब ईशा ने भी अहाना के लिए सरप्राइज़ बेबी शॉवर पार्टी रखी थी. देखें ये क्यूट पिक्चर्स.

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अपने रिश्ते को बनाएं पॉल्यूशन फ्री!(Effective Tips to Make Your Relationship Pollution Free)

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आप कहेंगे, पॉल्यूशन तो वातावरण में होता है, भला रिश्तों में पॉल्यूशन का क्या काम… लेकिन पॉल्यूशन स़िर्फ हवा, पानी या आवाज़ का ही नहीं होता… वह भावनाओं का, विचारों का और सोच का भी होता है. जी हां, जितने भी नकारात्मक विचार व भावनाएं हैं, वो हमारे रिश्तों को प्रदूषित ही तो करते हैं. कैसे बचें इस प्रदूषण से और कैसे बचाएं अपने रिश्ते को इससे, यह जानना भी ज़रूरी है. 

पॉज़िटिव सोचें

यह इंसानी फ़ितरत है कि ज़रा-सी भी कोई चूक या वजह मिलने पर हम फ़ौरन नकारात्मक सोचने लगते हैं. अगर किसी से कोई ग़लती हो गई है या कोई हमारी अपेक्षाओं के अनुसार काम नहीं कर रहा, तो हम तुरंत उसके लिए ग़लत राय कायम कर लेते हैं, जिससे उसके ख़िलाफ़ हमारे मन में और विचारों में नकारात्मकता बढ़ती जाती है. यही नकारात्मकता हमारी भावनाओं को प्रदूषित करने लगती है, जिससे हमें बचना चाहिए.

क्या करें?

– बचने का सबसे बेहतर तरीक़ा है कि अपनी सोच सकारात्मक रखें.

– किसी के बारे में मात्र चंद अनुभवों व घटनाओं को आधार बनाकर एक निश्‍चित राय कायम न कर लें.

– अपनी अपेक्षाओं का दायरा भी बहुत अधिक विस्तृत न कर लें.

– अगर आपके रिश्ते में नकारात्मक सोच का प्रदूषण घर करने लगा है, तो उसे फ़ौरन साफ़ कर लें और आगे बढ़ें, वरना भविष्य में यह रिश्ते को भी प्रदूषित कर देगा.

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ग़ुस्से को नियंत्रित करें

ग़ुस्सा करना या क्रोध आना इंसानी कमज़ोरी है और यह स्वाभाविक भी है. हम सभी को ग़ुस्सा आता है, लेकिन अपने ग़ुस्से को कब, कहां और कैसे ज़ाहिर करना है और कैसे नियंत्रित करना है यह हमें सीखना होगा.

क्या करें?

– ग़ुस्से में अक्सर हम अपने क़रीबी को भी ऐसे अपशब्द कह जाते हैं, जो लंबे समय तक दर्द देते हैं. इसलिए जब भी ग़ुस्सा आए, तो बहस करने से बेहतर है चुप रहकर वहां से हट जाएं.

– मन ही मन यह तय कर लें कि चाहे कितने भी ग़ुस्से में हों आप, लेकिन दिल को चोट करनेवाले शब्द कभी भी अपने पार्टनर को नहीं कहेंगे.

– जब भी आपको लगने लगे कि ग़ुस्सा आप पर हावी होने जा रहा है, तो अपना ध्यान कहीं और लगाएं. ग़ुस्से में आपा खोकर अपने रिश्ते में कड़वाहट का प्रदूषण घोलने से बेहतर है कि आप विवाद को ज़्यादा तूल न दें और अपना ध्यान कहीं और लगाएं.

– ग़ुस्सा आने पर आप ध्यान या योग करें, पानी पीएं या फिर गाने सुनें. इससे क्षणिक आवेग शांत हो जाएगा और आप अपने रिश्ते को इस प्रदूषण से बचा पाएंगे.

शक-संदेह

किसी भी रिश्ते के लिए शक-संदेह का प्रदूषण बेहद ख़तरनाक होता है. यह एक बार मन को प्रदूषित कर दे, तो रिश्ते की डोर कमज़ोर पड़ती जाती है. बेहतर है कि समय रहते इसकी सफ़ाई कर दी जाए या इसे आने ही न दिया जाए.

क्या करें?

– सबसे अच्छा तरीक़ा है बात करें. अक्सर कम्यूनिकेशन गैप की वजह से ही इस तरह की चीज़ें मन में आ जाती हैं.

– अपनी कल्पना से ही स्थिति की वास्तविकता का अंदाज़ा न लगाएं. बेहतर होगा कि किसी भी तरह की ग़लतफ़हमी मन में पालने से पहले उसके बारे में पार्टनर से बात करें.

– बिना बात किए यदि आप यह तय कर लेंगे कि जो कुछ भी आप सोच व समझ रहे हैं, वो ही सही है, तो यह आपके मन में शक के प्रदूषण को और भी गहरा करेगा.

– अपने पार्टनर को भी सफ़ाई देने का व अपनी बात रखने का मौक़ा ज़रूर दें.

 

ईगो

रिश्ते में प्यार-समर्पण और अपनापन बनाए रखने के लिए ईगो जैसी भावना को त्यागना बेहद ज़रूरी है. यूं भी जब हम किसी को प्यार करते हैं, तो अहं की कोई जगह नहीं रह जाती बीच में. लेकिन अक्सर हमारा अहं हमारे लिए इतना बड़ा व महत्वपूर्ण हो जाता है कि अच्छे-ख़ासे रिश्ते को भी प्रदूषित कर देता है.

क्या करें?

– चिंतन करें. यदि आप स्वाभाविक रूप से ईगोइस्ट हैं, तो चिंतन और ज़रूरी हो जाता है कि आपके लिए महत्वपूर्ण क्या है? आपका रिश्ता या आपका ईगो?

– ख़ुद को सबसे बड़ा समझना हमारी सबसे बड़ी ग़लती होती है. जब हम एक से दो होते हैं, तो हमसे बड़ा हमारा रिश्ता हो जाता है.

– अपने रिश्ते के महत्व को पहचानें. अगर रिश्ता टूटेगा, तो आप अपने अकेलेपन में अपने ईगो को संवारकर क्या करेंगे?

– यह अपने विवेक व परिपक्वता पर ही निर्भर करता है कि हम अपने ईगो को किस तरह से कंट्रोल करके अपने रिश्ते को बचाते हैं, तो बेहतर होगा कि ईगो के प्रदूषण से अपने रिश्ते को बचाएं

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ईर्ष्या व द्वेष

ये ऐसी भावनाएं हैं, जो हमारे मन व विचारों को पूरी तरह से प्रदूषित कर देती हैं. ये हमें पूरी तरह से नकारात्मकता की ओर ले जाती हैं और उसके बाद हमारे सोचने-समझने की क्षमता को बुरी तरह से प्रभावित कर देती हैं.

क्या करें?

– ख़ुद से सवाल करें. जी हां, आप ख़ुद से पूछें कि ये ईर्ष्या आप किससे कर रहे हैं और क्यों? अपनों से ही ईर्ष्या? उन अपनों से, जो आपसे इतना प्यार करते हैं, आपकी परवाह करते हैं.

– अक्सर अपने अहंकार के चलते हम अपने पार्टनर के गुण, उसकी तारीफ़ और उसकी कामयाबी बर्दाश्त नहीं कर पाते. हम उसे अपना प्रतियोगी समझने लगते हैं, जिससे ईर्ष्या की भावना और बढ़ जाती है, जो रिश्तों और भावनाओं को इस कदर प्रदूषित करती है कि सब कुछ ख़त्म होने के बाद ही होश आता है.

– बेहतर होगा कि आप अपना नज़रिया बदलें. आपका पार्टनर आपका प्रतियोगी नहीं, सहयोगी है.

– उसकी कामयाबी का अर्थ है आपकी कामयाबी. उसकी ख़ुशी का मतलब है आपकी व आपके परिवार की ख़ुशी.

– आपका रिश्ता तभी संपूर्ण होगा, जब आप अपने पार्टनर को भी अपनी ज़िंदगी में पूरी तरह से शामिल करके उसे अपना ही एक हिस्सा मानें.

– उसके आगे बढ़ने में उसकी मदद करें, उसे सहयोग दें और उसकी ख़ुशियों को भी सेलिब्रेट करें.

– यदि ये तमाम बातें आप अपने जीवन में शामिल कर लेंगे और अपने नज़रिए को थोड़ा-सा बदलकर अपने रिश्तों को देखेंगे, तो आपका रिश्ता व जीवन पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त हो जाएगा.

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– विजयलक्ष्मी 

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किस उम्र में क्या सेक्स एजुकेशन दें? (Sex Education For Children According To Their Age)

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किस उम्र में क्या सेक्स एजुकेशन दें?

भारत में हमेशा से गोपनीय समझे जानेवाले सेक्स जैसे अहम् विषय पर बात या चर्चा करने से पढ़े-लिखे जागरुक लोग आज भी हकलाने लगते हैं, फिर बच्चों को सेक्स शिक्षा देना तो बहुत दूर की बात है… लेकिन हमारी ये हिचक हमारे बच्चों के भविष्य पर क्या असर डाल सकती है, इस बारे में कभी सोचा है हमने…? क्या ये सच नहीं कि आज बच्चों के इन सवालों का जवाब देना फिर भी आसान है, लेकिन कल उनकी समस्याओं को सुलझाना बहुत मुश्किल हो जाएगा…?

अक्सर माता-पिता बच्चों को सेक्स के बारे में यह सोचकर कोई जानकारी देना ज़रूरी नहीं समझते कि उन्हें भी तो उनके माता-पिता ने इस बारे में कुछ नहीं बताया था… तो क्या इससे उनके सेक्स जीवन पर कोई बुरा प्रभाव पड़ा? फिर आज तो ज़माना इतना एडवांस हो गया है कि उम्र से पहले ही बच्चों को सब कुछ पता चल जाता है… फिर अलग से कुछ बताने-समझाने की ज़रूरत ही क्या है? लेकिन अक्सर हमारी यही सोच बच्चों के लिए हानिकारक साबित होती है.
हम अपने बच्चों को सेक्स शिक्षा दें या न दें, उन्हें अश्‍लील पत्र-पत्रिकाओं, टीवी, फ़िल्म, इंटरनेट, यहां तक कि शौचालय की दीवारों से भी सेक्स संबंधी ऐसी कई आधी-अधूरी व उत्तेजक जानकारियां मिल ही जाती हैं, जो उन्हें गुमराह करने के लिए काफ़ी होती हैं. उस पर उनका चंचल मन अपने शरीर की अपरिपक्वता को देखे-जाने बिना ही सेक्स को लेकर कई तरह के प्रयोग करने के लिए मचलने लगता है और कई मामलों में वे इसे हासिल भी कर लेते हैं… और नतीजा? अनेक शारीरिक-मानसिक बीमारियां, आत्मग्लानि, पछतावा… और पढ़ाई, करियर का नुक़सान सो अलग…
लेकिन हमारी विडंबना ये है कि 21वीं सदी के जेट युग में जीते हुए भी अभी तक हम ये नहीं तय कर पा रहे हैं कि हम अपने बच्चों को सेक्स एज्युकेशन दें या न दें और दें तो कब और कैसे…? जबकि अब समय आ गया है कि सेक्स एजुकेशन दें या न दें से परे हम ये सोचें कि कैसे और किस उम्र से बच्चों को सेक्स शिक्षा दी जाए. बच्चों को सेक्स-शिक्षा देने का मापदंड और सही तरीक़ा क्या हो, बता रहे हैं सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. राजन भोसले.

जन्म से ही शुरुआत करें
चूंकि बच्चा भी हमारी तरह आम इंसान है और हर इंसान में सेक्स की भावना विद्यमान होती है, अतः बच्चे में भी जन्म से ही यह भावना मौजूद रहती है और वह अपने शरीर के सभी अंगों के बारे में जानने के लिए उत्सुक भी रहता है, जो कि बिल्कुल सामान्य बात है. लेकिन अधिकतर अभिभावक इस ओर ध्यान ही नहीं देते और बच्चों को सही मार्गदर्शन भी नहीं दे पाते.
कई बार ऐसा भी होता है कि हम स्वयं ही बच्चे के नाज़ुक मन में बचपन से ही सेक्स के बारे में उत्सुकता जगाने लगते है. बच्चा जब पैदा होता है तो उसे दुनिया-जहान यहां तक कि अपने शरीर के बारे में भी कुछ पता नहीं होता. ऐसे में जब कभी बच्चा अन्य अंगों की तरह अपने प्राइवेट पार्ट्स को हाथ लगाता है या सबके सामने बिना कपड़े पहने आ जाता है तो माता-पिता तुरंत उसे झिड़क देते हैं. उस समय उस मासूम को अपनी ग़लती का एहसास तो होता नहीं, उल्टे मन में उत्सुकता जागने लगती है कि आख़िर मेरे शरीर के इस हिस्से को छूने के लिए मना क्यों किया जाता है. अतः माता-पिता की डांट से बचने के लिए वह अकेले में अपने गुप्तांगों को छूने-सहलाने लगता है और माता-पिता को ख़बर तक नहीं होती. अतः माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों की सामान्य क्रियाओं पर भी उन्हें डराएं-धमकाएं नहीं, समय के साथ उनका व्यवहार ख़ुब-ब-ख़ुद बदल जाएगा.

3-4 वर्ष की उम्र में क्या बताएं?
3-4 साल की उम्र से ही समझा दें कि बेटा जिस तरह सभी लोगों के ब्रश, टॉवेल आदि बिल्कुल निजी और अलग-अलग होते हैं तथा उन्हें किसी और को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, ठीक उसी तरह तुम्हारे शरीर के ये हिस्से भी बिल्कुल निजी हैं, जिन्हें आपको किसी दूसरे के सामने नहीं खोलना चाहिए. साथ ही यह भी बताएं कि यदि कोई उसके इन अंगों को छूए या सहलाए तो वह फौरन आपको बता दे. ऐसा करने से हम बच्चों को उनके गुप्तांगों की निजता की जानकारी के साथ-साथ उन्हें बाल यौन शोषण से भी बचा सकेंगे.

5-6 वर्ष की उम्र में क्या बताएं
5-6 साल के बच्चे से मां कह सकती है कि आपको अब अपने प्राइवेट पार्ट्स मुझे भी नहीं दिखाने चाहिए, अतः अब आपको स्वयं स्नान करना होगा. इस तरह वे जान सकेंगे कि उनके प्राइवेट पार्ट बिल्कुल निजी हैं, जिन्हें किसी को भी देखने या छूने का हक़ नहीं.

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6-7 वर्ष में क्या बताएं
6-7 साल की उम्र के आस-पास के बच्चे माता-पिता पर बहुत ज़्यादा विश्‍वास करते हैं. वे अपने पिता को हीरो और मां को आदर्श मानने लगते हैं. उनके माता-पिता की कही बातें उनके लिए अंतिम वचन होती हैं. ऐसे में माता-पिता की ज़िम्मेदारी और भी ज़्यादा बढ़ जाती है कि वे अपने बच्चे के सामने ऐसी कोई हरकत या बात न करें, जिससे बच्चे के मन पर उनकी बुरी छवि बने, क्योंकि माता-पिता यदि इस उम्र में उनके सवालों का ग़लत जवाब देते हैं और बाद में उन्हें इसका पता चलता है, तो उनका माता-पिता पर से विश्‍वास उठने लगता है और उनके मन में बनी अपने अभिभावकों की श्रेष्ठ छवि भी धराशायी होने लगती है. अतः इस उम्र में माता-पिता को बहुत सतर्कता बरतनी चाहिए और बच्चों द्वारा पूछे सवालों का सही व तर्कपूर्ण जवाब देना चाहिए.

प्री-टीन्स (8 से 12 वर्ष)
इस समय बच्चों को उनके शरीर में आनेवाले बदलावों यानी माहवारी, स्तनों का विकास, गुप्तांगों में आनेवाले बाल आदि के बारे में बताएं. वैसे भी इस उम्र में लड़के-लड़कियां अपने शरीर में आनेवाले बदलावों को लेकर असमंजस की स्थिति में रहते हैं, ऐसे में आपका मार्गदर्शन उनकी कई उलझनें दूर कर सकता है.
अमूमन 12 वर्ष की उम्र में बच्चे सेक्स या बच्चे के जन्म-संबंधी बातों को समझने के लिए तैयार हो जाते हैं. उनके मन में सेक्स व सामाजिक संबंधों के बारे में जानने की उत्सुकता भी जागने लगती है. इस समय में उन्हें एसटीडी (सेक्सुअली ट्रांसमीटेड डिसीज़), टीन प्रेगनेंसी के नुक़सान आदि के बारे में बताएं, ताकि आगे चलकर वे ग़लत क़दम न उठा सकें.

टीनएजर्स (13 से 19 वर्ष)
ये उम्र का वो दौर होता है, जहां बच्चों को अपनी आज़ादी बेहद प्यारी होती है और उन पर अपने दोस्तों का बेहद असर होता है. कई बार न चाहते हुए भी दोस्तों की बातों में आकर युवा सेक्स को लेकर एक्सपेरिमेंट करने लगते हैं. फिर कई बार दोस्तों द्वारा मिला आधा-अधूरा ज्ञान उन्हें गुमराह भी कर देता है. दूसरे, सेक्स को लेकर इस उम्र में काफ़ी कुछ जानने की उत्सुकता भी रहती है. ऐसे में उत्तेजक जानकारियां उन्हें सेक्स के लिए उकसाने का भी काम कर सकती हैं. अतः इस उम्र में आप उन्हें टीन प्रेगनेंसी, सेक्सुअली ट्रांसमीटेड डिसीज़, गर्भपात से होनेवाली शारीरिक-मानसिक तकलीफ़ों से अवगत कराएं, ताकि वे गुमराह होने से बच सकें.

यूं करें बच्चे को सतर्क
बच्चों को अच्छे व बुरे स्पर्श के बारे में बताएं. यहां तक कि यदि कोई करीबी रिश्तेदार, पड़ोसी, टीचर या डॉक्टर आदि भी उन्हें ग़लत नीयत से छुए तो उन्हें ये हिदायत देकर रखें कि वे तुरंत आपको सूचित करें. आपकी ये ट्रेनिंग बच्चे को सेक्सुअल एब्यूज़ से बचाए रखेगी. क्योंकि कई बार ऐसा भी होता है कि करीबी लोगों के ग़लत स्पर्श को भी बच्चे ग़लत नहीं समझ पाते और जाने-अनजाने उनके मोहपाश में फंसते चले जाते हैं और माता-पिता को उनके सेक्सुअल शोषण की ख़बर तक नहीं लगती. और जब तक सच्चाई सामने आती है, तब तक कई बार बहुत देर हो चुकी होती है.

बच्चों के प्रश्‍नों का ग़लत जवाब न दें
अक्सर बच्चे माता-पिता से सवाल करते हैं कि उनका जन्म कैसे हुआ? इसके जवाब में कभी ‘तुम्हें हॉस्पिटल से लाए’, ‘भगवान जी से मांगा’ जैसे जवाब माता-पिता देते हैं, लेकिन ऐसा करना ठीक नहीं. आप बच्चे को इतना तो बता ही सकते हैं कि वो मां के गर्भ में अंडा बनकर आया, फिर गर्भ में ही बड़ा हुआ और वेजाइना के रास्ते बाहर आया. यानी बच्चे जब भी पूछें, उनके किसी भी सवाल का संतुष्टिपूर्ण जवाब अवश्य दें, ताकि उन्हें सही जानकारी भी मिले और उनका आप पर पूरा विश्‍वास भी बना रहे और आगे भी वे अपने मन में उपजी हर जिज्ञासा आपसे पूछ सकें. यदि आपको बच्चे द्वारा पूछे गए सवाल का फ़िलहाल कोई उत्तर नहीं सूझ रहा है तो उससे कहें कि आप उसके सवाल का जवाब थोड़ी देर बाद देंगे और फिर सोच-समझकर बच्चे के प्रश्‍नों का तथ्यपूर्ण उत्तर दें. इसके अलावा यदि आपका बच्चा सेक्स संबंधी कोई प्रश्‍न न पूछे तो इसका मतलब ये नहीं कि आप इस विषय को नज़रअंदाज़ कर दें. आप बच्चे को शरीर विज्ञान के तौर पर सेक्स एज्युकेशन दे सकते हैं.

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सेक्स को टालना सिखाएं
यदि आपके टीनएजर बच्चे के मन में सेक्स के बारे में जानने या सेक्स पर प्रयोग करने की भावनाएं आती हैं, तो इसमें कोई बुराई नहीं. लेकिन ये हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम उन्हें इसे सही समय तक टालना सिखाएं. हम अपने बच्चों को इस तरह समझा सकते हैं कि जिस तरह खाने-पीने, सोने-जागने का उचित समय होता है, जिस तरह जीवन में हर चीज़ के लिए अनुशासन ज़रूरी है, उसी तरह सेक्स जीवन में प्रवेश करने की भी एक उम्र होती है. शारीरिक-मानसिक रूप से अपरिपक्व युवा जब सेक्स का आनंद लेने की कोशिश करते हैं तो उन्हें सिवाय पछतावे, ग्लानि और शारीरिक-मानसिक तकलीफ़ के और कुछ भी हासिल नहीं होता. सेक्स स़िर्फ इच्छापूर्ति का ज़ारिया नहीं, बल्कि प्रेम के इज़हार और उत्तम संतान की उत्पत्ति का सशक्त माध्यम भी है. अतः उन्हें समझाएं कि सेक्स को मात्र भोग या हवस पूरी करने का माध्यम न मानकर जीवन के अहम पहलू के तौर पर लिया जाना चाहिए, ताकि सेक्स जीवन का सही आनंद लिया जा सके.

क्यों ज़रूरी है सेक्स एजुकेशन?
यूं तो हमारे न बताने पर भी बच्चों को दोस्तों, पत्र-पत्रिकाओं या फिर इंटरनेट के ज़रिए सेक्स की जानकारी मिल ही जाती है, फिर भी क्यों हमें उन्हें सेक्स एजुकेशन देना चाहिए, आइए जानते हैं-
* उन्हें अपने शरीर के बारे में संपूर्ण जानकारी हो सके.
* वे लड़का-लड़की दोनों के ही साथ कंफ़र्टेबल होकर बातचीत व व्यवहार कर सकें.
* उनके साथ या किसी अन्य के साथ हो रहे सेक्सुअल शोषण, बलात्कार आदि को समझ सकें और उसे रोकने में सहयोग कर सकें.
* किशोरावस्था में होनेवाले शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सेक्सुअल बदलावों को जानने-समझने के लिए तैयार हो सकें.
* आगे चलकर जब उनके मन में सेक्स की भावना उत्पन्न हो, तो उसे हेल्दी तरी़के से ले सकें तथा इसे लेकर उनके मन में कोई अपराध भावना न जन्म ले.
* एसटीडी (सेक्सुअली ट्रांसमीटेड डिसीज़) से बचाव को लेकर जागरुक हो सकें.
* आगे चलकर एक सुखद वैवाहिक जीवन जी सकें तथा आदर्श अभिभावक की ज़िम्मेदारी निभाने के लायक बन सकें.

स्कूलों में सेक्स शिक्षा दी जाए या नहीं
बच्चों को सेक्स शिक्षा देना बेहद ज़रूरी है, लेकिन भारतीय स्कूलों में यदि सेक्स शिक्षा दी जाए तो निम्न बातों पर ध्यान देना ज़रूरी है-
* सेक्स शिक्षा वही शिक्षक दें, जिनकी इस विषय पर अच्छी पकड़ हो तथा जो बच्चों के सवालों का जवाब वैज्ञानिक तथ्यों के साथ अर्थपूर्ण तरी़के से दे सकें.
* प्यूबर्टी पीरियड के शुरू होने से पहले सेक्स शिक्षा दी जाए.
* बच्चों को सेक्स शिक्षा देते समय भाषा तथा शब्दों पर विशेष ध्यान दिया जाए.
* धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यताओं से परे वैज्ञानिक व सामाजिक मापदंडों को ध्यान में रखकर सेक्स शिक्षा दी जाए.
* लड़के-लड़कियों को एक साथ सेक्स शिक्षा दी जाए, ताकि आगे चलकर इस मुद्दे पर बात करते समय वे हिचकिचाएं नहीं.
* सेक्स शिक्षा देते समय स्केचेज़, डायग्राम, चार्ट, स्लाइड्स आदि का प्रयोग किया जाए, नग्न तस्वीरों, पोर्नोग्राफ़ी आदि का बिल्कुल भी प्रयोग न हो.
* बच्चों को उनके सवाल लिखकर देने का सुझाव भी दें, ताकि बच्चे पूछने से हिचकिचाएं नहीं तथा शिक्षक उनके मन को अच्छी तरह जान-समझ सकें.
* सेक्स शिक्षा हमेशा ग्रुप में दी जाए, अकेले नहीं.

– कमला बडोनी

अधिक पैरेंटिंग टिप्स के लिए यहां क्लिक करेंः Parenting Guide 

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सेक्स प्रॉब्लम्स- आफ्टरप्ले क्या होता है? (Sex Problems- What Is Afterplay?)

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Sex Problems

आफ्टरप्ले क्या होता है?
मैं 18 साल की कॉलेज स्टूडेंट हूं. मैंने अक्सर पत्र-पत्रिकाओं में सेक्स आर्टिकल में आफ्टरप्ले के बारे में पढ़ा है. इसके बारे में जानना चाहती हूं. क्या यह सेक्सुअल संतुष्टि के लिए ज़रूरी है?

– शिवानी वर्मा, जबलपुर.

सेक्सुअल रिलेशन में इंटरकोर्स से पहले पार्टनर्स द्वारा एक-दूसरे को प्यार से स्पर्श करना, बांहों में भरना, गले लगाना, प्यार करना ‘फोरप्ले’ कहलाता है. यही सब क्रियाएं जब इंटरकोर्स के बाद करते हैं, तो उसे ‘आफ्टरप्ले’ कहते हैं. इनसे सेक्सुअल संतुष्टि के अलावा आपसी अंतरंग संबंध भी प्रगाढ़ होते हैं. सेक्सोलॉजिस्ट के अनुसार, सेक्स क्रिया में जहां पुरुष शरीर को प्राथमिकता देते हैं, वहीं महिलाएं भावनाओं को. लेकिन शारीरिक संतुष्टि के लिए फोरप्ले की जितनी ज़रूरत होती है, भावनात्मक संतुष्टि के लिए उतनी ही ज़रूरत आफ्टरप्ले की भी होती है. अतः पार्टनर को शारीरिक और भावनात्मक रूप से संतुष्ट करने के लिए सेक्स से पहले फोरप्ले और बाद में आफ्टरप्ले ज़रूर करना चाहिए.

 

मैं 21 साल की हूं. मेरे मंगेतर मुझे बहुत चाहते हैं. दो महीने बाद हमारी शादी होनेवाली है. मेरी एक सहेली, जो बहुत ही बिंदास स्वभाव की है, अक्सर अपने दोस्तों के साथ बिताए हुए सेक्सुअल रिलेशन के बारे में मुझे बताती रहती है. उसे इस तरह की बातें करते हुए ज़रा भी संकोच नहीं होता, जबकि मुझे इन सब से परेशानी होती है और अजीब भी लगता है. कभी-कभी तो उससे जलन भी होने लगती है और कई बार उसी की तरह ज़िंदगी बिताने की भी इच्छा होने लगती है. कृपया, मार्गदर्शन करें.

– रज़िया शेख, हैदराबाद.

कुछ लड़कियों को अपने बॉयफ्रेंड या फिर अपने पति के साथ बिताए गए अपने अंतरंग संबंधों के बारे में बताना फैशन या गर्व का विषय लगता है. इस तरह की लड़कियां अक्सर अपने अंतरंग संबंधों से जुड़ी इन बातों को हल्के तौर पर लेती हैं या फिर उसे गॉसिप का रूप दे देती हैं. लेकिन कई बार इस तरह की बातें सुननेवाले के दिलो-दिमाग़ में भावनात्मक असमंजसता उत्पन्न कर देती है और उसे भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करती है. जल्द ही आपकी शादी होनेवाली है और आपके होनेवाले पति भी आपको चाहते हैं, जिसे आप किसी भी क़ीमत पर खोना नहीं चाहेंगी. बेहतर होगा कि अपनी सहेली की इस तरह की बातों में आप शामिल ही न हों. ध्यान रहे, दूसरी लड़कियों की फैंटेसी की दुनिया से कहीं क़ीमती आपका ख़ुशहाल वैवाहिक जीवन है. इसलिए इन सभी बातों से ध्यान हटाकर अपने भावी जीवन की ओर सकारात्मक रूप से आगे बढ़ें.

सेक्स संबंधित अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करेंSex Problems Q&A
डॉ. राजीव आनंद
सेक्सोलॉजिस्ट
(dr.rajivanand@gmail.com)

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कहानी- दिल के दायरे (Short Story- Dil Ke Dayare)

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“प्यार शादीशुदा या कुंवारा देखकर तो नहीं किया जाता. बस, हो जाता है. सो हो गया.” मैंने भी दृढ़ता से कहा.
“पर आप जो करना चाहती हैं, वो प्यार नहीं, स्वार्थ है.”
“अगर आपकी नज़रों में यह स्वार्थ है, तो स्वार्थ ही सही. मैं जिससे प्यार करती हूं, उसके साथ रहना चाहती हूं. आप ख़ुद सोचिए कि जो आदमी आपसे प्यार तक नहीं करता, आप उसे बांधे रखना चाहती हैं, तो स्वार्थी कौन हुआ? आप या मैं?” मैंने बड़े गर्व से इतराते हुए तर्क दिया.

दिल को क्यों दायरों में जीना पड़ता है और जब इतने दायरे हैं, तो जीना कैसा? न जाने क्यों आज रह-रहकर बीता व़क्त यादों को छेड़ रहा है. आज सोचती हूं कि कुछ कहानियां अधूरी ही रहें तो बेहतर है… जैसे मेरी कहानी… आज देव का ईमेल मिला, पढ़कर सुकून हुआ कि मैंने सही समय पर उचित निर्णय लिया.
इंसान से ग़लतियां होती ही हैं, लेकिन क्या बुरा है कि समय रहते ग़लतियों को पहचानकर ठीक कर लिया जाए? मुझसे भी ऐसी ही भूल हुई थी. आज याद करती हूं, तो अपने बचपने पर हंसी भी आती है और रोना भी.
अपने पापा का बिज़नेस संभालती थी मैं. उन्हीं दिनों देव मेरी ज़िंदगी में आए. बेहद सहज, संतुलित और मेहनती थे वो. यही वजह थी कि पापा ने उन्हें बिज़नेस पार्टनर बना लिया था. उनकी हर बात मुझे लुभाती थी. एक दिन हम साथ में लंच कर रहे थे और प्यार-मुहब्बत की फिलोसफी पर चर्चा छिड़ गई.
देव ने कहा, “प्यार का मतलब ही होता है त्याग, बलिदान, निस्वार्थ भाव से किसी के लिए कुछ करना…!”
“बाप रे! इतने भारी-भरकम शब्दों का बोझ रखकर भला कोई प्यार कैसे कर सकता है? मैं तो बस इतना जानती हूं कि ज़िंदगी एक ही बार मिलती है… जी भरके जीयो… दिल खोलकर प्यार करो… मेरे लिए प्यार का मतलब है हासिल करना. जिसे चाहो, उसे हर क़ीमत पर हासिल करो. और फिर हमारे बड़े-बुज़ुर्ग यूं ही नहीं कह गए हैं कि प्यार और जंग में सब जायज़ है.”
मेरा यह अंदाज़ देखकर देव थोड़े हैरान थे. अपने पापा की इकलौती लाडली बिटिया थी मैं. जब जो चाहा, वो मिला. हारना तो सीखा ही नहीं था मैंने. समझौता करने की कभी नौबत नहीं आई. ज़िंदगी बेहद आसान और हसीं थी. उस पर देव का मेरी ज़िंदगी में आना सपने की तरह था. मैं देव की तरफ़ आकर्षित तो थी ही, न जाने कब उनसे बेहद प्यार भी करने लगी थी. हालांकि हम दोनों ही एक-दूसरे से बेहद अलग थे. वो किसी शांत समंदर की तरह, सुलझे हुए परिपक्व, लेकिन हंसमुख इंसान थे और मैं लहरों की तरह शोख़-चंचल थी. उन्हें देखते ही अजीब-सी कशिश महसूस होती थी. आंखों में कई रंगीन सपने पलने लगे थे, लेकिन ख़ुद ही बीच-बीच में आंख खोलकर सपनों की दुनिया से बाहर आने की नाकाम कोशिश भी करती.
“रश्मि, ये पीला रंग तुम पर बहुत प्यारा लगता है…” यही कहा था देव ने ऑफिस की पार्टी में मुझे पीले रंग की साड़ी में देखकर. उनकी वो प्यारभरी नज़रें मैं आज तक नहीं भुला सकी हूं.
बस, फिर तो बातों, मुलाक़ातों और कॉम्प्लीमेंट्स का सिलसिला जो शुरू हुआ, वो मुहब्बत के इज़हार पर आकर ही अपने अंजाम तक पहुंचा. लेकिन इस प्यार का अंजाम न कभी मैंने सोचा, न देव ने.
“देव, तुम जानते हो न कि हम क्या कर रहे हैं? तुम शादीशुदा हो. दो बच्चे हैं तुम्हारे. ऐसे में हमारा यह रिश्ता? क्या भविष्य होगा इस रिश्ते का?” मैंने एक दिन घबराकर पूछा.
“रश्मि, क्या स़िर्फ इतना काफ़ी नहीं कि हम दोनों एक-दूसरे को बेइंतहा चाहते हैं? क्यों भूत-भविष्य की चिंता में प्यार के इन ख़ूबसूरत पलों को बर्बाद करें? वैसे भी हमने अब तक अपनी मर्यादाओं को नहीं तोड़ा है और तुम यह भी जानती हो कि रेखा से मेरी शादी किन हालात में हुई.” देव ने बड़े आराम से जवाब दिया.
“तुम्हारा मतलब क्या है देव? कहीं तुम इस ग़लतफ़हमी में तो नहीं हो कि मैं ज़िंदगीभर यूं ही तुम्हारे साथ रहूंगी और तुम एक तरफ़ अपनी गृहस्थी भी चलाते रहोगे और मुझसे प्यार भी करते रहोगे? और मर्यादाएं कब तक रहेंगी? क्या पता किन्हीं कमज़ोर पलों में हम अपनी सीमाएं भूल जाएं?”
“तुम ठीक कह रही हो, लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं?”
“तुम रेखा से तलाक़ क्यों नहीं ले लेते, जब हम प्यार करते हैं, तो हमें शादी करके साथ रहना चाहिए.” मैंने गंभीरता से कहा.
“रश्मि, तुम जानती भी हो कि क्या कह रही हो? रेखा तो हमारे बारे में जानती तक नहीं और इसमें उसका क्या दोष? सारी परिस्थितियों को जानने के बाद भी हमने प्यार किया, तो अब इस प्यार के जो भी साइड इफेक्ट्स हैं, वो हम
झेलेंगे, रेखा क्यों सहे? उसके प्रति मेरी ज़िम्मेदारी व जवाबदेही बनती है.”
“देव, अगर इतनी ही सहानुभूति हो रही है रेखा से, तो मुझसे अभी रिश्ता तोड़ दो, क्योंकि मैं किसी साइड इफेक्ट में विश्‍वास नहीं रखती. फैसला तुम्हें करना है.” मैंने अपना निर्णय देव को सुना दिया और चली गई.
बहुत बेचैन हो गई थी मैं देव की बातों से. पूरी दुनिया में क्या देव ही बचे थे प्यार करने के लिए? आख़िर क्यों मुझे ऐसे इंसान से प्यार हुआ, जिसके साथ मैं चाहकर भी रह नहीं सकती…? ख़्वाहिशों, चाहतों, हसरतों की तो हदें नहीं होतीं… मुहब्बत इन तमाम इंसानी दायरों से बेफ़िक्र होती है… आज़ाद होती है… स्वच्छंद होती है… पूरी तरह से अल्हड़ और अपनी शर्तों पर जीनेवाली. ख़ैर, अगले दिन देव को टूर पर जाना था. उसने स़िर्फ फोन पर इतना ही कहा कि मैं शांत मन से सोचूं और सही समय का इंतज़ार करूं. लेकिन मैं कहां माननेवाली थी. मैंने मौ़के का फ़ायदा उठाया और फ़ौरन रेखा से मिलने चली गई. रेखा को मैंने बिना झिझके सब कुछ साफ़-साफ़ बता दिया. रेखा भावशून्य होकर सब सुनती रही और मैं वहां से चली आई.


अगले दिन रेखा मुझसे मिलने आई और अपनी तरफ़ से उसने मुझे समझाने की हर मुमकिन कोशिश की.
मैंने उससे यही कहा, “मुझे इन सब बातों से बोर मत करो और इस सच को मान लो कि देव और मैं एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं.”
“मैं आपके और उनके प्यार को समझ सकती हूं, क्योंकि मेरी उनसे शादी उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हुई थी, लेकिन शादी के बाद उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारियों से कभी भी मुंह नहीं फेरा. वो एक नेक इंसान हैं. लेकिन फिर भी आज की हक़ीक़त तो यही है न कि वो शादीशुदा हैं और आप एक शादीशुदा आदमी से कैसे प्यार कर सकती हैं?” रेखा ने नम आंखों से आहतभरे स्वर में कहा.
“प्यार शादीशुदा या कुंवारा देखकर तो नहीं किया जाता. बस, हो जाता है. सो हो गया.” मैंने भी दृढ़ता से कहा.
“पर आप जो करना चाहती हैं, वो प्यार नहीं, स्वार्थ है.”
“अगर आपकी नज़रों में यह स्वार्थ है, तो स्वार्थ ही सही. मैं जिससे प्यार करती हूं, उसके साथ रहना चाहती हूं. आप ख़ुद सोचिए कि जो आदमी आपसे प्यार तक नहीं करता, आप उसे बांधे रखना चाहती हैं, तो स्वार्थी कौन हुआ? आप या मैं?” मैंने बड़े गर्व से इतराते हुए तर्क दिया.
“मेरे बच्चों के बारे में तो सोचिए, आप भी एक औरत हैं. प्यार तो त्याग का ही दूसरा नाम है.”
“ये त्याग-व्याग के इमोशनल चक्कर में मुझे न ही फंसाएं, तो अच्छा होगा. आप यहां से जा सकती हैं.” मुझ पर न उसके आंसुओं का असर हो रहा था, न उसकी मिन्नतों का.
आज सोचती हूं, तो घृणा होती है ख़ुद से. कैसे मैं इतनी स्वार्थी हो सकती हूं.
ख़ैर, देव जब लौटे, तो सब कुछ जानने के बाद मुझ पर ग़ुस्सा भी हुए. लेकिन रेखा ने ख़ुद ही अलग होने का फैसला कर लिया था. मैं रेखा का फैसला जानकर बेहद ख़ुश थी और मुझे अपनी जीत पर बड़ा ही फ़ख्र महसूस हो रहा था.
लेकिन देव ने एकदम से मुझसे दूरी बना ली थी. मुझे न जाने क्यों वो नज़रअंदाज़ करने लगे थे. इसी बीच रेखा मुझसे मिलने आई. ज़्यादा कुछ नहीं कहा उसने, बस एक लिस्ट थमा दी कि देव को क्या पसंद है, क्या नापसंद… घर पर किस तरह से रहना अच्छा लगता है, किस बात से उन्हें चिढ़ होती है, किस बात से ख़ुशी आदि…
मैं हैरान हुई कि भला रेखा मेरी मदद क्यों करना चाहती है, पर मैंने उसे ज़्यादा महत्व नहीं दिया.
मैंने सोचा देव को थोड़ा स्पेस देना ज़रूरी है. शायद मुझसे नाराज़गी दूर हो जाए, तो वो ख़ुद-ब-ख़ुद हमारी शादी की बात करें. इसी बीच मुझे और देव को बिज़नेस ट्रिप पर जाना पड़ा. मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था, सोचा इसी बहाने हम क़रीब रहेंगे, तो देव मान जाएंगे. स्विट्ज़रलैंड की ख़ूबसूरत वादियां और देव का साथ. मुझे इससे अच्छा मौक़ा और कोई नहीं लगा देव को शादी के लिए प्रपोज़ करने का.
मौक़ा पाकर मैं देव को कैंडल लाइट डिनर पर ले गई और वहीं उनसे पूछा, “देव, मुझसे शादी करोगे?”
“नहीं रश्मि, कभी नहीं.”
मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी देव के इस जवाब से. ख़ुद को संभालते हुए मैंने कारण जानना चाहा, तो देव ने जो कुछ भी कहा उस पर मैं विश्‍वास नहीं कर पाई, “रश्मि, यह सच है कि हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं, लेकिन यह भी सच है कि मैं शादीशुदा हूं. मेरी पत्नी और बच्चे मेरी ज़िम्मेदारी हैं. उन्हें मझधार में छोड़कर तुम्हारे साथ नई ज़िंदगी की मैं कल्पना तक नहीं कर सकता. मैंने तुम्हें पहले भी कहा था कि मेरे लिए प्यार का मतलब निस्वार्थ भाव, त्याग और समर्पण है.”
ख़ैर, हम बिज़नेस टूर से वापस आए. देव और मैं काम में बिज़ी हो गए थे. दिनभर हम ऑफिस में साथ रहते, बातें करते, पर कहीं न कहीं अंदर से देव टूट रहे थे. उनकी हंसी कहीं खो गई थी जैसे. इसी बीच मुझे याद आया कि रेखा ने एक लिस्ट और चिट्ठी दी थी. मैंने उसे अब तक खोलकर पढ़ा तक नहीं था. घर जाकर वो लिस्ट देखी, तो मैंने अगले ही दिन से देव को कभी उनका मनपसंद खाना बनाकर, तो कभी छोटा-सा सरप्राइज़ देकर ख़ुश रखने की कोशिश की. मैं हैरान थी कि वो सारी चीज़ें सच में काम कर रही थीं. लेकिन कुछ पल के लिए. बाद में फिर से एक अजीब-सी उदासी उन्हें घेर लेती.
मैंने लाख कोशिश की, तो एक दिन वो बोले. “रश्मि, बच्चों की बहुत याद आती है. मैं उनसे मिलना चाहता हूं. न जाने रेखा मुझे उनसे मिलने देगी या नहीं.”
देव की उदासी देखकर मैं रेखा के पास गई और उससे इजाज़त लेकर बच्चों को ले आई. रेखा ने बिना आनाकानी किए बच्चों को मेरे साथ भेज भी दिया. देव उस दिन बहुत ख़ुश हुए. उनके चेहरे की रौनक़ देखकर ही मैं बेहद हैरान थी. अगले दिन भी खिले-खिले, चहकते रहे. बच्चों के साथ पूरा दिन बिताया हमने, देव तो जैसे ख़ुद ही बच्चे बन गए थे बच्चों के साथ.
मुझे लगा कि ये देव न जाने कहां खोया हुआ था इतने समय से. मेरे साथ तो जैसे स़िर्फ उनका शरीर रह रहा था, उनकी आत्मा तो शायद अपने बच्चों में बसी थी. और मैं जिस देव से प्यार करती थी, वो ऐसे ही थे. हंसते हुए, मुस्कुराते हुए. शायद पहली बार मेरे मन में कुछ मर-सा गया था. न जाने क्यों यह एहसास हो रहा था कि कहीं कुछ ग़लत तो नहीं हुआ? आख़िर देव को पाने की कोशिश में क्या हासिल हुआ मुझे? मैंने तो उन्हें पाकर भी खो दिया.
पर इसमें मेरा क्या दोष? ये तो ख़ुद उन्हें सोचना चाहिए था. शादीशुदा होकर मुझसे प्यार क्यों किया? लेकिन फिर अपना ही तर्क याद आ गया, जो मैंने रेखा को दिया था कि प्यार शादीशुदा या कुंवारा देखकर तो नहीं किया जाता.
उस रात मुझे नींद नहीं आई. सारी रात सोचती रही. ये क्या हाल कर दिया मैंने देव का? उनके बच्चों की वो मासूम मुस्कान बार-बार मुझे कटघरे में खड़ा कर रही थी. वापस लौटते व़क्त उनके बच्चों ने कहा था, “पापा, आप घर वापस कब आ रहे हो? मम्मी रोज़ कहती है कि आप जल्दी आओगे, पर आप आते ही नहीं…” देव की आंखें भर आईं थीं तब. मैं ख़ुद को पहली बार अपराधी महसूस कर रही थी. मासूम बच्चों को उनके पिता से दूर करके अपना सुख देखा? क्या यही प्यार होता है?
अगले दिन सुबह-सुबह ही रेखा से मिलने चली गई. रेखा ने आराम से मुझे अंदर बुलाया और बेहद शांत मन से बातें करने लगी.
“कैसी हो रश्मि? सब कुछ ठीक तो है न? आज अचानक मेरी याद कैसे आ गई.”
रेखा को देखकर मैं हैरान थी. बेहद शांत-सौम्य चेहरा. भीतर से इतनी ज़ख़्मी होकर भी कोई कैसे इतना शांत रह सकता है भला?
“आपको मुझ पर ज़रा भी ग़ुस्सा नहीं आ रहा?”
“ग़ुस्सा किसलिए? अपने नसीब से कौन लड़ सका है भला.”
“मैंने आपके पति को छीन लिया, बच्चों से उन्हें दूर कर दिया. फिर भी आपको कोई शिकायत नहीं?”
“अगर मेरे पति अपने प्यार को पाकर ख़ुश हैं, तो मैं क्यों शिकायत करूं? आप भी उनसे प्यार करती हैं और मैं भी, दोनों में से एक को तो त्याग करना ही था. और फिर आपने ही कहा था कि मैं उन्हें ज़बर्दस्ती बांधकर रख रही हूं. सो छोड़ दिया. अब आप दोनों आज़ाद हैं. शादी कर सकते हैं और अपने तरी़के से जी सकते हैं.”
उस व़क्त मैंने रेखा से कुछ नहीं कहा. कशमकश और गहरी सोच के साथ वापस चली आई. कहीं न कहीं मुझे लगा कि रेखा कितनी समझदार और परिपक्व है, बिल्कुल देव की तरह. और दूसरी तरफ़ मैं… कितनी स्वार्थी और नासमझ. क्या मैं देव के क़ाबिल हूं? क्या मैं उन्हें ज़िंदगीभर ख़ुश रख सकूंगी? और उन मासूम बच्चों का क्या, जो आज भी रोज़ अपने पापा के आने का इंतज़ार कर रहे हैं और उनकी मां उन्हें नई-नई कहानियां सुनाकर उनका दिल बहलाने की नाकाम कोशिश करती है.
बस, अब मैं कुछ नहीं सोचना चाहती थी. मेरा मन ठोस निर्णय पर पहुंच गया था. अब न कोई दुविधा थी, न दुख, न स्वार्थ, न ही ग़ुस्सा… बस, प्यार ही प्यार था, जिसका न कोई दायरा होता है, न सीमा… प्यार आज़ाद होता है हर बंदिश से. सच पूछो तो आज मुझे सच में प्यार हुआ है… आज मैं प्यार का अर्थ जान पाई हूं. देर होने से पहले ही मैंने ठोस, लेकिन सही क़दम उठाया, इसीलिए अब देव हमेशा के लिए मेरे हो गए.
आज मैं विदेश में पापा का बिज़नेस संभाल रही हूं. बेहद ख़ुश हूं कि समय रहते सही निर्णय लेने का साहस कर पाई. देव का मेल वापस पढ़ रही हूं… बार-बार पढ़ने का मन कर रहा है… ‘प्रिय रश्मि, तुम यूं ही अचानक मुझे छोड़कर चली गईं, पर मुझे तुमसे शिकायत नहीं, बल्कि तुम पर गर्व है कि मेरी रश्मि आख़िर प्यार की सही परिभाषा को समझ गई. मुझे गर्व है तुम पर. तुम्हें बेहद मिस करता हूं, लेकिन अपने बच्चों की मासूम हंसी और रेखा के प्यार व दिलासे में तुम्हें ढूंढ़ लेता हूं. सच कहूं, तो जाते व़क्त तुमने जो चिट्ठी मेरे नाम रखी थी, उसके शब्दों ने मुझे तुम्हारा कृतज्ञ बना दिया… आज भी एक-एक शब्द मुझे याद है उस नोट का…
‘प्यारे देव, मुझे माफ़ कर देना. मैं शायद प्यार को सही मायनों में समझ ही नहीं पाई. तुम जैसा साथी मिलने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि प्यार में धैर्य और सुकून बेहद ज़रूरी है. मैं तुम्हारे शरीर को तो पा सकी, लेकिन तुम्हारी रूह को छू सकने में अब तक असमर्थ रही. मुझसे ज़्यादा तुम पर तुम्हारी पत्नी और तुम्हारे बच्चों का हक़ है और ज़रूरत भी. मैं भला अपने देव को अपने ही बच्चों और अपनी पत्नी का अपराधी कैसे बना सकती हूं? इसीलिए मैं जा रही हूं, ताकि तुम अपने कर्त्तव्यों को
निभाओ और मैं अपने प्यार को व प्यार के फ़र्ज़ को… तुम्हें पाकर खोया है मैंने, लेकिन अब तुम्हें खोकर हमेशा के लिए पा लूंगी मैं… तुमने मुझे प्यार करना सिखा ही दिया आख़िर… आज जान गई कि दिल को दायरों में भी जीना पड़ता है कभी-कभी अपने प्यार की ही ख़ातिर… थैंक्यू और शुभकामनाएं!… तुम्हारी रश्मि.’

           गीता शर्मा

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कीकू शारदा ने बाबा राम रहीम से यूं लिया बदला (Kiku Reaction On Baba Ram Rahim Verdict)

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कोर्ट द्वारा बाबा राम रहीम को 20 साल की सज़ा सुनाए जाने पर कॉमेडियन कीकू शारदा ने अपनी बीवी के साथ सेलिब्रेट करके अपनी खुशी जाहिर की. सेलिब्रेशन की पिक्चर उन्होंने ट्विटर पर पोस्ट की. हालांकि कीकू ने बाबा राम रहीम पर नाम नहीं लिया, लेकिन उन्होंने बेहद स्मार्ट तरी़के से अपनी बात रख दी.

कीकू शारदा ने बाबा राम रहीम से यूं लिया बदला

आपको बता दें कि जनवरी 2016 में एक टीवी शो पर कीकू द्वारा बाबा राम रहीम का मज़ाक उड़ाने के लिए उन्हें 14 दिन के लिए अरेस्ट किया गया था. हालांकि कीकू ने बाबा पर कोर्ट के फैसले पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, लेकिन अब जाकर उन्होंने बहुत स्मार्ट तरी़के से अपनी ख़ुशी जाहिर की.

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उन्होंने अपनी पत्नी प्रियंका शारदा के साथ पिक्चर पोस्ट थी और उसका कैप्शन था मोनोसोडियम ग्लूटामेट ( एमएसजी) फ्री चायनीज़ खाने का आनंद ले रहा हूं. मोनोसोडियम ग्लूटामेट एक प्रकार की खाद्य सामग्री है, जिसका इस्तेमाल चायनीज़ खाने में किया जाता है. आपको बता दें कि बाबा राम रहीम को एमएसजी के नाम से भी जाना जाता है. कीकू के पोस्ट पर उनके फैन्स ने अपने-अपने तरी़के से बाबा का मज़ाक उड़ाया और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की.

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Awww! करण जौहर के अनमोल रतन रूही और यश, देखें ये क्यूट पिक्चर (Karan Johar Shares Cute Picture Of Twins Roohi And Yash)

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करण जौहर के अनमोल रतन रूही और यश, देखें ये क्यूट पिक्चर

करण जौहर एक कूल डैडी हैं. जुड़वां बच्चों के पिता करण अपने पापा होने की ज़िम्मेदारियां अच्छी तरह से निभा रहे हैं. रूही और यश करण की दुनिया है. करण ने अपने दोनों बच्चों की तस्वीर इंस्टाग्राम पर शेयर की है, जिसमें उन्होंने लिखा है,”माय वर्ल्ड 2.0”.

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My world 2.0 ❤️❤️❤️❤️❤️

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करण सिंगल डैड हैं और इसी साल फरवरी में सरोगेसी के ज़रिए पिता बने हैं. अपने माता-पिता के नाम पर ही उन्होंने अपने दोनों बच्चों का नाम रखा है. उन्होंने अपने बच्चों के लिए ख़ास नर्सरी भी बनवाई थी, जिसे डिज़ाइन किया है शाहरुख खान की वाइफ गौरी खान ने.

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Cute! मॉमी करीना के साथ तैमूर चले ‘वीरे दी वेडिंग’के शूट पर (Taimur Ali Khan Leaves For Veere Di Wedding Shoot With Mommy Kareena Kapoor Khan)

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मॉमी करीना के साथ तैमूर चले 'वीरे दी वेडिंग' के शूट पर छोटे नवाब तैमूर अली खान एक बार फिर सुर्खियों में हैं. तैमूर इस बार निकले हैं मम्मी के साथ. सैफ अली खान इस बार तैमूर के साथ नहीं थे. दरअसल ये कोई वेकेशन ट्रिप नहीं है, बल्कि तैमूर मॉमी के साथ वीरे दी वेडिंग की शूटिंग के लिए जा रहे हैं. तैमूर अभी बहुत छोटे हैं, इसलिए करीना कपूर खान उन्हें अपने साथ दिल्ली शूट पर ले गई हैं. बिज़ी स्केड्यूल से वक़्त निकाल कर करीना अपने बेटे का ध्यान भी रखेंगी. एयरपोर्ट पर जैसे ही तैमूर मॉमी के साथ पहुंचे, कैमरे उनकी क्यूटनेस को कैमरे में कैद करने के लिए बेकरार हो उठे.

मॉमी करीना के साथ तैमूर चले 'वीरे दी वेडिंग' के शूट पर

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तैमूर स्ट्राइप्ड पायजामा सूट में बेहद क्यूट लग रहे थे. एयरपोर्ट पर तैमूर इस बार रोते हुए नज़र आए. लगता है वो इस बार डैडी सैफ को मिस कर रहे थे. सैफ अपनी फिल्म शेफ के प्रमोशन में बिज़ी हैं, इसलिए इस बार वो अपने छोटे नवाब के साथ एयरपोर्ट पर मौजूद नहीं थे.

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